पुस्तकालय पर निबंध – Pustakalaya Par Nibandh in Hindi

पुस्तकालय ज्ञान का केंद्र है, जहाँ हर तरह की पुस्तकों का संग्रह किया जाता है। यह वह स्थान है, जहाँ सभी तरह के लोग एकसाथ बैठकर अच्छी-अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं।

पुस्तकालय का सीधा-सादा अर्थ है, पुस्तकों के लिए आलय अर्थात पुस्तकों के लिए घर। यहां उपयोगी पुस्तकों का संग्रह किया जाता है, जिससे मनुष्य के चरित्र का निर्माण होता है और जीवन की उन्नति होती है।

इसीलिए अच्छे पुस्तकालय के लिए अच्छी पुस्तकों की आवश्यकता होती है। अच्छी पुस्तकों के संग्रह और अच्छी व्यवस्था से ही अच्छे पुस्तकालय बनते हैं।

पुस्तकालय हमारे हृदय को विशाल और जीवन को उन्नत बनाता है। यहाँ पुस्तकों की संगति और सूचनाओं से हमारे मन में ज्ञान के नए-नए फूल खिलते हैं; हमें देश-विदेश की नयी और पुरानी बातें सीखने को मिलती हैं।

पुस्तकालय में कीमती पुस्तकें भी रहती हैं, जिन्हें साधारण लोग खरीद नहीं पाते। यहाँ हम कम से कम खर्च में कीमती किताबें पढ़ लेते हैं। पुस्तकालय से निरक्षरता और अशिक्षा दूर होती है।

पास-पड़ोस के जो लोग दूसरों को पुस्तकालय में पढ़ते देखते हैं, वे भी पढ़ाई की तैयारी करने लगते हैं। इस प्रकार, अनपढ़ लोगों को भी लाभ पहुंचता है।

कुछ लोग मनोरंजन के लिए पुस्तकालयों में जाते हैं। लेकिन, यहाँ का मनोरंजन अध्ययन के आनंद का मनोरंजन है। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि पुस्तकालय मनुष्य के चरित्र का निर्माण करता है और हमें हर तरह से फायदा पहुंचाता है।

पुस्तकालय के तीन प्रकार होते हैं —

(क.) व्यक्तिगत पुस्तकालय

(ख.) सार्वजनिक पुस्तकालय

(ग.) राजकीय पुस्तकालय।

व्यक्तिगत पुस्तकालय का संगठन को विद्याप्रेमी व्यक्ति ही करता है। इसमें वह अपनी रूचि के अनुसार पैसे लगाकर पुस्तकें खरीदता है और इनका संग्रह करता है। इन पुस्तकों का उपयोग उसके परिवार के लोग करते हैं।

सार्वजनिक पुस्तकालय साधारण लोगों के सहयोग से खोला जाता है और जनता के लाभ को ध्यान में रखकर पुस्तकें खरीदी जाती है। जब केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार अपने खर्च से जनता के लिए पुस्तकालय खुलती है, तब वह राजकीय पुस्तकालय कहलाता है।

भारत में कोलकाता का राष्ट्रीय पुस्तकालय इस देश का सबसे बड़ा राजकीय पुस्तकालय है। इसमें दस लाख पुस्तकें होने का अनुमान है। जीवन के विकास के लिए पुस्तकालय बहुत आवश्यक है।

स्वाध्याय ही हमें जीवन के हर कार्यक्षेत्र में योग्य बनाता है और स्वाध्याय का साधन पुस्तकालय ही है। अतः पुस्तकालयों की अधिक संख्या में स्थापना देश की प्रगति का प्रमाण मानी जाएगी।

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