अव्यय किसे कहते हैं। Avyay in Hindi Grammar

परिभाषा (Definition) – वे शब्द जिनका रूप नहीं बदलता अर्थात् जिनमें लिंग, वचन, कारक, काल आदि के कारण कोई विकार या परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अव्यय या अविकारी कहते हैं।

अव्यय के भेद या प्रकार –

A. क्रिया-विशेषण अव्यय

B. सम्बन्धबोधक अव्यय

C. समुच्चयबोधक अव्यय

D. विस्मयादिबोधक अव्यय

(A.) क्रिया-विशेषण (Ad-verb)

परिभाषा (Definition) – क्रिया पद की विशेषता बतलाने वाले अव्यय शब्द क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।

जैसे – आज, प्रातः, प्रतिदिन, आगे, पीछे, इधर, उधर, अधिक, कम, बिल्कुल, ध्यानपूर्वक, धीरे-धीरे, चुपके-चुपके, अवश्य, शायद, नहीं, किसलिए, क्यों, सहसा, ठीक, ही, केवल, अचानक, चुपचाप आदि।

प्रकार – मुख्यतः क्रिया विशेषण के चार भेद हैं –

1 . कालवाचक क्रिया विशेषण

2 . स्थानवाचक क्रिया विशेषण

3 . परिमाणवाचक क्रिया विशेषण

4 . रीतिवाचक क्रिया विशेषण

1 . कालवाचक क्रिया विशेषण (‘कब’ का उत्तर) –

जिस क्रिया विशेषण से क्रिया के होने के समय का बोध होता है अर्थात् क्रिया की काल या समय सम्बन्धी विशेषता बतलाता है, उन्हें कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। इन्हें तीन भेदों में बाँटा गया है –

(अ) कालबिंदु वाचक (समय वाचक) – आज, कल, अब, जब, अभी, कभी, सायं, प्रातः, परसों, कब, तब, पश्चात, परसों।

(आ) अवधिवाचक – दिनभर, निरन्तर, सदैव, आजकल, नित्य, लगातार, सदा

(इ) बारम्बारतावाचक – प्रतिदिन, हररोज, हरबार, बहुधा, प्रतिवर्ष, कई बार, बार-बार, कभी-कभी

(i) नन्दकिशोर आज आयेगा।

(ii) प्रशान सदैव पढ़ता रहता है।

(iii) भरत प्रतिदिन खेलता है

(iv) ओमप्रकाश बहुधा घूमने जाता है।

2 . स्थानवाचक क्रिया-विशेषण (दिशा हेतु-किधर का उत्तर, कहाँ का उत्तर) –

जिस क्रियाविशेषण शब्द से क्रिया के होने के स्थान का पता चलता है, उसे स्थानवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं। जैसे –

(i) इन्द्र बाहर खड़ा है। सविता ऊपर बैठी है।

(ii) विद्यालय जाने के लिए दाएँ मुड़ना।

इसके दो भेद हैं –

(अ) स्थितिवाचक – आगे, पीछे, दूर, पास, ऊपर, नीचे, भीतर, बाहर, यहाँ, वहाँ, कहाँ, निकट, अन्दर, जहाँ, तहाँ ।

(आ) दिशावाचक – इधर, उधर, दाएँ, बाएँ, की ओर, की तरफ, के दोनों ओर, के चारों ओर, जिधर।

3 . परिणामवाचक क्रिया विशेषण –

वे क्रिया विशेषण जो क्रिया के होने की मात्रा या परिमाण का बोध कराते हैं, उन्हें परिमाण वाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे –

शिवम् बहुत कम खाता है।

रौनक बिल्कुल थक चुकी है।

उतना खाओ, जितना पचा सको।

इन्हें निम्न पाँच भेदों में बाँटा जाता है –

(अ) अधिकता बोधक – बहुत, खूब, अत्यन्त, अति, खूब, सर्वथा, अधिक, ज्यादा, अतिशय

(आ) न्यूनताबोधक – जरा, थोड़ा, किंचित, कुछ, कम

(इ) पर्याप्ति बोधक – कम, यथेष्ट, काफी, बस, सिर्फ, केवल, ठीक, पर्याप्त

(ई) तुलना बोधक – से कम, से अधिक, इतना, उतना, बढ़कर, कितना, जितना

(उ) श्रेणी बोधक – बारी-बारी से, तिल-तिल, थोड़ा-थोड़ा, एक-एक करके, यथाक्रम, यथाविधि

4 . रीतिवाचक क्रिया विशेषण (कैसे का उत्तर) –

वे क्रिया विशेषण जो क्रिया की रीति, विधि या ढंग का बोध कराते हैं, उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे – धीरे, अचानक, पैदल

वह हमारी बातें ध्यानपूर्वक सुन रहा है।

उसने विषय को भली-भाँति समझ लिया है।

काला घोड़ा तेज दौड़ता है।

विशेष – कालवाचक, स्थानवाचक तथा परिमाणवाचक क्रिया विशेषणों के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के क्रिया विशेषणों को रीतिवाचक क्रिया विशेषण के अन्तर्गत रखा जाता है। इनके निम्न भेद हैं –

(i) निश्चयबोधक क्रिया विशेषण – अवश्य, जरूर, निस्सन्देह, वस्तुतः, बेशक, सचमुच, हाँ

नौकर अवश्य आयेगा।

(i) अनिश्चयबोधक क्रिया विशेषण – शायद, संभवतः, प्रायः, कदाचित, अकसर,

हो सकता है शायद पत्र आवे।

(iii) हेतु बोधक – क्यों, क्योंकि, इसलिए, किसलिए, अतएव, अतः

(iv) निषेध वाचक – न, नहीं, मत, कभी नहीं,

मैं नहीं जाऊँगा।

सड़क पर मत खेलो।

(v) प्रश्नवाचक – क्यों, कैसे

(vi) स्वीकृति बोधक – हाँ, जी, ठीक, सच, बिलकुल, बिलकुल ठीक

(vii) अवधारणा बोधक – ही, भी, तो, भर, मात्र, तक

(viii) आकस्मिकता बोधक – सहसा, अचानक, एकाएक, अकस्मात्

(ix) आवृत्ति बोधक – सरासर, चुपचाप, फटाफट, धड़ाधड़, गटागट

(x) विधिबोधक – ध्यानपूर्वक, हाथोंहाथ, धीरे-धीरे, शीघ्र

(xi) अनुकरणबोधक – धड़ाधड़, तडातड़, गटगट

वह गटगट दूध पी गया।

रचना – (1) मूल

(2) यौगिक – रात-दिन, आजकल, क्षणभर, पहले पहल, प्रेमपूर्वक

(B.) सम्बन्धबोधक अव्यय (Sambandhbodhak Avyay)

परिभाषा – वे अव्यय शब्द जो किसी वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयुक्त होकर (जुड़कर) उनका सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त दूसरे संज्ञा या सर्वनाम शब्दों से बताते हैं, उन्हें सम्बन्धबोधक अव्यय या परसर्ग भी कहते हैं। क्योंकि इनके पहले किसी न किसी परसर्ग की आवश्यकता/अपेक्षा रहती है। जैसे –

राम सीता के आगे चल रहे हैं।

वह बीमार होने के कारण अनुपस्थित रहा।

राम के साथ लक्ष्मण भी वन को गये।

वे चाँद की ओर देख रहे हैं।

सैनिकों ने देश के लिए अपना बलिदान दिया।

भेद – सम्बन्धबोधक अव्यय शब्दों का तीन आधारों पर वर्गीकरण किया जाता है – 1 . अर्थ के आधार पर 2 . प्रयोग के आधार पर 3 . व्युत्पत्ति के आधार पर।

1 . अर्थ के आधार पर –

(i) कालवाचक – के पूर्व, के पश्चात्, के पहले, के उपरान्त, के पीछे, के आगे, के बाद।

नेहरूजी के बाद लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने।

(ii) स्थानवाचक – के सामने, के भीतर, के निकट, के समीप, के पास, से दूर, के ऊपर, के नीचे, के बीच, के आगे।

लोकेश की दुकान विद्यालय के सामने है।

उसका घर नदी के निकट है।

(ii) दिशावाचक – के आसपास, की ओर, के पार, की तरफ

राहुल के घर के आसपास ही स्टेडियम है।

(iv) सादृश्य वाचक (समानता) – के समान, के तुल्य, की भाँति, की तुलना में, के योग, के बराबर,

प्रशान्त के समान मेहनती कौन है?

(v) हेतु वाचक – के कारण, के वास्ते, के लिए, के निमित्त, के खातिर, के मारे, के चलते, के हेतु

मेरे कारण तुम वहाँ गये।

(vi) विषयवाचक – के भरोसे, के बाबत, के नामे, के लेखे, का विषय

नेताजी ने भ्रष्टाचार के बाबत भाषण दिया।

(vii) विरोधवाचक – के खिलाफ, के विरुद्ध, उल्टे, के विपरीत, के प्रतिकूल

भारत के विरुद्ध पाकिस्तान आतंकवादी भेज रहा है।

(viii) संग/साहचर्यवाचक – के संग, के साथ, सहचर,के समेत, सहित

राम के संग सीता भी वन गई।

(ix) साधनवाचक – के द्वारा, के सहारे, के माध्यम, के हाथ, मार्फत, जरिये, के बलबूते, के बिना

वायु के बिना जीवन संभव नहीं है।

बढ़ई के द्वारा दरवाजा बनाया गया।

उसे पत्र द्वारा सूचित करो।

(x) तुलनावाचक – की अपेक्षा, की तुलना में, बनिस्पत

सुल्ताना की अपेक्षा रजिया सुन्दर है।

(xi) पार्थक्य वाचक – से दूर, से परे, से हटकर

उसका घर विद्यालय से दूर है।

(xii) विनिमय वाचक – के बदले, एवज, पलटे, जगह

क्रिया विशेषण एवं सम्बन्ध बोधक अव्ययों में अन्तर –

कई अव्यय शब्द क्रिया विशेषण तथा सम्बन्धबोधक अव्यय दोनों रूपों में प्रयुक्त होते हैं किन्तु उनके अन्तर को वाक्य में प्रयोग से आसानी से जान सकते हैं।

जब कोई अव्यय शब्द क्रिया के साथ प्रयुक्त होकर उसकी विशेषता का बोध कराये तो वह क्रिया विशेषण माना जायेगा, जैसे –

राम आगे चल रहे हैं। यहाँ ‘आगे’ शब्द ‘चल रहे क्रिया की विशेषता बतलाता है। अतः क्रिया विशेषण है। किन्तु जब वही अव्यय शब्द किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयुक्त होकर उनका सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त किसी अन्य शब्द के साथ बतलाता है, तब वह ‘सम्बन्ध बोधक अव्यय’ कहलायेगा।

जैसे – सीता के आगे राम चल रहे हैं । यहाँ के ‘आगे’ शब्द सम्बन्धबोधक अव्यय कहलायेगा क्योंकि यह शब्द सीता तथा राम के सम्बन्ध का बोध कराता है।

प्रयोग – सम्बन्ध बोधक अव्यय शब्दों का प्रयोग निम्न तीनों रूपों में होता है –

(i) विभक्ति सहित – मेरे घर के सामने पेड़ है।

(ii) विभक्ति रहित – उसे पत्र द्वारा सूचित करो।

(ii) दोनों रूपों में – धर्मेन्द्र ने पत्र के द्वारा सूचित किया।

धर्मेन्द्र ने पत्र द्वारा सूचित किया।

क्रिया विशेषण रूप मेंसम्बन्ध बोधक अव्यय के रूप में
वह भीतर गया। वह घर के भीतर गया।
राजू बाहर बैठा है।राजू घर के बाहर बैठा है।
तृप्ति ऊपर खड़ी है।तृप्ति छत के ऊपर खड़ी है।

2 . प्रयोग के आधार पर –

इस आधार पर सम्बन्धबोधक अव्ययों को दो भागों में बाँटा जाता है –

(1) सम्बद्ध सम्बन्ध बोधक अव्यय – जो अव्यय शब्द वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा की विभक्तियों के पीछे लगते हैं, उन्हें सम्बद्ध संबंध बोधक अव्यय कहते हैं; जैसे –

वायु के बिना जीवन संभव नहीं है।

विद्यालय के सामने मंदिर है।

(2) अनुबद्ध संबंधबोधक – जो अव्यय शब्द वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा शब्द के विकृत रूप के बाद प्रयुक्त होते हैं, उन्हें अनुबद्ध संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे –

वह किनारे तक पहुँच गया।

3 . व्युत्पत्ति के आधार पर –

व्युत्पत्ति के आधार पर सम्बन्ध बोधक अव्यय शब्दों को दो भागों में बाँटा जाता है –

(1) मूल सम्बन्ध बोधक अव्यय – वे अव्ययं जो मूलरूप में या स्वतंत्र रूप में प्रयुक्त होते हैं, जैसे-तरह, पर्यन्त, बिना, पूर्वक, नाई

(2) यौगिक सम्बन्धबोधक अव्यय – ये वे सम्बन्ध बोधक अव्यय हैं जो किसी संज्ञा, विशेषण, क्रिया या क्रिया विशेषण से बने हैं –

अपेक्षा, उलटा, ऐसा, ऊपर, चलते, जाने, तुल्य, पलटे, भीतर, मारफत, बाहर, समान

(C.) समुच्चय बोधक अव्यय (Samuchchay Bodhak Avyay)

परिभाषा – वे अव्यय शब्द जो किसी वाक्य में दो शब्दों, वाक्यांशों, उपवाक्यों या वाक्यों को परस्पर मिलाने या जोड़ने का कार्य करते हैं, उन्हें समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।

जैसे – और, या, एवम्, बल्कि, इसलिए, तो, फिर, यदि, पुनः, कि, यथा, मानो, तथा, जो, अथवा, परन्तु, लेकिन, मगर, यद्यपि, तथापि, क्योंकि, ताकि, अर्थात् आदि।

भेद (Bhed) –

समुच्चयबोधक अव्यय मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –

1 . समानाधिकरण समुच्चय बोधक अव्यय

2 . व्यधिकरण समुच्चय बोधक अव्यय.

1 . समानाधिकरण समुच्चय बोधक अव्यय –

वे समुच्चयबोधक अव्यय शब्द जो दो या दो से अधिक समान स्थिति वाले घटकों अर्थात् शब्दों, शब्द बन्धों, उपवाक्यों, वाक्यांशों या वाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं, उन्हें समानाधिकरण समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।

जैसे – और, एवम्, तथा, या, अथवा, किंवा, नहीं तो, पर, परन्तु, लेकिन, किन्तु, मगर, वरन्, इसलिए, फलतः, फलस्वरूप, परिणामस्वरूप।

इन्हें निम्न चार भागों में विभक्त किया जाता है –

(i) संयोजक (ii) विभाजक (iii) विरोध सूचक (iv) परिणाम सूचक

(i) संयोजक – वे अव्यय शब्द जो दो समान वर्ग के शब्दों, पदबन्धों, वाक्यांशों या वाक्यों को जोड़ते हैं, संयोजक कहलाते हैं।

जैसे – और, तथा, एवं

कनक और गुंजन गाना गा रही हैं।

सचिन, निखिल एवं चिराग आज आ रहे हैं।

कल रात बादल छाये और खूब वर्षा हुई।

(ii) विभाजक (विकल्प सूचक) – वे अव्यय शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों, पदबन्धों, वाक्यांशों या वाक्यों में विकल्प प्रकट करते हुए उन्हें आपस में मिलाते हैं।

जैसे – या, अथवा, किंवा

महेन्द्र या भूपेन्द्र आज अवश्य आएगा।

(iii) विरोध सूचक – वे अव्यय शब्द जो वाक्य में प्रयुक्त दो कथनों में से प्रथम कथन का विरोध या निषेध प्रकट करते हैं। जैसे – पर, परन्तु, किन्तु, मगर, बल्कि, फिर भी, लेकिन, वरन्

(iv) परिणामसूचक – वे अव्यय शब्द जो वाक्य में प्रयुक्त पहले उपवाक्य तथा उसके परिणाम का संकेत करने वाले अन्य उपवाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं।

जैसे – नहीं तो, अन्यथा, फलतः, इसलिए, फलस्वरूप, परिणामस्वरूप, कि, अतः, अतएव

2 . व्यधिकरण समुच्चय बोधक –

समुच्चय बोधक अव्यय जो एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्यों को मुख्य उपवाक्य से जोड़ते हैं, उन्हें व्यधिकरण समुच्चय बोधक अव्यय कहते हैं।

जैसे – यदि, क्योंकि, चूँकि, ताकि, इसलिए,

इन्हें निम्न चार भागों में विभक्त किया जाता है –

(i) करण सूचक (ii) संकेत सूचक (iii) स्वरूप सूचक (iv) उद्देश्य सूचक।

(i) करण सूचक – वे अव्यय शब्द जो वाक्य में प्रयुक्त प्रधान उपवाक्य तथा आश्रित उपवाक्यों के कार्य-कारण सम्बन्ध का बोध कराते हैं।

जैसे – क्योंकि, चूँकि, इसलिए, कि, ताकि

आज शहर में हड़ताल थी, इसलिए विद्यालय बन्द था।

गुंजन नृत्य प्रतियोगिता में भाग न ले सकी क्योंकि वह बीमार थी।

(ii) संकेत सूचक – वे समुच्चय बोधक अव्यय शब्द जो वाक्य में प्रयुक्त दो उपवाक्यों को संकेत से जोड़ते हैं।

जैसे – यदि-तो, यद्यपि-तथापि, यद्यपि-परन्तु, जो-तो, चाहे, परन्तु

यदि तुम परिश्रम करते तो अवश्य सफल होते।

यद्यपि इस वर्ष अच्छी वर्षा हुई तथापि बाँध नहीं भरे।

(iii) स्वरूप सूचक/व्याख्या सूचक – वे अव्यय शब्द जो वाक्य में प्रयुक्त पूर्व के उपवाक्य या वाक्यांश के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करते हैं। जैसे – अर्थात्, यानि, मानो।

वह अहिंसावादी है यानि गाँधीजी का पुजारी है।

उसका मुँह कमल जैसा है अर्थात् सुन्दर है।

(iv) उद्देश्य सूचक – वे अव्यय शब्द जो वाक्य में आश्रित उपवाक्य के पूर्व में प्रयुक्त होकर मुख्य उपवाक्य के उद्देश्य को स्पष्ट करते हैं। जैसे – कि, ताकि, जिससे, इसलिए कि

प्रशान्त अत्यधिक मेहनत कर रहा है ताकि चयन हो सके।

(D.) विस्मयादिबोधक अव्यय (Vismayadibodhak Avyay)

परिभाषा – वे अव्यय शब्द जो वक्ता के हर्ष, शोक, विस्मय, घृणा, प्रशंसा, प्रसन्नता, भय, क्रोध आदि भावों का बोध कराते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय या भावादिबोधक अव्यय कहते हैं।

जैसे – वाह!, अरे!, ओह !, ठीक!, छिः!, बाप रे!, चुप!, बचो ! आदि।

भावों के अनुसार इन्हें निम्न भागों में बाँटा जाता है –

(i) हर्ष बोधक – वे अव्यय शब्द जो हर्ष के भाव का बोध कराते हैं। जैसे-वाह! धन्य!, क्या खूब!, बहुत अच्छा!, शाबाश!, आहा!

अहा! आज घूमने जायेंगे।

(ii) आश्चर्यबोधक – वे अव्यय शब्द जो आश्चर्य या विस्मय के भाव का बोध कराते हैं। जैसे – अहो!, क्या!, अरे!, हैं !, सच!, ओहो!

अरे! तुम किधर से आ गये ?

(iii) शोक बोधक – वे अव्यय शब्द जिनसे शोक के भाव का बोध होता है। जैसे-हाय!, आह !, उफ!, ओह!, हे राम!, राम-राम!, हे भगवान!

हे भगवान् ! इस रोग से कब मुक्ति मिलेगी।

(iv) घृणाबोधक/तिरस्कार बोधक – वे अव्यय शब्द जिनसे घृणा के भाव का बोध होता है। जैसे-छिः!, धिक्!, थू-थू!, धत्, छिः छिः, हट, दुर!

छिः छिः! कितना घृणित दृश्य है।

हट! मैं तुमसे बात करना नहीं चाहता।

(v) भयबोधक – वे अव्यय शब्द जिनसे भय के भाव का बोध हो । जैसे-बाप रे!, हाय!, हा!, होय!, बचाओ!

(vi) अनुमोदन बोधक/स्वीकार बोधक – वे अव्यय शब्द जिनसे किसी बात का अनुमोदन या स्वीकृति का बोध हो।

जैसे – हाँ!, जी हाँ!, ठीक!

हाँ, मैं भी यही चाहता हूँ।

(vii) चेतावनी बोधक – वे अव्यय शब्द जो किसी को सावधान करने चेतावनी देने के भाव का बोध कराते हैं। जैस – सावधान!, खबरदार!, बचो!

सावधान! आगे खतरनाक मोड़ है।

(viii) प्रशंसा बोधक – वे अव्यय शब्द जिनसे किसी की प्रशंसा के भाव का बोध हो। जैसे-शाबास!, वाह!, अति सुन्दर!

(ix) क्रोध बोधक – वे अव्यय शब्द जिनसे रोष, क्रोध आदि भाव की अभिव्यक्ति हों। जैसे-चुप!, धुत!, हट!, ठहर!, चुप करो!, कब से अपशब्द बोल रहे हो।

(x) इच्छा बोधक – वे अव्यय शब्द जिनसे किसी की इच्छा की अभिव्यक्ति हो, जैसे-काश! काश! मेरा भी चयन हो जाता।

(xi) आशीर्वाद बोधक – वे अव्यय शब्द जिनके द्वारा किसी को आशीर्वाद देने का बोध हो। जैसे – खुश रहो!, जीते रहो!, दीर्घायु हो!, जीते रहो!, चिरंजीव हो!

(E.) निपात (Nipat)

परिभाषा – कुछ ऐसे अव्यय शब्द भी होते हैं, जो वाक्य के आवश्यक अंग तो नहीं होते, केवल सहायक शब्द मात्र होते हैं, किन्तु वाक्य में किसी शब्द या पद के बाद प्रयुक्त होकर, उस शब्द या पद के अर्थ में एक विशेष प्रकार का बल भर देते हैं, अवधारणा ला देते हैं, उन अव्यय शब्दों को अवधारक या निपात कहते हैं।

अतः निपात वे अव्यय हैं जिनका अपना स्वयं का कोई अर्थ नहीं होता अर्थात् इनमें लिंग, वचन, कारक के कारण कोई विकार उत्पन्न नहीं होता।

हिन्दी में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण निपात हैं – यथा-ही, भी, तो, तक, मात्र/केवल, भर, नहीं, न, सा, मत, हाँ।

1 . ‘ही’ का प्रयोग – अभिषेक ही आयेगा। वह फुटबॉल ही खेलता है। वह गायेगा ही।

2 . ‘भी’ का प्रयोग – प्रशान्त भी आयेगा। वह गाना भी गायेगा। कल दिल्ली भी जायेगा।

3 . ‘तो’ का प्रयोग – मैं तो जाता हूँ। आप तो विवाह में आये नहीं। मैं वहाँ जाता तो हूँ।

4 . ‘तक’ का प्रयोग – आपने पत्र तक नहीं दिया। आप भोज में आये तक नहीं।

5 . ‘मात्र/केवल’ का प्रयोग – उसे मजदूरी के सौ रुपये मात्र मिले। तुम्हें केवल सौ रुपये मिलेंगे। केवल धन के बल से सब कुछ नहीं होता।

6 . ‘भर’ का प्रयोग – मैं उसे जानता भर हूँ। चार अक्षर भर पढ़ने से कोई विद्वान् नहीं होता।

7 . ‘जी’ का प्रयोग – पिताजी आज आ रहे हैं। गाँधीजी ने आजादी दिलाई।

निपातों का वर्गीकरण –

कतिपय विद्वान् उक्त निपातों का निम्नानुसार वर्गीकरण करते हैं –

1 . बलदायक सीमाबोधक निपात – ही, भी, तो, तक, केवल, सिर्फ

प्रशान्त ही अजमेर जायेगा।

तृप्ति भी प्रशान्त के साथ जायेगी

वे तो पुष्कर जायेंगे।

2 . नकारबोधक निपात – नहीं, जी नहीं

जी नहीं मेरे पास कुछ नहीं है।

3 . प्रश्न बोधक निपात – क्या, न

क्या वह पढ़ रहा है?

तुम मेरे साथ चलोगे न?

4 . विस्मयादिबोधक निपात – क्या, काश

क्या वह जीत गया?

5 . निषेध बोधक निपात – मत, ना

वहाँ मत जाओ।

इधर मत खेलो।

6 . तुलनाबोधक निपात – सा, सी, से

उस सी सुन्दर कोई दूसरी नहीं है।

भरत सा भाई मिलना कठिन है।

7 . आदर बोधक निपात – जी

पिताजी आज आ रहे हैं।

भाई जी आज बाहर जा रहे हैं।

8 . अवधारणा बोधक निपात – ठीक, लगभग, करीब

9 .स्वीकार्य बोधक निपात – हाँ, जी, जीहाँ

हाँ, मैं कल जयपुर जाऊँगा।

विशेष – निपात का अपना स्वतंत्र वस्तुपरक अर्थ नहीं होता।

2 . ये वाक्य के आवश्यक अंग नहीं माने जाते हैं।

3 . वाक्य में प्रयुक्त होने पर ये वाक्य के सम्पूर्ण अर्थ को प्रभावित करते हैं क्योंकि जिस शब्द के साथ प्रयुक्त होते हैं उसको अतिरिक्त अर्थ प्रदान करते हैं।

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