वाक्य किसे कहते हैं और वाक्य के कितने भेद होते हैं पूरी जानकारी पढ़ें

परिभाषा : – भाषा की सबसे छोटी इकाई कहलाती है वर्ण; वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं तथा शब्दों का सार्थक समूह ” वाक्य ” कहलाता है।

अतः वाक्य शब्द समूह का वह सार्थक विन्यास होता है, जिससे उसके अर्थ एवं भाव की पूर्ण एवं सुस्पष्ट अभिव्यक्ति होती है।

वाक्य के भेद (Vakya Ke Kitne Bhed Hote Hain) –

सामान्यतः निम्न तीन दृष्टियों से वाक्यों के भेद किए जाते हैं –

1 . क्रिया की दृष्टि से

2 . अर्थ की दृष्टि से

3 . रचना की दृष्टि से

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1 . क्रिया के आधार पर वाक्य के भेद (Kriya Ke Aadhar Par Vakya Ke Kitne Bhed Hote Hain) –

क्रिया के आधार पर वाक्यों को तीन भागों में बाँटा जाता है –

(i) कर्तृवाच्य प्रधान वाक्य

(ii) कर्मवाच्य प्रधान वाक्य

(iii) भाववाच्य प्रधान वाक्य

(i) कर्तृवाच्य प्रधान वाक्य –

परिभाषा – जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का सीधा व प्रधान सम्बन्ध कर्ता से होता है अर्थात् वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के लिंग, वचन कर्ताकारक के अनुसार प्रयुक्त होते हैं तो उसे कर्तृवाच्य प्रधान वाक्य कहते हैं।

जैसे –

अशोक अजमेर में रहता है।

रोशन खाना बना रही है।

(ii) कर्मवाच्य प्रधान वाक्य –

परिभाषा – जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का केन्द्र बिन्दु कर्ता न होकर कर्म हो, अर्थात् क्रिया के लिंग, वचन, कर्ता के अनुसार न होकर कर्म के अनुसार हों उसे कर्मवाच्य प्रधान वाक्य कहते हैं।

जैसे –

नीतू द्वारा चाय बनायी गई।

भूपेन्द्र द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है।

(iii) भाववाच्य प्रधान वाक्य –

परिभाषा – जब वाक्य में न की प्रधानता होती है न कर्म की, बल्कि भाव की प्रधानता हो तथा क्रिया एकवचन, पुल्लिंग, अकर्मक एवं अन्यपुरुष में भाव के अनुसार हो उसे भाववाच्य प्रधान वाक्य कहते हैं।

जैसे –

गुंजन से चला नहीं जाता।

गार्गी से पढ़ा नहीं जाता।

2 . अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद (Arth Ke Aadhar Par Vakya Ke Kitne Bhed Hote Hain) –

अर्थ के आधार पर वाक्यों को निम्न 8 प्रकारों में बाँटा जाता है –

(i) विधिवाचक (विधानवाचक/विधनार्थक) वाक्य (Imperative Sentence) –

परिभाषा – जिन वाक्यों में किसी कार्य या क्रिया का होना पाया जाता है; अर्थात् किसी के अस्तित्व का बोध होता है, उन्हें विधिवाचक वाक्य कहते हैं।

जैसे –

तृप्ति पुस्तक पढ़ती है।

गुंजन ने गाना गाया।

(ii) निषेधवाचक (नकारात्मक ) वाक्य (Negative Sentence) –

परिभाषा – जिन वाक्यों से किसी कार्य के निषेध अर्थात् न होने का बोध होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे –

भूपेन्द्र आज नहीं आएगा।

झूठ मत बोलो।

(iii) प्र्श्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence) –

परिभाषा – जिन वाक्यों में प्रश्न किया जाता हो या किसी से कोई बात पूछी जाए अर्थात् किसी कार्य या विषय के सम्बन्ध में प्रश्न पूछने का भाव हो, उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं।

आप कल कहाँ गये थे ?

उस मकान में कौन रहता है ?

(iv) आज्ञावाचक (आज्ञार्थक) वाक्य –

परिभाषा – जिन वाक्यों में किसी अन्य के द्वारा आज्ञा, आदेश, उपदेश, प्रार्थना या अनुमति देने का बोध होता है, उन्हें आज्ञा वाचक वाक्य कहते हैं।

जैसे –

तुम्हें यह काम कर लेना होगा।

बड़ों का आदर करो।

कृपया एक गिलास पानी दीजिए।

तुम जा सकते हो।

(v) इच्छावाचक (इच्छार्थक/इच्छा बोधक) वाक्य –

परिभाषा – जिन वाक्यों में वक्ता की इच्छा, आशा या आशीर्वाद का भाव व्यक्त होता है उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।

जैसे –

आपकी यात्रा मंगलमय हो।

आइए, कुछ खा लें।

भगवान तुम्हें चिरायु करे।

चलो, सैर करने चलें।

(vi) संदेहवाचक (संदेहार्थक/संदेह बोधक वाक्य) वाक्य –

परिभाषा – जिन वाक्यों से कार्य के होने में संदेह अथवा संभावना का बोध हो तथा संदेह या संभावना हेतु शायद, संभवतः आदि में से किसी शब्द का प्रयोग हो, उन्हें संदेह वाचक वाक्य कहते हैं।

शायद, संभवतः शब्दों वाले वाक्यों के अन्त में क्रिया में गा, गी, गे, का प्रयोग नहीं होता।

शायद आज वर्षा आए।

संभवतः उसका चयन हो जाए।

(vii) संकेतवाचक (शर्त बोधक वाक्य) वाक्य –

परिभाषा – जिन वाक्यों में दो क्रियाएँ प्रयुक्त हों तथा एक क्रिया की पूर्ति दूसरी क्रिया पर निर्भर हो अर्थात् कार्य सिद्धि के लिए कुछ शर्तों का पूरा होना आवश्यक हों वे वाक्य संकेत वाचक वाक्य कहलाते हैं।

नौकरी मिल जाती तो संकट कट जाता।

आप उपस्थित होते, तो इतनी मुसीबत न आती।

यदि तुम समय पर जाते तो गाड़ी मिल जाती।

बिजली आती तो कुछ दिखाई देता।

(viii) विस्मयादिवाचक (विस्मयादि बोधक) वाक्य (Interjective Sentence) –

परिभाषा – जिन वाक्यों से आश्चर्य, विस्मय, हर्ष, शोक, घृणा आदि के भाव व्यक्त हों, उन्हें विस्मयादिवाचक
वाक्य कहते हैं।

वाह! आपने तो कमाल कर दिया !

छिः छि! कितनी गंदगी है!

अरे! इतना लम्बा साँप!

हाय! कितनी गर्मी है!

3 . रचना के आधार पर वाक्य में भेद (Rachna Ke Aadhar Par Vakya Ke Kitne Bhed Hote Hain) –

रचना के आधार पर वाक्यों को निम्न तीन भागों में बाँटा जाता है –

(क.) साधारण या सरल वाक्य

(ख) मिश्र या मिश्रित वाक्य

(ग) संयुक्त वाक्य

(क) साधारण वाक्य (Simple Sentence) –

परिभाषा – जिन वाक्यों में एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय हो, उन्हें साधारण वाक्य कहते हैं।

सन्तोष बच्चों को पढ़ा रही है।

जया पैसे जमा कराने बैंक गयी।

विशेष – वाक्य में जिसके विषय में कहा जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं, उद्देश्य के दो अंग होते हैं – (i) कर्ता तथा (ii) कर्ता का विस्तारक।

कर्ता – क्रिया के करने वाले को कर्ता कारक कहते हैं।

कर्ता का विस्तारक – वे शब्द जो कर्ता की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें कर्ता का विस्तारक कहते हैं।

विधेय – उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, विधेय कहलाता है। विधेय के छः अंग बतलाये गये हैं –

(i) क्रिया (ii) क्रिया का विस्तारक (iii) कर्म (iv) कर्म का विस्तारक (v) पूरक (vi) पूरक का विस्तारक

(i) क्रिया – वाक्य में प्रयुक्त जिस शब्द से किसी कार्य का करना या होना पाया जाता है। उसे क्रिया कहते हैं।

(ii) क्रिया का विस्तारक – वे शब्द जो वाक्य में प्रयुक्त क्रिया की विशेषता बतलाते हैं, क्रिया के विस्तारक कहलाते हैं।

(iii) कर्म – वाक्य में जिस शब्द पर क्रिया का फल पड़ता है, उसे कर्म कहते हैं।

(iv) कर्म का विस्तारक – वह शब्द जो वाक्य में प्रयुक्त कर्म की विशेषता बतलाता है, कर्म का विस्तारक कहलाता है।

(v) पूरक – जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया अपूर्ण हो, तब क्रिया के स्थान पर प्रयुक्त शब्द पूरक कहलाता है।

(vi) पूरक का विस्तारक – पूरक की विशेषता बतलाने वाला शब्द पूरक का विस्तारक कहलाता है।

आगरा का ताजमहल दर्शनीय स्थल है।

वाक्य में प्रयुक्त ‘स्थल’ शब्द पूरक है तथा ‘दर्शनीय’ शब्द ‘स्थल’ पूरक की विशेषता बतलाने के कारण पूरक का विस्तारक है।

(ख) मिश्र या मिश्रित वाक्य (Complex Sentence) –

परिभाषा – जिन वाक्यों में एक प्रधान उपवाक्य तथा एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य हो, उन्हें मिश्र या मिश्रित वाक्य कहते हैं।

जैसे –

1 . प्रधानाध्यापक जी ने कहा कि विद्यालय मैं कल अवकाश रहेगा।

2 . कामायनी एक महाकाव्य है जो प्रसाद की रचना हैं।

3 . जब तुम आये तब मैं सो रहा था।

  • प्रधान उपवाक्य – जो उपवाक्य पूरे वाक्य से अलग लिखा जा सके तथा जिसका अर्थ किसी दूसरे उपवाक्य पर निर्भर न रहे, अतः जो स्वतः पूर्ण उपवाक्य को प्रधान उपवाक्य कहते हैं।

जो उपवाक्य प्रधान कर्ता एवं प्रधान क्रिया से बना होता है, उसे प्रधान उपवाक्य कहते हैं। उक्त वाक्यों में प्रधानाध्यापक जी ने कहा, ‘कामायनी एक महाकाव्य है’ तथा ‘मैं सो रहा था’ उपवाक्य प्रधान उपवाक्य हैं।

  • आश्रित उपवाक्य – जो उपवाक्य अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता बल्कि प्रधान उपवाक्य के आश्रित रहता है, उसे आश्रित उपवाक्य कहते हैं।

उक्त वाक्यों में ‘विद्यालय में कल अवकाश रहेगा’, ‘जो प्रसाद की रचना है’ तथा ‘जब तुम आये’ उपवाक्य हैं।

आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं –

(i) संज्ञा उपवाक्य (Noun Clause) (ii) विशेषण उपवाक्य (Adjective Clause) (iii) क्रिया विशेषण उपवाक्य (Adverbial Clause)

(i) संज्ञा उपवाक्य – जब कोई उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की किसी संज्ञा या संज्ञा पदबंध के स्थान पर प्रयुक्त होता है, अर्थात्जो कर्म अथवा पूरक का काम दें।

जब प्रधान उपवाक्य को काव्य में पहले प्रयुक्त किया गया हो तो संज्ञा उपवाक्य प्रायः ‘कि’ योजक से आरम्भ होता है

अन्यथाप्रधान उपवाक्य के पहले अल्प विराम प्रयुक्त होगा – उसने तुम्हारे घर चोरी की, यह पूर्णतः असत्य है। यह पूर्णतः असत्य है कि उसने तुम्हारे घर चोरी की। उसे “संज्ञा उपवाक्य” कहते हैं।

अध्यापक ने कहा कि शोर नहीं करें ।

माता-पिता की इच्छा है कि पुत्र डॉक्टर बने।

गाँधीजी ने कहा कि सदा सत्य बोलो।

इनसे पूछिए कि ये कौन हैं?

(ii) विशेषण उपवाक्य – जो आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है, उसे विशेषण उपवाक्य कहते हैं। विशेष उपवाक्य का प्रारम्भ प्रायः जो, जिसका, जिसकी, जिसके, जिसने आदि से होता है।

जो विद्वान होते हैं, उनका सभी आदर करते हैं।

गाय जिसकी तुम पूजा करते थे, आज मर गई।

यह वही आदमी है, जिसने कल चोरी की थी।

‘साकेत’ एक महाकाव्य है, जो गुप्तजी की रचना है।

(iii) क्रिया विशेषण उपवाक्य – जो आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की क्रिया की काल, स्थान, रीति, शर्त, कारण आदि विशेषता बताता है

अर्थात् जिस आश्रित उपवाक्य का प्रयोग क्रिया विशेषण की भाँति किया जाता है, उसे क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते हैं। इनका प्रारम्भ प्रायः यदि, क्योंकि, यद्यपि, जब, तक, जहाँ, जैसे से होता है।

जब तुम आये, तब मैं सो रहा था।

यदि तुम मेहनत करते, तो अवश्य सफल होते।

क्रिया विशेषण के प्रकार के अनुसार इनके भी निम्न भेद किए जाते हैं –

(i) काल सूचक उपवाक्य –

जब तक मैं नहीं लौटू, तब तक तुम यहीं रहना।

जब मैं स्कूल पहुँचा तब घंटी बज रही थी।

(ii) स्थान वाचक उपवाक्य –

जहाँ अभी रेगिस्तान है वहाँ पहले समुद्र था।

जहाँ तुम पढ़ते हो, मैं भी वहीं पढ़ता हूँ।

(iii) परिमाण वाचक उपवाक्य –

तुम जितनी मेहनत करोगी, उतनी ही सफलता मिलेगी।

जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा।

(iv) रीतिवाचक उपवाक्य –

तुम्हें वैसा करना चाहिए जैसा वे कहते हैं।

(v) हेतु वाचक उपवाक्य/कारण वाचक –

यदि, क्योंकि, जिससे कि चाहे या भले ही से प्रारम्भ हो।

यदि अच्छी वर्षा होती, तो फसल उत्पन्न होती।

(ग) संयुक्त वाक्य (Sanyukt Vakya) –

परिभाषा – वे वाक्य जिनमें दो या दो से अधिक साधारण वाक्य या दो या दो से अधिक प्रधान उपवाक्य या दो या दो से अधिक समानाधिकरण उपवाक्य किसी समुच्चय बोधक अव्यय (और, तथा, एवं, या, अथवा, किन्तु, परन्तु, लेकिन, बल्कि, अतः आदि) से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते हैं।

श्याम बाजार गया और आम लेकर आया।

भरत काम कर रहा है किन्तु नन्दू सो रहा है।

आप चाय लेंगे या आपके लिए खाना लगाऊँ।

बिजली चमक रही है और बादल गरज रहे हैं।

हिंदी व्याकरण (Hindi Grammar) –

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