Sandhi Kise Kahate Hain in Hindi Grammar

आज के इस आर्टिकल में आप हिंदी व्याकरण का चैप्टर संधि (Sandhi) के बारे में पूरी जानकारी पढ़ सकते हैं।

जिसमे आप संधि का परिभाषा, इसके तीनों प्रकार और सभी का उदाहरण आदि के बारे में जान सकते हैं। अब हम आज का यह आर्टिकल Sandhi in Hindi Grammar को शुरू करते हैं।

संधि किसे कहते हैं। – Sandhi in Hindi Grammar

परिभाषा (Definition) – ‘संधि’ शब्द का अर्थ होता है – मेल, मिलना या समझौता।

हिन्दी व्याकरण के अनुसार जब दो या दो से अधिक शब्द मिलते हैं तब पहले शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण) तथा मिलने वाले दूसरे शब्द की प्रथम ध्वनि (वर्ण), के परस्पर मेल पर जो ध्वनि परिवर्तन अर्थात् ‘ध्वनि विकार’ होता है, उसे सन्धि कहते हैं।

जैसे –

राम + अवतार = रामावतार (‘अ’ तथा ‘अ’ के मेल से ‘आ’ बनना

जगत् + ईश = जगदीश (त् तथा ई के मेल से ‘दी’ बनना)

निः + चय = निश्चय (विसर्ग तथा च के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘श्’ का बनना)

संधि के भेद या प्रकार – Sandhi Ke Kitne Bhed Hote Hain

हिन्दी व्याकरण में संधि के तीन भेद होते हैं जो की नीचे लिखे गए हैं –

1 . स्वर सन्धि

2 . व्यंजन सन्धि

3 . विसर्ग सन्धि

1 . स्वर सन्धि (Swar Sandhi) –

स्वर के साथ स्वर के मेल पर होने वाले विकार को स्वर सन्धि कहते हैं ।

हिन्दी में स्वर ग्यारह हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

स्वर दो रूप में लिखे जाते हैं। एक मूल रूप (अ, आ, इ, ई….) में तथा व्यंजन वर्ण के साथ मात्रा के रूप में।

यथा – क् + आ = का, क + इ = कि

स्वर संधि के भेद –

स्वर सन्धि पाँच प्रकार की होती हैं –

(i) दीर्घ (ii) गुण (iii) वृद्धि (iv) यण (v) अयादि

(i) दीर्घ सन्धि –

हिन्दी में अ, इ, उ, ह्रस्व या लघु स्वर हैं तथा आ, ई, ऊ दीर्घ स्वर हैं। दीर्घ सन्धि में दो समान, सवर्ण एवं सजातीय ह्रस्व या दीर्घ स्वर आपस में मिलकर सदैव दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ) बनते हैं।

इसे यों भी कहा जा सकता है कि ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘अ’ या ‘आ’ के मेल से ‘आ’ बनता है; ‘इ’ या ‘ई’ के साथ ‘इ’ या ‘ई’ के मेल से ‘ई’ बनता है तथा ‘उ’ या ‘ऊ’ के साथ ‘उ’ या ‘ऊ’ के मेल से ‘ऊ’ बनता है।

सन्धि

अ + ऊ = आ

नयन + अभिराम = नयनाभिराम

राम + अनुज = रामानुज

गीत + अंजलि = गीतांजलि

पद + अरविन्द = पदारविन्द

चरण + अमृत = चरणामृत

सन्धि विच्छेद –

मुरारि = मुर + अरि

सावधान = स + अवधान

हस्ताक्षर = हस्त + अक्षर

दावानल = दाव + अनल

अ+आ = आ

सन्धि

देव + आलय = देवालय

सत्य + आग्रह = सत्याग्रह

गज + आनन = गजानन

पर्वत + आरोही = पर्वतारोही

(ii) गुण सन्धि –

गुण सन्धि में ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘इ’ या ‘ई’ स्वर के मेल पर ‘ए’ (े) बनता है तथा ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘उ’ या ‘ऊ’ के मेल से ‘ओ’ (ो) बनता है साथ ही ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘ऋ’ के मेल पर अर्’ बनता है ।

यथा –

अ, आ + इ, ई = ए (े)

अ, आ + उ, ऊ = ओ (ो)

अ, आ + ऋ = अर

अ + इ = ए (े)

भारत + इन्दु = भारतेन्दु

स्व + इच्छा = स्वेच्छा

मानव + इतर = मानवेतर

प्र + इत = प्रेत

सन्धि विच्छेद –

सुरेन्द्र = सुर + इन्द्र

नेति = न + इति

अ + ई = ए (े)

राम + ईश्वर = रामेश्वर

गण + ईश = गणेश

उप + ईक्षा = उपेक्षा

अंक + ईक्षण = अंकेक्षण

सन्धि विच्छेद –

प्रेक्षा = प्र + ईक्षा

सर्वेक्षण = सर्व + ईक्षण

परमेश्वर = परम + ईश्वर

अखिलेश = अखिल + ईश

(iii) वृद्धि सन्धि –

वृद्धि सन्धि में ‘अ’ या ‘आ’ स्वर के साथ ‘ए’ या ‘ऐ’ के मेल से ‘ऐ’ (ै) बनता है तथा ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘ओ’ या ‘औ’ के मेल पर ‘औ’ (ौ) बनता है –

अ, आ + ए, ऐ = ऐ (ै)

अ, आ + ओ, औ = औ (ौ)

अ + ए = ऐ (ै)

मत + एकता = मतैकता

पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा

सन्धि विच्छेद –

विश्वकता = विश्व + एकता

वित्तैषणा = वित्त + एषणा

हितैषी = हित + एषी

लोकैषणा = लोक + एषणा

अ + ऐ = ऐ (ै)

मत + ऐक्य = मतैक्य

ज्ञान + ऐश्वर्य = ज्ञानेश्वर्य

स्व + ऐच्छिक = स्वैच्छिक

विश्व + ऐक्य = विश्वैक्य

सन्धि-विच्छेद –

धर्मैक्य = धर्म + ऐक्य

परमैश्वर्य = परम + ऐश्वर्य

विचारैक्य = विचार + ऐक्य

देवैश्वर्य = देव + ऐश्वर्य

आ + ए = ऐ (ै)

सदा + एव = सदैव

महा + एषणा = महैषणा

सन्धि विच्छेद –

वसुधैव = वसुधा + एव

तथैव = तथा + एव

(iv) यण सन्धि –

यण् सन्धि में तीन प्रकार का ध्वनि विकार होता है इन तीनों का विवेचन यहाँ अलग-अलग करेंगे –

(अ) जब किसी शब्द के अन्तिम वर्ण में ‘इ’ या ‘ई’ का स्वर हो तथा उसके साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण ‘इ’ या ‘ई’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर (अ, आ, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ) हो तब सन्धि होने पर ‘इ’ या ‘ई’ के स्थान पर ‘य’ बन जायेगा तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा ‘य’ में लग जायेगी तथा ‘इ’ या ‘ई’ वाला वर्ण हल् (आधा) रूप में ‘य’ के पहले लिखा जायेगा, जैसे –

अति + अन्त = अत्यन्त

देवी + आगमन = देव्यागमन

प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर

नदी + एकता = नद्यकता

ऐसे शब्दों का सन्धि विच्छेद करते समय शब्द में प्रयुक्त ‘य’ वर्ण के पहले वाले हल वर्ण (आधे वर्ण) में ‘इ’ या ‘ई’ स्वर की मात्रा (ि /ी) लगा दें तथा ‘य’ वर्ण में जो स्वर हो, उसी स्वर से आरम्भ कर दूसरा शब्द बना लें, जैसे –

अत्याचार = अति + आचार

मह्याधार = मही + आधार

नद्युत्पन्न = नदी + उत्पन्न

प्रत्येक = प्रति + एक

इ या ई के साथ अन्य स्वरों के मेल के उदाहरण देखिए –

इ + अ = य

अति + अधिक = अत्यधिक

अधि + अक्ष = अध्यक्ष

अभि + अन्तर = अभ्यन्तर

प्रति + अर्पण = प्रत्यर्पण

सन्धि विच्छेद –

पर्यवसान = परि + अवसान

पर्यवेक्षक = परि + अवेक्षक

अध्ययन = अधि + अयन

आद्यन्त = आदि + अन्त

(आ) जब किसी शब्द के अन्तिम वर्ण में ‘उ’ या ‘ऊ’ का स्वर हो तथा उसके साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण ‘उ’ या ‘ऊ’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर (अ, आ, इ, ई, ए, ऐ, ओ, औ) हो तब सन्धि होने पर ‘उ’ या ‘ऊ’ के स्थान पर ‘व्’ बन जायेगा तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा ‘व’ में लग जाती है साथ ही ‘उ’ या ‘ऊ’ वाले वर्ण के हल रूप को ‘व’ के पहले लगा दिया जायेगा –

अनु + अय = अन्वय

वधू + आगमन = वध्वागमन

सु + आगत स्वागत

भू + ओज = भ्वोज

ऐसे शब्दों का संधि विच्छेद करते समय शब्द में प्रयुक्त ‘व’ वर्ण के पहले वाले हल वर्ण (आधे वर्ण) में ‘उ’ या ‘ऊ’ स्वर की मात्रा लगा दें तथा ‘व’ वर्ण में जो स्वर हो उसी स्वर से आरम्भ कर दूसरा शब्द बना लें, यथा –

अन्वेषण = अनु + एषण

वधविसर्या = वधू + ईर्ष्या

गुर्वाज्ञा = गुरु + आज्ञा

भ्वादि = भू + आदि

उ+ अ = व

सु+अस्ति = स्वस्ति

सु + अच्छ = स्वच्छ

सु+ अल्प = स्वल्प

तनु + अंगी = तन्वंगी

सन्धि विच्छेद –

भान्वस्त = भानु + अस्त

पश्वधम = पशु + अधम

उ + आ = व

गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा

मधु + आलय = मध्वालय

धेनु + आगमन = धेन्वागमन

अनु + आदेश = अन्वादेश

(v) अयादि सन्धि –

अयादि संधि में चार सोपान हैं –

(i) यदि किसी शब्द के अन्तिम वर्ण में ‘ए’ (े) का स्वर हो तथा मिलने वाले शब्द के प्रथम वर्ण में ‘ए’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तो सन्धि होने पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’ बन जाता है तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा ‘य’ में लग जाती है। जैसे –

ने + अन = नयन

ने + अ = नय

विने + अ = विनय

भे + अ = भय

ले + अ = लय

जे + ई = जयी

जब किसी शब्द में प्रयुक्त ‘य’ वर्ण के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तब संधि विच्छेद करने हेतु अ स्वर युक्त वर्ण में ‘ए’ (े) की मात्रा लगा दें तथा ‘य’ वर्ण में जो स्वर हो, उसी स्वर (की सहायता) से प्रारम्भ कर दूसरा शब्द बना लें। यथा –

संचय = संचे + अ

चयन = चे + अन

शयन = शे + अन

प्रलय = प्रले + अ

(ii) ‘ऐ’ के साथ इसके अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल की पर ‘ऐ’ के स्थान पर ‘आय’ बन जाता है तथा मिलने वाले स्वर मात्रा ‘य’ में लगा दी जाती है। जैसे –

गै + अक = गायक

विनै + अक = विनायक

नै + इका = नायिका

विधै + अक = विधायक

जब शब्द में प्रयुक्त ‘य’ वर्ण के पूर्व वाले वर्ण में ‘आ’ का स्वर हो तब सन्धि विच्छेद करते समय ‘आ’ युक्त वर्ण पर ऐ (ै) की मात्रा लगा दें तथा ‘य’ वर्ण में जो स्वर हो, उसी स्वर से आरम्भ कर दूसरा शब्द बना लें। यथा –

नायक = नै + अक

गायिका = गै + इका

दायिनी = दै + इनी

सहायक = सहै + अक

(iii) ‘ओ’ के साथ इसके अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर ‘ओ’ के स्थान पर अव’ बन जाता है तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा ‘व्’ में लगा दी जाती है। जैसे –

हो + इष्य = हविष्य

गो + एषणा = गवेषणा

नो + ईन = नवीन

जब शब्द में प्रयुक्त ‘व’ वर्ण के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तब शब्द का सन्धि विच्छेद करते समय ‘व’ के पहले वाले ‘अ’ युक्त वर्ण में ‘ओ’ की मात्रा लगा दें तथा ‘व’ में जो स्वर हो उसी स्वर से आरम्भ कर दूसरा शब्द बना लें। जैसे –

भवन = भो + अन

श्रो + अन = श्रवण

गवीश = गो + ईश

पो + अन = पवन

प्रसव = प्रसो + अ

(iv) ‘औ’ के साथ इसके अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ बन जाता है तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा ‘व’ में लगा दी जाती है। जैसे –

पौ + अक = पावक

नौ + इक = नाविक

रौ+ अन = रावण

भौ + ई = भावी

यदि शब्द में प्रयुक्त ‘व’ वर्ण के पहले वाले वर्ण में ‘आ’ का स्वर हो तो सन्धि विच्छेद करते समय ‘व’ वर्ण के पहले वाले ‘आ’ स्वर युक्त वर्ण में ‘औ’ की मात्रा (२) लगा दें तथा ‘व’ में जो स्वर हो उसी स्वर से आरम्भ कर दूसरा शब्द बना लें। जैसे –

पावन = पौ + अन

शावक = शौ + अक

धावक = धौ + अक

श्रावण = श्री + अन

नाव = नौ + अ

भाव = भौ + अ

प्रसाविका = प्रसौ + इका

श्रावक = श्रौ + अक

यह भी सीखें – Shabd Kise Kahate Hain aur Shabd Ke Kitne Bhed Hote Hain

2 . व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi) –

जब व्यंजन के साथ स्वर के मेल पर या व्यंजन के साथ व्यंजन के मेल या स्वर के साथ व्यंजन के मेल पर जो व्यंजन सम्बन्धी विकार उत्पन्न होता है तब उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं। जैसे –

जगत् + ईश = जगदीश

यहाँ ‘त्’ व्यंजन व ‘ई’ स्वर के मेल पर ‘दी’ बन गया है।

दिक् + गज = दिग्गज

यहाँ ‘क्’ व्यंजन के साथ ‘ग’ व्यंजन के मेल पर ‘क्’ व्यंजन ‘ग्’ बन गया है।

वि + सम = विषम

यहाँ ‘इ’ स्वर के साथ ‘स’ व्यंजन के मेल पर ‘स’ व्यंजन ‘ष’ व्यंजन बन गया है। व्यंजन संधि में स्वर सन्धि की भाँति भेद न होकर इसके कुछ नियम हैं, यथा –

1 . जब किसी शब्द के अन्त में क्, च्, ट्, त्, प् वर्ण हो तथा उसके साथ मिलने वाले शब्द के प्रथम वर्ण में कोई स्वर या किसी वर्ग (क, च, ट, त, प वर्ग) का तीसरा या चौथा वर्ण (ग, घ, ज, झ, ड, ढ, द, ध, ब, भ) या य, र, ल, व, ह में से कोई भी वर्ण हो तो –

‘क्’ के स्थान पर ‘ग्’, ‘च’ के स्थान पर ‘ज्’, ‘ट्’ के स्थान पर ‘ड्’, ‘त्’ के स्थान पर ‘द्’ तथा ‘प्’ के स्थान पर ‘ब्’ बन जाता है तथा स्वर के मेल पर उसी स्वर की मात्रा हल् वर्ण (ग्, ज्, ड्, द्, ब्) में लग जाती है किन्तु व्यंजन के मेल पर ‘हल्’ व्यंजन हल् ही रहते हैं। जैसे –

(i) ‘क’ के स्थान पर ‘ग्’ का बनना –

दिक् + अम्बर = दिगम्बर

वाक् + ईश = वागीश

दिक् + गज = दिग्गज

वाक् + जाल = वाग्जाल

दिक् + विजय = दिग्विजय

सम्यक् + दर्शन = सम्यग्दर्शन

संधि विच्छेद

वागीश्वरी = वक् + ईस्वरी

वाग्दान = वाक् + दान

(ii) ‘च’ के स्थान पर ” बनना –

अच् + अन्त = अजन्त

अजादि = अच् + आदि

(iii) ‘ट’ के स्थान पर ड्’ बनना –

षट् + आनन = षडानन

षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र

षट् + विकार = षड्विकार

षट् + रिपु = षड्रिपु

सन्धि विच्छेद

षडंग = षट् + अंग

षड्दर्शन = षट् + दर्शन

षडक्षर = षट् + अक्षर

षड्भुजा = षट् + भुजा

(iv) ‘त्’ के स्थान पर ‘द्’ का बनना –

भगवत् + गीता = भगवद्गीता

विद्युत् + वेग = विद्युद्वेग

चित् + रूप = चिद्रूप

सत् + वाणी = सद्वाणी

सन्धि विच्छेद –

जगदम्बा = जगत् + अम्बा

उदय = उत् + अय

सदाचार = सत् + आचार

एतदर्थ = एतत् + अर्थ

2 . यदि किसी शब्द के अन्त में क्, च्, ट्, त्, प् वर्ण हो तथा मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण कोई भी नासिक्य वर्ण (ङ, ञ, ण, न, म) में से हो तो ‘क्’ के स्थान पर ङ्, ‘च’ के स्थान पर ” ‘ट्’ के स्थान पर ‘ण’, ‘त्’ के स्थान पर ‘न्’ तथा ‘प्’ के स्थान पर ‘म्’ बन जायेगा –

(i) ‘क्’ के स्थान पर बनना –

वाक् + मय = वाङ्मय

दिक् + नाग = दिङ्नाग

प्राक् + मुख = प्राङ्मुख

वाक् + मूर्ति = वाङ्मूर्ति

सन्धि विच्छेद

दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल

दिङ्नाथ = दिक् + नाथ

पराङ्मुख = पराक् + मुख

वामिति = वाक् + मिति

(ii) ‘ट’ के स्थान पर ‘ण’ बनना

षट् + मुख = षण्मुख

षट् + मातुर = षण्मातुर

षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति

षट् + मास = षण्मास

(iii) ‘त्’ के स्थान पर ‘न्’ बनना –

उत् + नति = उन्नति

जगत् + नाथ = जगन्नाथ

उत् + मीलन = उन्मीलन

भवत् + निष्ठ = भवन्निष्ठ

सन्धि विच्छेद

उन्नयन = उत् + नयन

विद्युन्मय = विद्युत् + मय

चिन्मय = चित् + मय

(iv) प्’ के स्थान पर ‘म्’ बनना –

अप् + मय = अम्मय

3 . जब किसी शब्द के अन्त में ‘म्’ हो तथा मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण ‘क’ से ‘म’ तक का कोई भी वर्ण हो तो ‘म्’ के स्थान पर मिलने वाले वर्ण का अन्तिम नासिक्य वर्ण हल् (ङ्, ज्, ण, न्, म्) बन जाता हैं।

मानक हिन्दी के अनुसार नासिक्य वर्ण हल के स्थान पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग भी मान्य है।

(i) म् + क, ख, ग, घ के मेल पर म् के स्थान पर ‘ङ् /’ बनना

सम् + गम = सङ्गम/संगम

सम् + ख्या = संख्या

सम् + घर्ष = संघर्ष

अलम् + कार = अलंकार

तीर्थम् + कर = तीर्थंकर

सन्धि विच्छेद

शंकर = शम् + कर

किंकर = किम् + कर

संगति = सम् + गति

अलंकरण = अलम् + करण

‘सम्’ उपसर्ग के आगे ‘कृ’ धातु से बने शब्द, यथा-करण, कृति, कार, कृत आदि आवे तो संधि करते समय ‘म्’ का तो अनुस्वार हो जाता है तथा उपसर्ग एवं शब्द के बीच ‘स्’ का आगमन हो जाता है। यथा –

सम् + कृत = संस्कृत

सम् + कृति = संस्कृति

सम् + कार = संस्कार

(ii) म् + च, छ, ज, झ के मेल पर म् के स्थान पर ञ् /’ बनना –

सम् + चय = सञ्चय/संचय

पम् + चम = पंचम

सम् + जीवनी = संजीवनी

सन्धि विच्छेद –

सञ्चालन/संचालन = सम् + चालन

सञ्जीवन = सम् + जीवन

मृत्युंजय = मृत्युम् + जय

किंचन = किम् + चन

(iii) म् + ट, ठ, ड, ढ के मेल पर म् के स्थान पर ण/ बनना –

दम् + ड = दण्ड/दंड

खम् + ड. = खण्ड/खंड

अम् + ड = अण्ड/अंड

(iv) म् + त, थ, द, ध, न के मेल पर म् के स्थान पर न् /’ बनना –

सम् + तोष = सन्तोष/संतोष

गम् + तव्य = गन्तव्य/गंतव्य

सम् + धि = सन्धि/संधि

सम् + देश = सन्देश/संदेश

सन्धि विच्छेद –

सन्ताप = सम् + ताप

सन्धान = सम् + धान

सन्दिग्ध = सम् + दिग्ध

सन्ध्या = सम् + ध्या

(v) म् + प, फ, ब, भ, म के मेल पर म् के स्थान पर म् / बनना –

सम् + पन्न = सम्पन्न/संपन्न

सम् + पादन = सम्पादन/संपादन

4 . जब किसी शब्द के अन्त में ‘म्’ हो तथा उसके साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से कोई वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार (ं) ही लगेगा –

सम् + योग = संयोग

सम् + लग्न = संलग्न

सम् + रचना = संरचना

सम् + वत् = संवत्स

संधि विच्छेद –

संयम = सम् + यम

संलिप्त = सम् + लिप्त

संवाद = सम् + वाद

स्वयंवर = स्वयम् + वर

संशोधन = सम् + शोधन

संसाधन = सम् + साधन

संहरण = सम् + हरण

संरक्षक = सम् + रक्षक

5 . यदि किसी शब्द के अन्त में ‘त्’ या ‘द्’ हो तथा उसके साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण ‘च’ या ‘छ’ हो तो ‘त्’ या ‘द्’ के स्थान पर ‘च्’ हो जाता है । यथा –

उत् + चारण उच्चारण

शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र

तत् + छाया = तच्छाया

उत् + छिन्न = उच्छिन्न

सन्धि विच्छेद

सच्चरित्र = सत् + चरित्र

उच्चाटन = उत् + चाटन

उच्छेद = उत् + छेद

विधुच्छटा = विद्युत् + छटा

6 . ‘त्’ या ‘द्’ के साथ ‘ज’ या ‘झ’ के मेल पर ‘त्’ या ‘द्’ के स्थान पर ‘ज्’ बन जाता है –

सत + जन = सज्जन

विपत् + जाल = विपज्जाल

विद्युत् + ज्योति = विद्युज्ज्योति

महत् + झंकार = महज्झंकार

सन्धि विच्छेद –

उज्ज्वल = उत् + ज्वल

जगज्जननी = जगत् + जननी

यावज्जीवन = यावत् + जीवन

वृहज्झंकार = वृहत् + झंकार

7 . ‘त्’ या ‘द्’ के साथ ‘ट’ या ‘ठ’ के मेल पर ‘त्’ या ‘द्’ के स्थान पर ‘ट्’ बन जाता है। जैसे –

तत् + टीका = तट्टीका

सत् + टीका = सट्टीका

वृहट्टीका = वृहत् + टीका

8 . ‘त्’ या ‘द्’ के साथ ‘ड’ या ‘ढ’ के मेल पर ‘त्’ या ‘द्’ के स्थान पर ‘ड्’ बन जाता है –

उत् + डयन = उड्डयन

भवत् + डमरू = भवड्डमरू

उड्डीन = उत् + डीन

9 . ‘त्’ या ‘द्’ के साथ ‘ल’ के मेल पर ‘त्’ या ‘द्’ के स्थान पर ‘ल’ बन जाता है –

उत् + लास = उल्लास

उत् + लंघन = उल्लंघन

तत् + लीन = तल्लीन

तड़ित् + लेखा = तड़िल्लेखा

जगत् + लय = जगल्लय

सन्धि विच्छेद

उल्लेख = उत् + लेख

भगवल्लीन = भगवत् + लीन

10 . ‘त्’ या ‘द्’ के साथ ‘ह’ के मेल पर ‘त्’ या ‘द्’ के स्थान पर ‘द्’ तथा ‘ह’ के स्थान पर ‘ध’ बन जाता है –

उत् + हार = उद्धार/उद्धार

उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत

जगत् + हिताय = जगद्धिताय

महत् + हर्ष = महद्धर्ष

सन्धि विच्छेद

उद्धरण = उत् + हरण

तद्धित = तत् + हित

वृहद्धानि = वृहत् + हानि

पद्धति = पत् + हति

11 . ‘त्’ या ‘द्’ के साथ ‘श’ के मेल पर ‘त्’ या ‘द्’ के स्थान पर ‘च’ तथा ‘श’ के स्थान पर ‘छ’ बन जाता है –

उत् + श्वास = उच्छ्वास

उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट

सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

उत् + शृंखल = उच्छृखल

शरत् + शशि = शरच्छशि

उत् + श्वसन = उच्छ्वसन

सन्धि विच्छेद

श्रीमच्छरच्चन्द्र = श्रीमत् + शरच्चन्द्र

मृच्छकटिकम् = मृत् + शकटिकम्

12 . जब किसी शब्द के अन्त में कोई स्वर हो तथा मिलने वाले शब्द के प्रथम वर्ण में ‘छ’ वर्ण हो तब सन्धि होने पर स्वर तथा ‘छ’ के मध्य ‘च’ का आगमन हो जाता है -इसे च् आगम = चागम संधि भी कहते हैं।

आ + छादन = आच्छादन

अनु + छेद = अनुच्छेद

परि + छेद = परिच्छेद

आ+ छन्न = आच्छन्न

सन्धि विच्छेद

शालाच्छादन = शाला + छादन

गृहच्छिद्र = गृह + छिद्र

प्रच्छन्न = प्र + छन्न

पदच्छेद = पद + छेद

13 . यदि किसी शब्द के अन्त में ‘अ’,’आ’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर (इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ) हो तथा उसके साथ मिलने वाले शब्द के प्रथम वर्ण में ‘स’ हो तो सन्धि होने पर ‘स’ के स्थान पर ‘ष’ बन जाता है।

वि + सम = विषम

अनु + संग = अनुषंग

नि + सिद्ध = निषिद्ध

सु + सुप्त = सुषुप्त

सन्धि विच्छेद

अभिषेक = अभि + सेक

निषेध = नि + सेध

तुषार = तु + सार

सुषम्ना = सु + सम्ना

14 . जब किसी शब्द में कहीं भी ऋ, र, ष वर्ण प्रयुक्त हुआ हो तथा उसके साथ मिलने वाले शब्द में भी कहीं ‘न’ वर्ण हो तथा ‘ऋ’, ‘र’, ‘ष’ एवं ‘न’ के बीच पहले या दूसरे शब्द में कोई स्वर क, ख, ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ बन जाता है। जैसे –

परि + नाम = परिणाम

पुरा + न = पुराण

प्र+ मान = प्रमाण

भक्ष + अन = भक्षण

सन्धि विच्छेद –

प्रयाण = प्र + यान

प्रणाम = प्र + नाम

भूषण = भूष् + अन

तृष्णा = तृष् + ना

यह भी सीखें – Vyanjan Varn Kise Kahate Hain aur Vyanjan Varn Ke Kitne Bhed Hote Hain

विसर्ग संधि (Visarg Sandhi) –

विसर्ग (:) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल पर होने वाले विकार को विसर्ग सन्धि कहते हैं।

नि: + अक्षर (विसर्ग + स्वर) = निरक्षर

दु: + परिणाम (विसर्ग + व्यंजन) = दुष्परिणाम

विसर्ग सन्धि के प्रकार न होकर कतिपय नियम ही हैं –

1 . विसर्ग के साथ ‘च’ या ‘छ’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘श्’ बन जाता है –

निः + चय = निश्चय

निः + छल = निश्छल

दुः + चरित्र = दुश्चरित्र

मनः + चेतना = मनश्चेतना

सन्धि विच्छेद –

तपश्चर्या = तपः + चर्या

हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र

अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु

मनश्चेतना = मनः + चेतना

2 . विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘श हो जाता है –

निः + शुल्क = निश्शुल्क

दु: + शासन = दुश्शासन

यशः + शरीर = यशश्शरीर

सन्धि विच्छेद –

निश्शंक = निः + शंक

दुश्शील = दुः + शील

निश्श्रेयस = निः + श्रेयस

3 . विसर्ग के साथ ‘ट’ या ‘ठ’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष’ हो जाता है –

धनु: + टंकारः = धनुष्टंकार

चतुः + टीका = चतुष्टीका

4 . विसर्ग के साथ ‘ष’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष’ हो जाता है –

चतु: + षष्टि = चतुष्षष्टि

5 . विसर्ग के साथ ‘त’ या ‘थ’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है –

अन्तः – तल = अन्तस्तल

निः + ताप = निस्ताप

विः + तार = विस्तार

दु: + तर =दुस्तर

सन्धि विच्छेद

मनस्ताप = मनः + ताप

बहिस्थल = बहिः + थल

ज्योतिस्तरंग = ज्योतिः + तरंग

वक्षस्थल = वक्षः + थल

6 . विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है –

निः + सन्देह = निस्सन्देह

दुः + साहस = दुस्साहस

दुः + स्वप्न = दुस्स्वप्न

निः + संकोच = निस्संकोच

सन्धि विच्छेद

दुस्साध्य = दु: + साध्य

निस्संतान = निः + संतान

निस्सहाय = निः + सहाय

निस्स्पृह = निः + स्पृह

7 . यदि विसर्ग से पहले वाले वर्ण में ‘अ’ या ‘आ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई हो तो सन्धि होने पर कोई परिवर्तन नहीं होता; विसर्ग ज्यों का त्यों बना रहता है। यथा – मन:कामना

अधः + पतन = अध:पतन

पुनः + प्राप्ति = पुनःप्राप्ति

अन्त: + करण = अन्तःकरण

प्रातः + काल = प्रातःकाल

सन्धि विच्छेद –

पयःपान पयः + पान

तपःपूत = तपः + पूत

मनःप्रसाद मनः + प्रसाद

वयःक्रम = वयः + क्रम

8 . यदि विसर्ग के पहले वर्ण में ‘अ’, ‘आ’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो सन्धि होने पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष’ हो जाता है –

निः + कलंक = निष्कलंक

निः + पाप = निष्पाप

दुः + परिणाम = दुष्परिणाम

निः + फल = निष्फल

सन्धि विच्छेद

निष्काम = निः + काम

चतुष्पद = चतुः + पद

दुष्प्रहार = दु: + प्रहार

धनुष्कोटि = धनुः + कोटि

9 . यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ या ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जाता है किन्तु विसर्ग के पूर्व की ‘इ या ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ में बदल जाती है।

निः + रस = नीरस

निः + रोग = नीरोग

दुः + राज = दूराज

निः + रूज = नीरूज

सन्धि विच्छेद –

नीरव = निः + रव

चक्षूरोग = चक्षुः + रोग

दूरम्य = दु: + रम्य

नीरन्ध्र = निः + रन्ध्र

10 . यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा उसके साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण ‘अ’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तो सन्धि होने पर केवल विसर्ग का लोप हो जाता है, अन्य कोई विकार नहीं होता अर्थात् दोनों शब्द यथावत् रहते हैं उनमें और कोई सन्धि नहीं होती –

अत: + एव = अतएव

मनः + उच्छेद = मनउच्छेद

पयः + आदि = पयआदि

ततः + एव = ततएव

सन्धि विच्छेद

यशइच्छा = यशः + इच्छा

तपउत्तम = तपः + उत्तम

सद्यालय = सद्यः + आलय

मनइच्छा = मनः + इच्छा

पयइच्छा = पयः + इच्छा

11 . यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण ‘अ’ स्वर या कोई घोष व्यंजन (ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह) हो तो सन्धि होने पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जाता है –

मनः + अभिराम = मनोभिराम

प्रथमः + अध्याय = प्रथमोध्याय

मन: + ज = मनोज

यशः + गान = यशोगान

सरः + वर = सरोवर

मनः + रंजन = मनोरंजन

यशः + दा = यशोदा

मनः + व्यथा = मनोव्यथा

वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध

सरः + रूह = सरोरूह

सन्धि विच्छेद

शिरोरेखा = शिरः + रेखा

यशोवर्धन = यशः + वर्धन

अधोवस्त्र = अधः + वस्त्र

तपो भूमि = तपः + भूमि

मनोबल = मनः + बल

मनोदशा = मनः + दशा

12 . यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’, ‘आ’ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण कोई भी स्वर या घोष वर्ण (किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवा वर्ण – ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, तथा य, र, ल, व, ह) हो तो सन्धि होने पर विसर्ग के स्थान पर ‘र’ बन जाता है।

किसी स्वर के मेल पर मिलने वाले स्वर की मात्रा ‘र’ में लग जाती है किन्तु घोष व्यंजन के मेल पर ‘र’ रेफ (‘) के रूप में मिलने वाले व्यंजन के ऊपर लग जाता है –

धनुः + विद्या = धनुर्विद्या

यजुः + वेद = यजुर्वेद

निः + मल = निर्मल

निः + अर्थक = निरर्थक

दुः + अवस्था = दुरवस्था

बहिः + आगत = बहिरागत

दु: + अभियोग = दुरभियोग

निः + उपाय = निरुपाय

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