क्रिया : Kriya Kise Kahate Hain in Hindi Grammar

परिभाषा : – ‘क्रिया’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है, किसी काम का किया जाना या होना।

व्याकरण में भी वे शब्द ‘क्रियापद’ कहलाते हैं, जिनके द्वारा किसी कार्य या काम के करने या होने का बोध होता है। जिस विकारी शब्द के प्रयोग से हम किसी वस्तु के विषय में कुछ विधान करते हैं, उसे क्रिया कहते हैं।

संस्कृत में क्रिया के मूल अंश को ‘धातु‘ कहते हैं; जैसे – लिख, चल, जा, गा, देख आदि।

हिंदी में इन मूल धातु के साथ ‘ना‘ प्रत्यय जोड़कर क्रिया का सामान्य रूप बनता है, यथा – लिखना, चलना, जाना, गाना, देखना आदि।

क्रिया का महत्त्व

हिन्दी में क्रिया पद को वाक्य का आवश्यक अंग माना जाता है, क्योंकि क्रिया पद से ही काम की पूर्णता का बोध होता है, क्रिया के बिना कोई वाक्य पूरा नहीं होता।

हर वाक्य में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में क्रिया विद्यमान रहती है। वाक्य में कर्ता, कर्म या भाव की स्थिति क्या है तथा क्या कार्य हो रहा है, इसका बोध क्रिया के द्वारा ही होता है।

क्रिया के भेद (Kriya Ke Bhed in Hindi Grammar) –

वाक्य में प्रयुक्त अर्थ (कर्मकारक), क्रिया का प्रयोग तथा काल के आधार पर क्रिया के भेद किए गये हैं –

1 . कर्मकारक के आधार पर, कर्म के आधार पर,

2. अर्थ के आधार पर

1 . कर्म के आधार पर क्रिया के भेद –

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का फल कर्ता पर या कर्म पर पड़ता है; इस आधार पर क्रिया के मुख्यतः दो भेद किये जाते हैं। –

1 . अकर्मक क्रिया

2 . सकर्मक क्रिया

(1 .) अकर्मक क्रिया (Akarmak Kriya) –

जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के लिए किसी कर्म की आवश्यकता नहीं होती, फलतः कर्म के अभाव में क्रिया का फल कर्ता पर ही पड़ता है, तब वह क्रिया अकर्मक क्रिया कहलाती है।

कुछ क्रियाएँ सदैव अकर्मक ही होती हैं, जैसे – अकड़ना, उगना, उछलना, उठना, कूदना, क्षीण होना, खेलना, चमकना, जागना, ठहरना, डरना, दौड़ना, बैठना, मारना, रोना, शरमाना, सोना, हँसना, होना, बढ़ना, जीना, बरसना, उड़ना, दहाड़ना, भागना

गुंजन नाचती है।

अभिषेक हँसता है।

बिल्ली भाग रही है।

दादी कुर्सी पर बैठी है।

शेर दहाड़ता है।

तोता उड़ रहा है।

पहचान – जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया से ‘कौन’ प्रश्न करने पर जो उत्तर मिलता है वह कर्ता कारक होता है किन्तु क्रिया से क्या’ ‘किसको’ प्रश्न करने पर कोई उत्तर नहीं मिलता अर्थात् वाक्य में कर्म का अभाव है; तब ऐसी क्रिया को अकर्मक क्रिया कहते हैं।

जैसे –

प्रशान्त दौड़ता है।

साँप रेंगता है।

रजिया रोती है।

जॉन डरता है।

अकर्मक क्रिया के भेद –

अकर्मक क्रिया मुख्यतः दो प्रकार की होती है –

(i) पूर्ण अकर्मक क्रिया

(ii) अपूर्ण अकर्मक क्रिया

(i) पूर्ण अकर्मक क्रिया – जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया कर्म के बिना भी पूर्ण होती है, उसे पूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं।

जैसे –

मेघना सो रही है।

रस्सी ऐंठती है।

नदी बहती है।

मोर नाचता है।

पूर्ण अकर्मक क्रिया के दो उपभेद किए जाते हैं –

(अ) स्थित्यर्थक पूर्ण अकर्मक क्रिया – वाक्य में प्रयुक्त वह अकर्मक क्रिया जिसमें उसका कर्त्ता पूर्णतः स्थिर अवस्था में रहता है;

जैसे –

तृप्ति सो रही है।

बच्चा डरता है।

शेर दहाड़ता है।

पक्षी पेड़ पर बैठा है।

(ब) गत्यर्थक पूर्ण अकर्मक क्रिया – वाक्य में प्रयुक्त वह अकर्मक क्रिया जिसमें कर्त्ता गतिमान स्थिति में रहता है, जैसे –

पक्षी आकाश में उड़ रहे हैं।

वर्षा हो रही है।

बच्चे पानी में तैर रहे हैं।

वह घर से निकल रहा है।

(ii) अपूर्ण अकर्मक क्रिया – वाक्य में प्रयुक्त वे अकर्मक क्रियाएँ जिनका अर्थ वाक्य में प्रयुक्त कर्ता (उद्देश्य) से पूरा नहीं होता, अतः अर्थ पूरा करने के लिए कर्ता के साथ संबंध रखने वाली किसी संज्ञा या विशेषण शब्द की पूरक के रूप में आवश्यकता बनी रहती है, अतः पूरक के प्रयोग पर ही, अर्थ स्पष्ट होता है, उसे अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं;

जैसे –

मोहन चालाक निकला।

आशा बीमार है।

उसका भाई डॉक्टर बनेगा।

(2) सकर्मक क्रिया (Sakarmak Kriya) –

जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के व्यापार या कार्य का फल कर्ता पर न पड़कर वाक्य में प्रयुक्त कर्म पर पड़ता है; अर्थात् क्रिया के प्रयोग में कर्म की संभावना या आवश्यकता बनी रहती है, तो उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं;

जैसे –

धर्मेन्द्र खाना खाता है।

गुंजन गाना गाती है।

पिंकी चाय बना रही है।

कनक पुस्तक पढ़ रही है।

पहचान – वाक्य में प्रयुक्त क्रिया से क्या, किसे, किसको’ प्रश्न करने पर कोई उत्तर मिले, वहाँ वह क्रिया सकर्मक क्रिया होती है;

जैसे –

हम रोज आम खाता है।

जया बच्चों को पढ़ाती है।

सकर्मक क्रिया के भेद –

सकर्मक क्रिया मुख्यतः दो प्रकार की होती है –

(i) पूर्ण सकर्मक क्रिया

(ii) अपूर्ण सकर्मक क्रिया

(i) पूर्ण सकर्मक क्रिया – वे क्रियाएँ जो वाक्य में कर्म के साथ प्रयुक्त होकर पूर्ण अर्थ देती हैं, उन्हें पूर्ण सकर्मक क्रिया कहते हैं;

जैसे –

भूपेन्द्र खाना खाता है।

नीता बच्चों को दूध पिला रही है।

गार्गी पुस्तक पढ़ती है।

कनक कनिष्का को पत्र लिखती है।

प्रकार – पूर्ण सकर्मक क्रिया दो प्रकार की होती है –

(अ) एककर्मक पूर्ण सकर्मक क्रिया

(आ) द्विकर्मक पूर्ण सकर्मक क्रिया

(अ) एककर्मक पूर्ण सकर्मक क्रिया – जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के साथ एक ही कर्म हो तब उसे पूर्ण एककर्मक क्रिया कहते हैं;

यथा –

राजू ने पत्र लिखा।

राहुल चित्र बना रहा है।

लोकेश गाना गाता है।

अनु बच्चों को नहलाती है।

हेमन्त कुत्ते को मारता है।

(आ) द्विकर्मक पूर्ण सकर्मक क्रिया – जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के साथ दो कर्म कारक प्रयुक्त होते हैं, तब उसे द्विकर्मक पूर्ण सकर्मक क्रिया कहते हैं, जैसे –

अध्यापक जी छात्रों को गणित पढा रहे हैं।

प्रशान्त दादाजी को फल खिला रहा है।

भूमिका भाविका को पत्र लिख रही है।

(ii) अपूर्ण सकर्मक क्रिया – वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के साथ कर्म के होते हुए भी किसी पूरक के बिना अर्थ अधूरा ही रहता है, क्योंकि कर्म से सम्बन्धित किसी संज्ञा या विशेषण शब्द की आवश्यकता बनी रहती है;

जैसे – ‘राम मोहन को समझता है।’ इस वाक्य में यद्यपि क्रिया सकर्मक है किन्तु मोहन को ‘मूर्ख’ या ‘विद्वान्’ समझता है, यह अर्थ स्पष्ट नहीं होता। अतः वाक्य में अर्थ की पूर्णता हेतु ‘मूर्ख या ‘विद्वान्’ विशेषण या पूरक की आवश्यकता बनी रहती है। ऐसी क्रियाएँ अपूर्ण सकर्मक कहलाती हैं।

विशेष – अपूर्ण क्रिया को पूर्ण अर्थ देने के लिए जिन संज्ञा, सर्वनाम का प्रयोग होता है उन्हें कर्मपूरक या कर्मपूर्ति कहते हैं । जैसे –

बिना पूरक क्रिया पूरक सहित क्रिया
1 . मैं उसे मानता हूँ।मैं उसे विद्वान् मानता हूँ।
2 . वह बनकर दिखलाएगा।वह इंजीनियर बनकर दिखलाएगा।
3 . वे हमारे थे।वे हमारे गुरु थे।
4 . हमने उसे चुना।हमने उसे प्रतिनिधि चुना।

2 . प्रयोग या रचना के आधार पर क्रिया के भेद –

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का प्रयोग किस रूप में किया गया है, इस आधार पर क्रिया के निम्न भेद किये जाते हैं –

(i) सामान्य क्रिया – वे क्रिया (धातुएँ) जो यौगिक या व्युत्पन्न न होकर भाषा में रूढ़ शब्द के रूप में प्रचलित हैं उन्हें मूल या रूढ़ धातु क्रिया कहते हैं ।

मूलधातु में ‘ना’ प्रत्यय लगाकर बनाए गए रूप सामान्य धातु या सरल धातु कहलाते हैं, जैसे – आना, खेलना, जाना, तैरना, देखना, पढ़ना, लिखना, सुनना, सोना आदि।

जब किसी वाक्य में एक ही क्रिया सामान्य या सरल रूप में प्रयुक्त होती है तो उसे सामान्य क्रिया कहते हैं; जैसे –

रेखा पढ़ती है।

सुशील खेलता है।

शोभा ने खाना बनाया।

मेघना विद्यालय गयी।

(ii) संयुक्त क्रिया – दो या दो से अधिक भिन्नार्थक धातुओं के योग से बनी क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ कहलाती हैं इनमें पहली क्रिया मुख्य क्रिया होती है तथा दूसरी क्रिया को रंजक क्रिया कहते हैं।

हिन्दी में आना, उठना, चाहना, जाना, डालना, देना, पड़ना, बैठना, रहना, लगना, लेना, चुका, करना, होना, खाना, मारना आदि क्रियाएँ रंजक क्रियाएँ हैं।

संयुक्त क्रिया के उदाहरण –

1 . उसकी बातें सुन मुझे हँसी आ गयी।

2 . बादलों को देख मोर नाच उठा।

3 . खाना खाकर तुम सो जाना।

4 . आलोक ने दूध पी लिया।

विशेष – संयुक्त क्रिया में सहायक क्रिया सदा अलग लिखी जाती है।

(iii) नाम धातु क्रिया – वे क्रियाएँ जो किसी संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्दों में प्रत्यय लगाने से बनती हैं, उन्हें नाम धातु क्रियाएँ कहते हैं;

जैसे –

संज्ञा शब्दों से बनी क्रियाएँ –

फिल्म – फिल्माना

बात – बतियाना

लात – लतियाना

शरम – शरमाना

लालच – ललचाना

हाथ – हथियाना

सर्वनाम शब्दों से बनी क्रियाएँ

अपना (आप) – अपनाना

विशेषण शब्दों से बनी क्रियाएँ –

गर्म – गरमाना

चिकना – चिकनाना

लँगड़ा – लँगड़ाना

साठ – सठियाना

(iv) कृदन्त क्रिया – वे क्रिया पद जो किसी धातु या क्रिया के साथ प्रत्यय लगने से बनते हैं, उन्हें कृदन्त क्रियाएँ कहते हैं।

(v) पूर्वकालिक क्रिया – जब वाक्य में दो क्रियाएँ प्रयुक्त हों तथा उनमें से जो क्रिया मुख्य क्रिया से पहले सम्पन्न होती है तथा जिसके साथ ‘के’, ‘कर’ या ‘करके’ प्रत्यय लगा होता है, उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं, जैसे –

सचिन पढ़कर खेलने गया।

चिराग ने मिठाई खाकर दूध पिया।

सुनयना पत्र लिखकर सो गयी।

(vi) सजातीय क्रिया – जब किसी वाक्य में प्रयुक्त कर्म तथा क्रिया पद दोनों एक ही धातु से बने होते हैं तब उस क्रिया को सजातीय क्रिया कहते हैं; जैसे –

भारत ने पाकिस्तान से लड़ाई लड़ी

लोकेश सौ मीटर की दौड़ दौड़ा

खेल को खेल की भावना से खेलो

(vii) सहायक क्रिया – वाक्य में प्रयुक्त मुख्य क्रिया के काल, वृत्ति, अर्थ (पक्ष), वाच्य आदि का बोध कराने वाले क्रिया पद अर्थात्मु ख्य क्रिया की सहायता करने वाली क्रियाओं को सहायक क्रिया कहते हैं;

जैसे –

है – हूँ, हैं, है, हो था-थी, थे, थीं,

हो – हो, होऊँ

होगा – होंगे, होगी, हूँगा आदि।

(viii) प्रेरणार्थक क्रिया – वाक्य में प्रयुक्त जिस क्रिया से कर्ता के स्वयं करने का बोध न होकर किसी और से कराये जाने का बोध होता है, अर्थात् वाक्य में प्रयुक्त जिस क्रिया से यह ज्ञात होता है कि कर्ता स्वयं उस क्रिया को न कर किसी और को प्रेरणा देकर करवाता है; उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।

प्रेरणार्थक क्रिया वाले वाक्य में फलतः दो कर्ता होते हैं। एक ‘प्रेरक कर्ता’ जो क्रिया को करने की प्रेरणा देने का कार्य करता है तथा दूसरा ‘प्रेरित कर्ता’ जिसे कार्य करने की प्रेरणा दी जाती है; जैसे –

सीता गीता से पत्र लिखवाती है।

माँ बच्चे को सुलाती है।

माँ ने बच्चे को सुलाया।

प्रकार – प्रेरणार्थक क्रिया दो प्रकार की होती है –

(i) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया

(ii) द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया

सामान्य धातु प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
चलना चलाना चलवाना
ठहरना ठहराना ठहरवाना
डूबना डुबाना डुबवाना
लिखना लिखाना लिखवाना
जीतना जिताना जितवाना
पीना पिलाना पिलवाना
देना दिलाना दिलवाना
बोलना बुलाना बुलवाना

विशेष – यदि अकर्मक क्रिया को प्रेरणार्थक बना दिया जाय तो वह सकर्मक बन जाती है।

(ix) आज्ञार्थक या विधिक्रिया – वाक्य में प्रयुक्त जिस क्रिया से आज्ञा, अनुमति, प्रार्थना आदि का बोध होता है, उसे आज्ञार्थक या विधि क्रिया कहते हैं;

जैसे –

प्रेम तुम आज जोधपुर जाओ।

घनश्याम ऊपर बैठो।

आलोक, आइए, घूमने चलें।

(x) तात्कालिक क्रिया – जब वाक्य में दो क्रियाएँ प्रयुक्त हों तथा एक क्रिया की समाप्ति के बाद दूसरी पूर्ण क्रिया प्रयुक्त हो अर्थात्उ नमें से जो क्रिया पहले सम्पन्न होती है तथा उसके साथ ‘ते’ प्रत्यय एवं ‘ही’ निपात प्रयुक्त होता है, उसे तात्कालिक क्रिया कहते हैं;

जैसे –

वह जहर खाते ही मर गया।

शेखर आते ही रो पड़ा।

हेमन्त खाना खाते ही सो गया।

(xi) समापिका तथा असमापिका क्रिया – हिन्दी व्याकरणानुसार वाक्य में क्रिया पद का प्रयोग वाक्य के अन्त में होता है तथा कर्ता के अनुसार ही क्रिया के लिंग, वचन प्रयुक्त होते हैं, उसे समापिका क्रिया कहते हैं। जैसे –

सचिन बेडमिण्टन खेलता है।

सुन्दर पक्षी डाल पर बैठा है।

कामिनी कपड़े धो रही है।

ज़ब क्रिया (शब्द/पद) वाक्य के अन्त में अपने निर्धारित स्थान पर प्रयुक्त न होकर अन्यत्र प्रयुक्त होती है तब उसे असमापिका क्रिया कहते हैं। जैसे –

डाल पर बैठा पक्षी सुन्दर है।

मेज पर पड़ी पुस्तक बहुत उपयोगी है।

खड़े होकर बड़ों का स्वागत करना चाहिए।

3 . काल के आधार पर क्रिया के प्रकार –

क्रिया के होने वाले समय को काल कहते हैं, काल के आधार पर क्रिया के तीन भेद होते हैं –

1 . भूतकालिक क्रिया

2 . वर्तमानकालिक क्रिया

3 . भविष्यत्कालिक क्रिया

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