संज्ञा की परिभाषा – किसी प्राणी, वस्तु, स्थान, भाव, अवस्था, गुण या दशा के नाम को संज्ञा कहते हैं।
जैसे –
प्राणी – अशोक, रजिया, आदमी, लड़की, शेर, गाय, मोर, कोयल, साँप, मेंढ़क
वस्तु – रामायण, उषा, पंखा, पुस्तक, सोना, पानी
स्थान – जोधपुर, गंगा, पहाड़, शहर, गाँव, विद्यालय
भाव – सुख, दया, शत्रुता, क्रोध
अवस्था – बचपन, जवानी, बुढ़ापा
गुण – लम्बाई, खटास, वीरता
दशा – अमीरी, आजाद
संज्ञा के भेद या प्रकार – Sangya Ke Kitne Bhed Hote Hain
हिन्दी में संज्ञा मुख्यत: तीन प्रकार की होती है –
(i) व्यक्तिवाचक संज्ञा
(ii) जातिवाचक संज्ञा
(iii) भाववाचक संज्ञा
अंग्रेजी भाषा में संज्ञा के पाँच भेद हैं, जिनमें उक्त तीन के अतिरिक्त (iv) द्रव्यवाचक संज्ञा (v) समुदायवाचक संज्ञा हिन्दी में ये दोनों जातिवाचक संज्ञा के उपभेद हैं।
(i) व्यक्तिवाचक संज्ञा (Vyakti Vachak Sangya) –
किसी व्यक्ति विशेष, प्राणी विशेष, वस्तु विशेष तथा स्थान विशेष के नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं अर्थात जिस संज्ञा पद से किसी एक विशेष व्यक्ति, विशेष प्राणी, विशेष स्थान या विशेष वस्तु के नाम का बोध हो, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे –
(क) व्यक्ति विशेष – गोविन्द, सरोज, राम, रहीम, शेक्सपीयर
(ख) प्राणी विशेष – चेतक (घोड़ा), ऐरावत (हाथी विशेष), कपिला (गाय विशेष)
(ग) वस्तु विशेष – रामचरित मानस, उषा पंखा, रीटा मशीन, हीरो पेन
(घ) स्थान विशेष – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण (दिशा विशेष), हिमालय, आल्पस (पर्वत विशेष), गंगा, यमुना, नील (नदी विशेष), भारत, भूटान, अमरीका (देश विशेष), सोमवार, मंगलवार (दिन विशेष), जनवरी, फरवरी, मार्च (महीने विशेष), जोधपुर, अजमेर, नई दिल्ली (नगर विशेष)
(ii) जातिवाचक संज्ञा (Jati Vachak Sangya) –
जिस संज्ञा से किसी प्राणी, वस्तु अथवा स्थान की जाति या पूरे वर्ग का बोध होता है, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जातिवाचक संज्ञा से एक ही प्रकार के प्राणियों, वस्तुओं और स्थानों का बोध होता है।
जैसे –
प्राणी – आदमी, औरत, लड़का, युवती, हाथी, घोड़ा, तोता, मछली
वस्तु – पुस्तक, घड़ी, पंखा, पेन्सिल, दूध, पानी, सोना, लोहा, पत्थर, लकड़ी, साबुन, फल, फूल
स्थान – पहाड़, नदी, शहर, घर, देश, बाजार, दुकान, स्टेशन
अंग्रेजी की द्रव्यवाचक संज्ञा तथा समुदायवाचक संज्ञा हिन्दी में जातिवाचक के अन्तर्गत आती है अतः उनकी यहीं जानकारी कर लेनी चाहिए।
(क) द्रव्यवाचक संज्ञा (Dravya Vachak Sangya) –
जिन संज्ञा शब्दों से किसी धातु, द्रव्य आदि पदार्थों का बोध होता है, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे – सोना, चाँदी, लोहा, ताम्बा, घी, तेल, पानी, पत्थर, लकड़ी, कोयला, ऊन, वायु, पेट्रोल, चावल, चाय, गेहूँ
(ख) समुहवाचक (Samuh Vachak Sangya) –
जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्तियों या वस्तुओं के समूह या समुदाय का बोध होता है, उन्हें समुदाय या समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे –
(अ) व्यक्तियों का समूह – कक्षा, दल, सभा, सेना, मण्डली, गोष्ठी, संघ, गिरोह, वृन्द, भीड़, सम्मेलन, पुलिस, टुकड़ी, जत्था, टोली, कुटुम्ब
(आ) वस्तुओं का समूह – ढेर, कुंज, आगार, झुण्ड, गुच्छा, बेड़ा
(iii) भाववाचक संज्ञा (Bhav Vachak Sangya ) –
जिस संज्ञा शब्दों से किसी भाव, अवस्था, गुण, माप, गति, स्वाद, दोष, स्वभाव, दशा, क्रिया व्यापार आदि का बोध होता है, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं।
(क) भाव – प्रेम, दया, भलाई, मित्रता, मनुष्यत्व, करुणा, शत्रुता
(ख) अवस्था – लड़कपन, बचपन, जवानी, बुढ़ापा, शैशव
(ग) गुण – सुन्दरता, मिठास, लम्बाई, वीरता, चतुरता, कुशाग्रता
(घ) दशा – गुलामी, आजादी, अमीरी, गरीबी
(च) क्रिया – दौड़-धूप, पढ़ाई, लिखाई
(छ) माप – लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई
(ज) स्वाद – कड़वापन, कसैलापन, मिठास
(झ) गति-फुर्ती, शीघ्रता, सुस्ती
Also Read –
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संज्ञा के प्रयोग (Sangya Ke Paryog in Hindi Grammar) –
वाक्य में प्रयुक्त होने पर कईबार एक संज्ञा दूसरी संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हो जाती है। जैसे –
1 . व्यक्तिवाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग –
जब कभी व्यक्तिवाचक संज्ञा अपने दुर्लभ गुणों के कारण उस गुण के प्रतिनिधित्व के रूप में प्रयुक्त होती है तब वहाँ व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक बन जाती है।
जैसे –
राजा हरिश्चन्द्र ‘सत्यनिष्ठ’ के, भीष्म पितामह ‘दृढ़ प्रतिज्ञ’ के, जयचन्द ‘विश्वासघाती’ का, विभीषण घर के भेदी’ का, गंगा (नदी) ‘पवित्रता’ के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त होने पर ये व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्द निम्न वाक्यों में जातिवाचक रूप में प्रयुक्त हुई हैं।
यथा –
आजकल भारत में जयचन्दों की कमी नहीं है।
हमें विभीषणों से सदैव बचना चाहिए।
तुम बड़े हरिश्चन्द्र बन रहे हो । राममूर्ति कलियुग के भीम हैं।
वह स्त्री तो गंगा है। मोहिनी हमारे घर की लक्ष्मी है।
विशेष – वैसे व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग एकवचन में होता है किन्तु जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग होने पर बहुवचन रूप भी बन सकता है।
जैसे – उक्त उदाहरणों में ‘जयचन्दों‘ शब्द में हुआ है।
2 . जातिवाचक संज्ञा का व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग –
जब कोई जातिवाचक संज्ञा शब्द अपनी सम्पूर्ण जाति या वर्ग का बोध न कराकर किसी व्यक्ति विशेष या स्थान विशेष का बोध कराते हुए रूढ़ हो जाये, वहाँ वह जातिवाचक संज्ञा व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रतिनिधित्व करती है।
पंडितजी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। (जवाहरलाल नेहरू)
नेताजी ने जयहिन्द का नारा दिया था। (सुभाषचन्द्र बोस)
गाँधीजी ने देश को आजादी दिलाई। (मोहनदास कर्मचन्द गाँधी)
वह कल पुरी की यात्रा को जा रहा है। (जगन्नाथ पुरी)
नवरात्र में देवी की सर्वत्र पूजा होती है। (दुर्गा)
संवत् 1914 में स्वतंत्रता का पहला संग्राम हुआ। (विक्रम संवत्)
गोस्वामीजी ने रामचरितमानस की रचना की। (तुलसीदास)
3 . भाववाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा में प्रयोग –
भाववाचक संज्ञा का प्रयोग सदैव एकवचन में ही होता है। यदि भाववाचक संज्ञा वाक्य में बहुवचन में प्रयुक्त होती है तो वहाँ वह जातिवाचक संज्ञा बन जाती है। कभी-कभी भाववाचक संज्ञा का उपयोग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है। जैसे –
भारत में कई पहिनावे प्रचलित हैं।
संसार में धन सरीखा सुख नहीं।
मनुष्य को सदैव बुराइयों से बचना चाहिए।
आजकल उन दोनों की दूरियाँ भी नजदीकियाँ बन गयी हैं।
सच्ची प्रार्थनाएँ कभी व्यर्थ नहीं जाती।
इन दिनों शहर में चोरियाँ बहुत हो रही हैं।
आजकल पढ़ाइयाँ बहुत महँगी हो रही हैं।
4 . क्रिया पद का संज्ञा के रूप में प्रयोग (क्रियार्थक संज्ञा) –
कभी-कभी क्रिया पद वाक्य में संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हो जाता है, जैसे –
खेलना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है।
तुम्हारे जाने से वह काम हो जायेगा।
झगड़ने से तो बात बिगड़ जायेगी।
दीनों की सेवा करना कभी व्यर्थ नहीं जाता।
5 . विशेषण शब्द का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग –
वाक्य में कभी विशेषण शब्द संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयुक्त न होकर स्वतंत्र रूप में या बहुवचन में प्रयुक्त होता है अर्थात् विशेषण के साथ विशेष्य प्रयुक्त नहीं होता, तब वह जातिवाचक संज्ञा बन जाता है,
जैसे –
1 . बूढ़ा जा रहा है।
2 . आजकल अमीरों और गरीबों के बीच दूरियाँ बढ़ रही है।
3 . बड़ों का सदैव आदर करो । बड़े बड़ाई नहीं छोड़ते।
4 . गरीबों पर दया करो। दीन सबको देखता है।
5 . वीरों की सदैव पूजा होती है।
भाववाचक संज्ञा की रचना (Bhav Vachak Sangya Ki Rachna) –
कुछ संज्ञाएँ मूल रूप में भाववाचक होती हैं, जैसे-दया, सुख, घृणा, क्रोध, सत्य
जबकि अधिकांश भाववाचक संज्ञाएँ अन्य शब्दों से बनाई जाती हैं, जैसे – लड़ना से लड़ाई, मनुष्य से मनुष्यता, अपना से अपनापन, लम्बा से लम्बाई आदि।
भाववाचक संज्ञाएँ 6 प्रकार से बनती हैं –
1 .जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा का बनना –
(क)’ता’ प्रत्यय के योग से –
मनुष्य – मनुष्यता
प्रभु – प्रभुता
मित्र – मित्रता
दानव – दानवता
शत्रु – शत्रुता
(ख) त्व’ प्रत्यय के योग से –
देव – देवत्व
हिन्दू – हिन्दुत्व
कवि- कवित्व
पशु – पशुत्व
नारी – नारीत्व
पुरुष – पुरुषत्व
माता – मातृत्व
व्यक्ति – व्यक्तित्व
(ग)’य’ प्रत्यय के योग से –
ईश्वर – ऐश्वर्य
कुमार – कौमार्य
तरुण – तारुण्य
वत्सल – वात्सल्य
(घ)’ई’ प्रत्यय के योग से –
चोर – चोरी
नौकर – नौकरी
मजदूर – मजदूरी
ठग – ठगी
(च)’अ’ प्रत्यय के योग से –
शिशु – शैशव
पुरुष = पौरुष
(छ) इयत’ प्रत्यय के योग से –
इन्सान – इन्सानियत
आदमी – आदमियत
(ज)’आई’ प्रत्यय के योग से –
ठाकुर – ठकुराई
पंडित – पंडिताई
तरुण – तरुणाई
(झ) पन’ प्रत्यय के योग से –
लड़का – लड़कपन
(ट) आपा’ प्रत्यय के योग से –
बच्चा – बचपन
बूढ़ा – बुढ़ापा
(ठ) ईयता’ प्रत्यय के योग से –
राष्ट्र – राष्ट्रीयता
(ड) अन्य
किशोर – किशोरावस्था
डाकू – डकैती
भाई – भाईचारा
मर्द – मर्दानगी
भक्त – भक्ति
वृद्ध – वार्धक्य
युवा – यौवन
2 . व्यक्तिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा बनना –
(क)’त्व’ प्रत्यय के योग से –
राम – रामत्व
शिव – शिवत्व
रावण – रावणत्व
(ख) ईयता
भारत – भारतीयता
3 . सर्वनाम शब्दों से भाववाचक संज्ञा का बनना –
(क)’पन’ प्रत्यय के योग से –
अपना – अपनापन
पराया – परायापन
(ख)’आ’ प्रत्यय के योग से –
आप – आपा
(ग)’कार’ प्रत्यय के योग से –
अहम् – अहंकार
(घ)’ता’ प्रत्यय के योग से –
निज – निजता
मम – ममता
(च) त्व’ प्रत्यय के योग से –
अपना – अपनत्व
स्व – स्वत्व
निज – निजत्व
मम – ममत्व
4 . विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा का बनना –
(क)’आई’ प्रत्यय के योग से –
कठिन – कठिनाई
अच्छा – अच्छाई
ऊँचा – ऊँचाई
गहरा – गहराई
चतुर – चतुराई
लम्बा – लम्बाई
भला – भलाई
(ख) इमा’ प्रत्यय के योग से –
अरुण – अरुणिमा
काला – कालिमा
महा – महिमा
हरीत – हरीतिमा
(ग)’ई’ प्रत्यय के योग से –
अमीर – अमीरी
चालाक- चालाकी
कंजूस – कंजूसी
(घ)’य’ प्रत्यय के योग से –
उचित – औचित्य
उदार – औदार्य
चपल – चापल्य
धीर – धैर्य
निपुण – नैपुण्य
पतिव्रत – पातिव्रत्य
ब्रह्मचारी – ब्रह्मचर्य
मलिन – मालिन्य
सुन्दर – सौन्दर्य
सुभाग – सौभाग्य
शूर – शौर्य
स्वस्थ – स्वास्थ्य
मधुर – माधुर्य
विधवा – वैधव्य
पंडित – पांडित्य
(च) आस’ प्रत्यय के योग से –
खट्टा खटास
मीठा – मिठास
(झ)’अ’ प्रत्यय के योग से –
कुशल – कौशल
लघु – लाघव
योगी – योग
सुहृद – सौहार्द
(ज)’आपा’ प्रत्यय के योग से –
बूढ़ा – बुढ़ापा
मोटा -मोटापा
(झ)’ता’ प्रत्यय के योग से –
महान् – महानता
मूर्ख – मूर्खता
कुशल – कुशलता
कायर – कायरता
आवश्यक – आवश्यकता
वीर – वीरता
विपन्न – विपन्नता
सुन्दर – सुन्दरता
एक- एकता
कृपण – कृपणता
दुष्ट – दुष्टता
(ट)’त्व’ प्रत्यय के योग से –
वीर – वीरत्व
घना घनत्व
(ठ) पन’ प्रत्यय के योग-से –
छोटा- छुटपन
कच्चा – कच्चापन
बड़ा – बड़प्पन
तीखा – तीखापन
खट्टा – खट्टापन
पागल – पागलपन
(ड) अन्य
कड़वा – कड़वाहट
रमण – रमणीयता
बहुत – बहुतायत
हरा – हरियाली
5 . क्रिया शब्दों से भाववाचक संज्ञा का बनना –
(क)’अ’ प्रत्यय के योग से –
उतारना – उतार
खेलना – खेल
खोजना – खोज
जीतना – जीत
दौड़ना – दौड़
मारना – मार
लूटना – लूट
हारना – हार
धोना – धुलाई
चलना – चाल
(ख) ‘आई’ प्रत्यय के योग से –
उतरना/उतारना – उतराई
काटना – कटाई
चढ़ना – चढ़ाई
कमाना – कमाई
पढ़ना – पढ़ाई
लड़ना – लड़ाई
(ग)’आ’ प्रत्यय के योग से-
पूजना – पूजा
घेरना – घेरा
झूलना – झूला
झगड़ना – झगड़ा
(घ)”आन’ प्रत्यय के योग से –
उड़ना – उड़ान
थकना – थकान
(च) चाव’ प्रत्यय के योग से –
चढ़ना – चढ़ाव
चुनना – चुनाव
बहाना बहाव
फैलना – फैलाव
ठहरना – ठहराव
बचना – बचाव
(छ) ‘आहट’ प्रत्यय के योग से –
घबराना – घबराहट
चिल्लाना – चिल्लाहट,
मुस्कराना – मुस्कराहट
झुंझलाना – झुंझलाहट
छटपटाना – छटपटाहट
गुनगुनाना – गुनगुनाहट
(ज)’ई’ प्रत्यय के योग से –
हँसना – हँसी
(झ) अन्य
भिड़ना – भिड़न्त
जलना जलन
लेना – लेन
लिखना – लिखावट
रुकना रुकावट
बनाना – बनावट
देना – देन
थकना – थकावट
सजना सजावट
6 . अव्यय शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनना –
(क)’ई’ प्रत्यय के योग से –
ऊपर – ऊपरी
भीतर – भीतरी
दूर – दूरी
(ख)’ता’ प्रत्यय के योग से –
निकट – निकटता
समीप – समीपता पनि
(ग)’य’ प्रत्यय के योग से –
समीप – सामीप्य
निकट – नैकट्य
(घ)’ही’ प्रत्यय के योग से –
मना – मनाही
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