परिभाषा (Definition) – ‘विराम’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है, रुकना या ठहरना। व्यक्ति को अपनी बात कहने के लिए, उसे समझाने हेतु कभी कम समय के लिए तो कभी अधिक समय के लिए ठहरना होता है,
कभी किसी कथन पर बल देने के लिए तो कभी अपने भावों को समझाने हेतु चेहरे पर भाव भंगिमा लानी होती है, लिखते समय उन्हीं ठहरने के स्थान पर तथा भाव समझाने हेतु जिन संकेत चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें विराम चिह्न कहते हैं।
विराम चिह्नों के प्रयोग से भाषा में स्पष्टता आती है, भाव समझने में सुविधा रहती है। ऐसा देखा गया है कि यदि विराम चिह्न का सही प्रयोग न किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
जैसे –
1 . ‘रोको, मत जाने दो।
2 . ‘रोको मत, जाने दो।’
यद्यपि दोनों वाक्यों में समान अर्थ वाले शब्द प्रयुक्त हुए हैं किन्तु विराम चिह्न के कारण दोनों वाक्यों में अर्थ एक-दूसरे का विपरीत हो गया है। हिन्दी भाषा में प्रयुक्त प्रमुख विराम चिह्न व उनके प्रतीक –
विराम चिन्ह के प्रकार (Viram Chinh Kitne Prakar Ke Hote Hain) –
1 . | अल्प विराम | , | Comma |
2 . | अर्द्ध विराम | ; | Semi Colon |
3 . | अपूर्ण विराम (उपविराम) | : | Colon |
4 . | पूर्ण विराम | । | Full Stop |
5 . | प्रश्नसूचक चिन्ह | ? | Note of Interrogation |
6 . | सम्बोधन चिन्ह | ! | |
7 . | विस्मयबोधक चिन्ह | ! | Note of Exclamation |
8 . | अवतरण चिन्ह/उद्वरण चिन्ह /उपविराम (क.) दुहरा – ” “ (ख.) इकहरा – ‘ ‘ | Inverted Comma | |
9 . | संयोजक/योजक चिन्ह/ सामसिक चिन्ह | – | Hyphen |
10 . | निर्देशक चिन्ह | — | Dash |
11 . | विवरण चिन्ह | : — | Colon Dash |
12 . | हंसपद/विस्मरण चिन्ह | ⁁ | Omission Mark of Caret |
13 . | संक्षेपण/लाघव चिन्ह | ॰ | |
14 . | तुल्यता सूचक/ समता सूचक चिन्ह | = | Equivalant Mark |
15 . | कोष्ठक चिन्ह | ( ) { } [ ] | Brackets |
16 . | लोप चिन्ह | …………. | Ellipses |
17 . | इति श्री/समाप्ति सूचक चिन्ह | –xxx– | |
18 . | विकल्प चिन्ह | / | |
19 . | पुनरुक्ति चिन्ह | ,, | Mark of Repetition Asterisk |
20 . | संकेत चिन्ह | • x A | तारक चिन्ह |
21 . | योग चिन्ह | + | Plus Mark |
1 . अल्प विराम (,) – Alp Viram : –
अल्प विराम शब्द का अर्थ होता है – थोड़ा रुकना अर्थात् वाक्य में जब सबसे कम समय के लिए रुका जाता है तब वहाँ अल्प विराम चिह्न प्रयुक्त होता है।
हिन्दी में सबसे अधिक प्रयोग अल्प विराम का होता है। अल्प विराम का प्रयोग वाक्य में निम्न स्थितियों में होता है –
(i) वाक्य में प्रयुक्त समान पदों (शब्दों) को अलग करने के लिए प्रत्येक शब्द के बाद में जैसे –
प्रशान्त ने आम, अमरूद, केले आदि खरीदे।
तृप्ति, मेघना, गार्गी और गुंजन गीत गा रही हैं।
[अन्तिम शब्द के अन्त में आदि लगा देते हैं या अन्तिम शब्द के पूर्व अल्प विराम न लगाकर और लगा देते हैं।]
(ii) मिश्र वाक्यों में संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण उपवाक्यों को प्रधान वाक्य से अलग करने के लिए –
कामायनी एक महाकाव्य है, जो प्रसाद की रचना है।
यदि वह मेहनत करता, तो अवश्य सफल होता।
यही वह छात्र है, जो परीक्षा में प्रथम आया है।
जो कुछ भी होगा, देखा जाएंगा।
मैं तुम्हें रुपये अवश्य देता, किन्तु अभी हाथ तंग हैं।
(iii) वाक्य में प्रयुक्त उद्धरण चिह्न से पूर्व –
गाँधीजी ने कहा, “सदा सत्य बोलो।”
प्रशान्त ने कहा, “उसने जो कुछ कहा, सही था।”
(iv.) कभी-कभी सम्बोधन को शेष वाक्य से अलग करने के लिए –
प्रशान्त, तुम यहाँ बैठो।
मित्रों, सफलता हेतु तुम्हें कड़ी मेहनत करनी होगी।
श्रीमान्, मुझे आवश्यक कार्य से जाना है।
(v) समानाधिकरण उपवाक्यों के बीच –
अचानक ही आकाश में बादल छा गये, बिजलियाँ चमकने लगी, मूसलाधार वर्षा प्रारम्भ हो गई।
(vi) वाक्य के प्रारम्भ में ‘हाँ’ या ‘नहीं के पश्चात् –
हाँ, अब तुम जा सकते हो।
नहीं, तुम्हें यह शोभा नहीं देता।
(vii) वाक्य में प्रयुक्त इसलिए, परन्तु, अतः, क्योंकि, ताकि, तथापि, पर, लेकिन, बल्कि, फिर, वरन् जैसे समुच्चयबोधक अव्ययों से प्रारम्भ होने वाले शब्दों के पहले –
मैं तुमसे अवश्य मिलता, किन्तु समय ही नहीं मिला।
अभिषेक ने इस बार मेहनत की, अतः सफल हो गया।
(viii) वाक्य में वहाँ, तब, यह, वह, तो, अब, शब्दों का लोप हो, वहाँ –
तुम जहाँ खड़े होते हो; थूक देते हो। (वहाँ थूक देते हो)
जब तुम्हें खाना खाना ही है, खा लो। (तो खा लो)
जो पत्र आपने भेजा, मुझे मिल गया। (वह मुझे)
(ix) वाक्य में प्रयुक्त शब्द-युग्मों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए –
जीवन में हानि-लाभ, दुख-सुख, यश-अपयश सब भाग्य पर निर्भर है।
(x) वाक्य में एक ही शब्द या वाक्यांश की यदि पुनरावृत्ति हो जब – भागो, भागो, बाढ़ आ गई है।
2 . अर्द्ध विराम (;) Ardhw Viram : –
जब वाक्य में अल्प विराम से अधिक तथा पूर्ण विराम से आधे समय के लिए विराम हो वहाँ अर्द्ध विराम प्रयुक्त होता है।
(i) समानाधिकरण वाक्यों में किसी मुख्य भाव पर बल देने के लिए; जैसे –
महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध शंखनाद किया; अहिंसा और असहयोग के अस्त्रों का प्रयोग किया; देश को आजादी दिलाई।
(ii) मिश्र तथा संयुक्त वाक्य में विपरीत अर्थ प्रकट करने या विरोधपूर्ण कथन प्रकट करने वाले उपवाक्यों के बीच –
वह सड़क पर पड़ी कराहती रही; लोग आनन्द लेते रहे।
सुभाष चन्द्र बोस हमारे बीच नहीं रहे; वे अमर हो गए।
(iii) वाक्य में जब कारणवाचक क्रिया विशेषण उपवाक्य का मुख्य उपवाक्य से निकट सम्बन्ध नहीं रहता है, तब उसके मध्य अर्द्धविराम चिह्न प्रयुक्त करते हैं –
सोना बहुमूल्य धातु है; पर आजकल ताँबा का भी कम महत्त्व नहीं है।
राजेश आज आ नहीं सकेगा; क्योंकि वह बीमार है।
(iv) वाक्य में प्रयुक्त विभिन्न उपवाक्यों पर अधिक जोर देने के लिए –
आलस्य मनुष्य का शत्रु है; इससे दूर रहो।
डटकर मेहनत करो; परीक्षा निकट ही है।
(v) किसी नियम के बाद में उदाहरणसूचक शब्द ‘जैसे’ से पहले –
विवाहिता स्त्री के नाम के पूर्व श्रीमती शब्द का प्रयोग होता है;
जैसे – श्रीमती सरोज।
3 . अपूर्ण विराम (:) Apurn Viram (उपविराम) : –
जहाँ अर्द्धविराम की अपेक्षा अधिक ठहराव बोधित हो तथा वाक्य जैसी समाप्ति अपेक्षित न हो । समानाधिकरण उपवाक्यों के बीच जब कोई संयोजक चिह्न न हो –
कटते पेड : बढ़ती रेत
बढ़ती महँगाई : घटते जीवन मूल्य
छोटा परिवार : सुख का आधार
कामायनी : विचार और विश्लेषण
4 . पूर्ण विराम (।) Purn Viram : –
पूर्ण विराम का अर्थ होता है, पूरी तरह से “रुकना या ठहरना।” अतः जहाँ विचार के तार एकदम टूट जाते हैं अर्थात् जहाँ वाक्य की गति अन्तिम रूप ले लेती है, कथन पूर्ण हो जाता है, वहाँ पूर्ण विराम चिह्न प्रयुक्त होता है।
(i) प्रश्नवाचक तथा विस्मयादिवाचक वाक्यों के अतिरिक्त प्रत्येक साधारण, मिश्र तथा संयुक्त वाक्य के अंत में –
महेन्द्र बाजार जाता है।
कामायनी एक महाकाव्य है, जो प्रसाद की रचना है।
कृष्ण बाँसुरी बजाते थे और राधा नाचती थी।
(ii) अप्रत्यक्ष प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में –
तुमने बताया नहीं कि तुम कहाँ जा रहे हो।
तुम्हें क्या बताऊँ कि मैं क्या चाहता हूँ।
उसे मालूम नहीं कि वह कहाँ रहता है।
(iii) काव्य में किसी दोहा, सोरठा, चौपाई आदि छन्द के चरण के अंत में –
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर।
का वर्षा जब कृषि सूखाने।
विशेष – आजकल कहीं-कहीं पूर्ण विराम में खड़ी पाई (।) के स्थान पर अंग्रेजी के फुल स्टाप (.) का प्रयोग करने लगे हैं, जो हिन्दी में मानक नहीं है।
5 . प्रश्न सूचक चिह्न (?) Prshan Suchak Chinh : –
हिन्दी में प्रश्न सूचक चिह्न निम्नलिखित स्थानों पर प्रयुक्त किया जाता है –
(i) प्रश्न सूचक वाक्यों के अन्त में –
तुम कहाँ जा रहे हो ?
आप क्या पढ़ रहे हैं ?
अकबर ने कहा, “चित्तौड़ पर आक्रमण का बीड़ा कौन उठाता है?”
(ii) वाक्य में संदेह या अनिश्चय की स्थिति में कोष्ठक में –
आप शायद जयपुर के रहने वाले हैं ?
क्या कहा, वह ईमानदार है:
(iii) व्यंग्योक्तियों में वाक्य के अन्त में –
तस्कर देश-सेवक कैसे हो सकता है?
घूसखोरी नौकरशाही की सबसे बड़ी देन है न ?
(iv) जब एक ही वाक्य में कई प्रश्नवाचक उपवाक्य साथ आ रहे हैं, तो प्रत्येक पर प्रश्नसूचक चिह्न न लगाकर पूरे वाक्य की समाप्ति पर (अन्त में) लगेगा;
वह क्या करता है, क्या सोचता है, कैसे जीवन बिताता है, यह जानना क्या आवश्यक है?
तुम कब आये, क्यों आये और क्या चाहते हो?
विशेष – निम्नलिखित स्थितियों में वाक्य के अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न प्रयुक्त नहीं होता है –
1 . जब प्रश्नसूचक शब्द, संबंध सूचक शब्द का काम करे –
आपको कहाँ जाना है, मैं नहीं जानता।
2 . जब वाक्य में प्रश्न पूछने की अपेक्षा डाँटने के लिए हो –
क्या कर रहे हो, चुपचाप बैठ जाओ।
6 . सम्बोधन चिह्न (!) Sambodhan Chinh : –
वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारा, बुलाया, सुनाया या सावधान किया जाता है, तब उस संबोधन कारक के साथ संबोधन का प्रयोग किया जाता है।
हे भगवान! गरीबों पर दया करो।
ओ भाई! गाड़ी जरा धीरे चलाओ।
भाइयो और बहनो! कृपया मेरा ध्यान रखें।
प्यारे बच्चो! कठिन परिश्रम करो।
7 . विस्मय सूचक चिह्न (!) Vismay Suchak Chinh : –
जब किसी वाक्य में हर्ष,शोक, विस्मय, घृणा, क्रोध, भय आदि मनोभावों को व्यक्त किया जाता है तब उन शब्दों के साथ विस्मयसूचक चिह्न प्रयुक्त किया जाता है –
(i) विस्मयादिबोधक वाक्यों में विस्मयादिबोधक शब्द के साथ –
वाह ! तुम्हारा चयन हो ही गया।
उफ! बेचारे का जवान बेटा मर गया।
अरे ! तुम गा भी सकते हो।
छि:! छि:! चारों ओर गन्दगी बिखरी पड़ी है।
अरे। तुम मेरी बात मानते हो या नहीं ?
हाय! कितना भयंकर तूफान आया है।
(ii) कभी-कभी प्रश्नवाचक वाक्यों के अन्त में मनोभावों को प्रदर्शित करने के लिए –
कुछ कहते क्यों नहीं, क्या गूंगे हो!
यदि वाक्य में विकारी शब्द का प्रयोग विस्मयादिबोधक के रूप में हुआ हो तो उसके साथ –
राम-राम! हमें तुमसे ऐसी आशा न थी।
क्या! भारत ने लड़ाई जीत ली।
अच्छा! तुम्हारी बात मान ली गई।
जाओ! अपना काम करो।
8 . अवतरण चिह्न/उद्धरण चिह्न/उपरि विराम Avtaran Chinh : –
(i) दुहरा – ” “
(ii) इकहरा – ‘ ‘
(i) जब किसी व्यक्ति, लेखक, महापुरुष के कथन को ज्यों का त्यों उद्धृत करना हो तो उस कथन के पूर्व अल्प विराम का प्रयोग कर उस कथन के दोनों ओर दुहरा विराम चिह्न प्रयुक्त किया जाता है। यथा –
बाल गंगाधर तिलक ने कहा, “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।”
(ii) जब किसी कवि के उपनाम, पुस्तक विशेष का नाम, किसी लेख या कविता के शीर्षक का उल्लेख करना होता है तब इकहरे (‘ ‘) उपरि विराम का प्रयोग किया जाता है।
श्री हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने ‘मधुशाला’ लिखी।
‘श्रीरामचरितमानस’ के रचयिता संत शिरोमणि तुलसीदास थे।
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ‘जान-पहचान’ पाठ से लिया गया है।
(iii) सूक्तियों, कहावतों या शब्द विशेष को स्पष्ट करने के लिए भी इकहरे अवतरण चिह्न का प्रयोग होता है।
9 . योजक चिह्न/सामासिक चिह्न/संयोजक (-) Yojak chinh/Samsik Chinh/Sanyojak : –
योजक चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में किया जाता है –
(i) तत्पुरुष तथा द्वन्द्व समास के सामासिक पदों में –
वन-गमन, राज-भवन, सुख-दु:ख, लाभ-हानि, माता-पिता
(ii) तुलनात्मक शब्दांश ‘सा’, ‘सी’, ‘से’ के पहले –
बड़ा-सा पेड़, भरत-सा भाई, सीता-सी पत्नी, यशोदा-सी माता, चाकू-से तीखे, तुम-सा
(iii) वाक्य में प्रयुक्त समानार्थी या विपरीतार्थी शब्दों के बीच –
मान-मर्यादा, हाट-बाजार, रुपया-पैसा, फल-फूल
(iv) सार्थक व निरर्थक पुनरुक्त शब्दों के बीच –
पात-पात, डाल-डाल, उलटा-पुलटा, आस-पास, झूठ-मूठ, खाना-वाना
(v) जब दो विशेषण पदों का संज्ञा के अर्थ में प्रयोग होने पर –
लूला-लँगड़ा, भूखा-प्यासा, अंध-बहरा
(vi) दो संयुक्त क्रियाएँ एक साथ प्रयुक्त होने पर –
लिखना -पढ़ना, उठना-बैठना, आना-जाना
(vii) मध्य के अर्थ में
परशुराम-लक्ष्मण संवाद, राम-रावण युद्ध
(viii) निश्चित संख्यावाचक विशेषण के जब दो पद एक साथ प्रयुक्त हों –
दो-चार, एक-एक, दस-बीस, पहला-दूसरा
(ix) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण में
बहुत-सी बातें, कम-से-कम, अधिक-से-अधिक, थोड़ा-सा सामान
(x) जब दो शब्दों के बीच संबंध कारक के विभक्ति चिह्न का, की, के’ का लोप होता है –
शब्द-सागर, शब्द-भेद
(xi) मूल क्रिया के साथ प्रेरणार्थक क्रिया प्रयुक्त होने पर उड़ना-उड़ाना, पीना-पिलाना, सोना-सुलाना
(xii) दो प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच, चलाना-चलवाना, करना-करवाना
(xiii) परिमाणवाचक तथा रीतिवाचक क्रिया विशेषणों में प्रयुक्त दो अव्ययों के बीच तथा ‘ही’, ‘से’, ‘का’,’न’ के साथ-धीरे-धीरे, कभी-कभी, यहाँ-वहाँ, आप-से-आप, ज्यों-का-त्यों, कुछ-न-कुछ
(xiv) अक्षरों में लिखी जाने वाली संख्याओं और उनके अंशों के बीच-एक-तिहाई, दो-तिहाई
(xv) शब्द-युग्म में-घर-घर, घाट-घाट, चलते-चलते, गाँव-गाँव
(xvi) कठिन संधि से बचने के लिए-द्वि-अक्षरी
(xvii) अर्थभ्रम से बचने के लिए
अ-नख = बिना नाखून
अनख = क्रोध
10 . निर्देशक चिह्न (-) Nirdeshak Chinh –
किसी वाक्य के आगे आने वाले विवरण को संकेतित करने के लिए –
सर्वनाम के छः भेद होते हैं –
हमारे विद्यालय के निम्नलिखित छात्र सम्मिलित होंगे –
(i) नाटक के संवादों में भी वक्ता के नाम के बाद इनका प्रयोग होता है –
किसी उद्धरण के या कथन के पहले अल्पविराम के स्थान पर कभी-कभी निर्देश चिह्न का प्रयोग करते हैं –
तुलसी ने कहा –
(iii) वाक्य के प्रवाह में आने वाली संज्ञा को संकेतित करने के लिए भी –
हिन्दी साहित्य के सूर्य-सूरदास का सूरसागर भक्ति, वात्सल्य और शृंगार का महाकाव्य है।
11 . विवरण चिह्न (:-) Vivaran Chinh : –
अपूर्ण विराम तथा निर्देशक चिह्न के मेल पर विवरण चिह्न बनता है जिसका प्रयोग भी वाक्य में आगे दिये जाने वाले विवरण के लिए होता है। जैसे –
वेद चार हैं :- ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्वेद, सामवेद।
12 . हंस पद या विस्मरण चिह्न (⁁) Hans Pad/Vismran Chinh : –
वाक्य में जब लिखने में कोई शब्द या शब्दांश छूट जाता है तब वाक्य में उस स्थान पर जहाँ शब्द छूट गया है, इस चिह्न का प्रयोग कर छूटे हुए शब्द या वाक्यांश को वाक्य के ऊपर लिख देते हैं या लिख दिया जाता है।
राम रावण
दशरथ के पुत्र ⁁ ने लंका के राजा ⁁ को बाण से मारा।
13 . संक्षेपण या लाघव चिह्न (.) Sankshepan Chinh : –
जहाँ पूरा लिखना अभिप्रेत न हो । वाक्य में प्रयुक्त किन्हीं शब्दों को संक्षिप्त रूप प्रदान करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है तब उन शब्दों के आद्य अक्षर प्रारम्भिक अक्षर लिखकर उसके साथ यह चिह्न लगाया जाता है, जैसे –
संयुक्त राष्ट संघ = सं.रा.सं.
कृपया पन्ना उलटिए = कृ.प.उ.
दिनांक = दि.
मोहनदास कर्मचंद गाँधी = मो.क. गाँधी
उपाधियों के संक्षिप्तीकरण हेतु – एम.ए.
14 . तुल्यतासूचक/समतासूचक चिह्न ( = ) Tulyatasuchak Chinh : –
समानता सूचित करने के लिए किसी शब्द के समान अर्थ बतलाने, समान मूल्य या मान का बोध कराने हेतु इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है, जैसे –
मार्तण्ड = सूर्य
1 रुपया = 100 पैसे
कन्या का दान = कन्यादान
भानु + उदय = भानूदय
15 . कोष्ठक Koshthak : –
( ) और { } और [ ]
इसका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है –
(i) वाक्य में प्रयुक्त किसी पद का अर्थ स्पष्ट करने हेतु उसी शब्द के साथ कोष्ठक में उसका उल्लेख किया जाता है –
कालिदास (संस्कृत के महाकवि) को सभी जानते हैं।
(ii) नाटक में किसी पात्र के अभिनय हेतु दिये गये निर्देश भी कोष्ठक में लिखे जाते हैं –
कोमा-(खिन्न होकर) प्रेम का नाम न लो।
(iii) विषय-विभाग में क्रम-सूचक अंकों तथा अक्षरों के साथ
कोष्ठक चिह्न का प्रयोग –
संज्ञा तीन प्रकार की होती है –
(1) व्यक्तिवाचक (2) जाति वाचक (3) भाववाचक
(iv) मूल वाक्य से असम्बद्ध वाक्य को भी कोष्ठक के अन्दर रखा जाता है।
16 . लोप चिह्न (………) Lop Chinh : –
किसी वाक्य के अन्त में कहते-कहते कुछ अंश लिखने से रह जाता है तब उस स्थान पर इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है –
यद्यपि तुम ईमानदार हो, समझदार हो परन्तु ……….
राम ने श्याम ……… को कहकर गाली दी।
17 . इति श्री/समाप्ति सूचक चिह्न Eti Shree (-xxx-) –
किसी अध्याय या ग्रंथ की समाप्ति पर इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
18 . विकल्प चिह्न (/) Vikalp Chinh : –
जब कहीं दो में से किसी एक को चुनने का विकल्प हो तब उन दोनों के मध्यम विकल्प चिह्न का प्रयोग किया जाता है। शुद्ध वर्तनी वाला शब्द है – व्यवहारिक/व्यावहारिक
लहर का पर्याय है – ऊर्मि/कर
19 . पुनरुक्ति चिह्न (.,) Punrukti Chinh : –
शब्द व वाक्य की पुनरुक्ति बचाने हेतु, जब ऊपर लिखी किसी बात को नीचे ज्यों का ज्यों लिखना हो तब वहाँ उस बात का उल्लेख न कर इस चिह्न का प्रयोग कर लिया जाता है –
श्री मदनलाल
” माँगीलाल
” सोहनलाल
20 . संकेत चिह्न/तारक चिह्न (•xA) Sanket Chinh/Tarak Chinh : –
किसी मुख्य वर्णन में किसी शब्द विशेष, ग्रंथ या विद्वान का परिचय या संदर्भ देना हो तब उस शब्द के अंत में या ऊपर तारक चिह्न लगाकर; उसी पृष्ठ पर नीचे पुनः उक्त चिह्न का प्रयोग कर उसके बारे में विस्तार से स्पष्ट किया जाता है।
मेघनाद ने सहस्राक्ष को हराया।
- सहस्राक्ष = इन्द्र
21 . योग-चिह्न (+) Yog Chinh : –
दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़ने में योग-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी व्याकरण में संधि व सन्धि विच्छेद में इसका प्रयोग होता है।
राम + अवतार
22 . रेखिका चिह्न (-) रेखांकन Rekhika Chinh : –
किसी वाक्य में प्रयुक्त शब्द, शब्दों, वाक्यांशों पर विशेष ध्यान आकर्षित करना हो तब वाक्य में प्रयुक्त उस शब्द के नीचे रेखिका चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
दुर्योधन ने कहा – “मैं पाण्डवों को सुई की नोक भर भी जमीन नहीं दूंगा।”
हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar