‘लोकोक्ति’ का अर्थ है, लोक में प्रचलित वह कथन अथवा उक्ति जो व्यापक लोक अनुभव पर आधारित हो ।
लोकोक्ति किसी कहानी अथवा किसी चिर सत्य के आधार पर बने हुए पूरे वाक्य के रूप में होती है इसमें जीवन का विस्तृत अनुभव समाविष्ट होता है अर्थात् इसमें गागर में सागर जैसा भाव रहता है।
लोकोक्ति स्वयं में पूरा वाक्य होती है। इसलिए इसका वाक्य-प्रयोग किसी सामान्य कथन के बाद होता है।
यह सदैव किसी अन्य वाक्य की सहचरी बनकर प्रयुक्त होती है, अलग वाक्य होते हुए भी यह इस तरह अभिन्न रूप से पूर्व वाक्य से जुड़ी रहती है कि इनके बीच अनिवार्य एवं घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।
अतः हम कह सकते हैं कि लोकोक्तियाँ लोकानुभव पर आधृत वे वाक्य अथवा उपवाक्य हैं, जिनमें कथन (भाव) की पूर्णता विद्यमान होने के साथ-साथ व्यंजना शक्ति की प्रधानता होती है और जिनका प्रयोग किसी परिस्थिति को स्पष्ट करने के लिए किया जाता है।
हिंदी लोकोक्तियाँ – Lokoktiyan in Hindi
1 . अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – अकेला आदमी बड़ा कार्य नहीं कर सकता।
अन्य राजनीतिक दलों के सहयोग के अभाव में अन्ना हजारे का आन्दोलन असफल हो गया, सच ही है अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
2 . अधजल गगरी छलकत जाय – ओछा (अयोग्य) व्यक्ति अधिक इतराता है।
रामु के पुत्र का अभी थानेदार में चयन ही हुआ है नियुक्ति नहीं, किन्तु वह बंगला, कार आदि खरीदने की बातें करने लगा है। सच है अधजल गगरी छलकत जाय हो जाता है।
3 . अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर – फिर अपने को देय-स्वार्थी व्यक्ति अधिकार मिलने पर अपनों का ही भला करते हैं।
खान मंत्री बनते ही रामदयाल ने अपने परिवार वालों के नाम खाने स्वीकृत कराली। सही है अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को देय।
4 . अन्धी पीसे कुत्ताखाय – मूर्खों की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं।
सेठ साहूकार निरक्षर ग्रामीणों से अनाज खरीद शहर में दुगुने मूल्य में बेचते हैं। ठीक ही है अन्धा पीसे कुत्ताखाय कहावत चरितार्थ होती है।
5 . अन्धे के हाथ बटेर लगना – अयोग्य को किसी अच्छी वस्तु का सहज में ही मिलना।
मोहन ने अपने मित्रों के कहने पर सरपंच हेतु फार्म भरदिया, कुछ कमी के कारण उसके विरोधी का फार्म निरस्त होने पर वह निर्विरोध सरपंच बन गया। अरे, यह तो अन्धे के हाथ बटेर लग गया।
6 . अन्धों में काना राजा – मूर्खों में अल्पज्ञ भी बुद्धिमान समझा जाता है।
अनपढ़ ग्रामीणों में दसवीं पास पटवारी भी विद्वान समझा जाता है। सच है अन्धों में काना राजा होता है।
7 . अन्धेर नगरी चौपट राजा – अजागरूक जनता होगी तो कुप्रशासन ही होगा।
जनता रिश्वत देकर अपना गलत कार्य भी करवा लेती है फलतः अधिकारी भ्रष्ट बन गये हैं। ठीक ही है अन्धेर नगरी और चौपट राजा।
8 . अपनी अपनी ढपली अपना – अपना राग-एकमत का अभाव, मनमानी करना।
प्रादेशिक दल अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग अलापने में लगे हैं जिससे राष्ट्रीय हितों की प्रत्यक्ष उपेक्षा हो रही है।
9 . अपनी करनी पार उतरनी – स्वयं का परिश्रम ही काम आता है।
परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए स्वयं को ही प्रयत्न करना होगा, कोई और मदद नहीं कर सकता क्योंकि अपनी करनी पार उतरनी होती है।
10 . अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है – अपने क्षेत्र में तो सब जोर बताते हैं
भारतीय क्रिकेट टीम भारत में हर देश से जीतती है जबकि विदेशों में सदैव हारती ही है। इससे तो यह लगता है कि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है।
11 . अब पछताए होता क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत – अवसर बीत जाने के बाद पछताना व्यर्थ है।
परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर अपने पुत्र के टेसुए बहाने पर कहा बेटा अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
12 . अहिरन साथ गड़रिया नाचै भेड़ी खाय सियार – अपनी परिस्थिति को ठीक से समझे बिना दूसरे की देखादेखी साहस करने पर हानि होती है।
अपने पड़ोसी के सरपंच में खड़े होने पर राधेश्याम भी खड़ा हो गया इतना खर्च किया कि घर बेचना पड़ा सही ही है अहिरन साथ गडरिया नाचै भेड़ी खाय सियार।
13 . आई मौज फकीर की दिया झोपड़ा फूंक – विरक्त व्यक्ति के मन में किसी के भी प्रति लगाव नहीं होता।
एक संत के प्रवचन से प्रभावित हो नरसिंह मेहता ने अपनी सारी सम्पत्ति दान कर संन्यासी बन गये। ठीक ही कहा है आई मौज फकीर की दिया झोपडा फूंक।
14 . आँख का अन्धा नाम नयन सुख – गुणों के विपरीत नाम होना।
नाम है विवेक और दसवीं में पाँच बार अनुत्तीर्ण हो चुका है। सच है आँख का अन्धा नाम नयन सुख।
15 . आँख का अन्धा गाँठ का पूरा – मूर्ख किन्तु मालदार।
रमेश को आँख का अन्धा गाँठ का पूरा एक ऐसा दोस्त मिल गया कि उसके खर्च पर विदेश घूम आया।
16 . आगे कुआँ पीछे खाई – सब ओर से विपत्तियों में फँसना, सब (दोनों) ओर से संकट होना।
राजु पुत्री के विवाह में दहेज न दे तो रिश्ता टूटता है और देता है तो कर्ज में डूबता है, उसकी स्थिति आगे कुआँ पीछे खाई सी हो गई है।
17 . आगे नाथ न पीछे पगहा – पूर्णतः अनियन्त्रित होना।
माता-पिता की मृत्यु के बाद रमेश को कोई कहने वाला न रहा उसकी स्थिति तो अब आगे नाथ न पीछे पगहा सी हो गई है।
18 . आटे के साथ घुन भी पिसता है – दोषी के साथ निर्दोष का भी दण्डित होना।
पुलिस पर पत्थर फेंकने पर पुलिस ने दंगाइयों के साथ वहां खड़े लोगों को भी बन्दी बना जेल भिजवा दिया सही है आटे के साथ घुन भी पिसता है।
19 . आधा तीतर आधा बटेर – अमेल योग।
महिला के सरपंच बनने के बाद पंचायत में घूघट निकाल कर बैठी देख आगन्तुक ने कहा यह आधा तीतर आधा बटेर कैसे?
20 . आधी छोड़ सारी को धावै आधी रहेन सारी पावे – लालच बुरी बला है।
आर. ए. एस. का साक्षात्कार छोड़ रमेश आई.ए.एस. देने चला गया पर आई.ए.एस. में भी पास न हो सका। ठीक है आधी छोड़ सारी को धावै आधी रहे न सारी पावे।
21 . आम के आम गुठलियों के दाम – किसी कार्य से दुहरा लाभ।
आर. ए. एस. की तैयारी करते समय उसने नोट्स बनाए उससे उसका चयन हो गया तथा उन्हें छपवा दिया, किताब चल पड़ी, ठीक है आम के आम गुठलियों के दाम।
22 . आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास – अपने उच्च उद्देश्य से भटक जाना।
वह यहाँ उच्च अध्ययन के लिए आया था किन्तु यहाँ छोटी मोटी नौकरी कर अध्ययन छोड़ दिया है। ठीक हे आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।
23 . इमली के पात पर दण्ड पेलना – सीमित साधनों से बड़ा कार्य करने का प्रयास करना।
अपनी आर्थिक स्थिति जानते हुए भी लोकसभा के चुनाव लड़ रहे हैं, यह तो इमली के पात पर दण्ड पेलना है।
24 . ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया – भाग्य के कारण सांसारिक भिन्नता।
सड़क पर एक ओर शव यात्रा निकल रही थी तो दूसरी ओर बरात निकलते देख मैं सोचने लगा कि ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।
25 . उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई – निर्लज्ज को किसी बात की चिन्ता नहीं होती।
वह कई बार चोरी के अपराध में जेल जा चुका है अतः उस पर कहने का कोई प्रभाव नहीं होने का, क्योंकि उतरगई लोई तो क्या करेगा कोई।
26 . उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे – अपना अपराध न मानकर पूछने वाले पर हावी होना।
पाकिस्तान द्वारा भारत को आतंकवादी देश कहना इसी बात को चरितार्थ करता है कि उल्टा चोर कोटवाल को डाँटे।
27 . ऊँची दुकान फीका पकवान – प्रदर्शन अधिक वास्तविकता कम।
पब्लिक स्कूल का नाम सुन बच्चे का प्रवेश कराया किन्तु स्कूल का बोर्ड परीक्षा परिणाम पचास प्रतिशत ही रहा। ठीक है ऊँची दुकान फीका पकवान।
28 . ऊँट किस करवट बैठता है – परिणाम में निश्चितता का अभाव होना।
चुनाव में सभी दलों के कार्यकर्ताओं ने भरसक प्रयत्न किया, वोट पड़ चुके हैं, अब तो परिणाम के दिन ही पता चलेगा कि ऊँट किस करवट बैठता है।
29 . ऊँट के मुँह में जीरा – आवश्यकता अधिक पूर्ति बहुत कम।
राजस्थान में अकाल की भयंकर स्थिति होने पर भी केन्द्र ने केवल 10 करोड़ रुपये ही स्वीकृत किये यह ऊँट के मुँह में जीरा मात्र है।
30 . ऊँट की चोरी झुके झुके (निउरे निउरे) – छिपकर बुरे काम करने का प्रयत्न।
रिश्वत की राशि बन्द लिफाफे में लेते देख पड़ोसी लिपिक ने कहा – ऊँट की चोरी और झुके झुके।
31 . ऊधो का लेना, न माधो का देना – किसी से कोई मतलब नहीं होना।
राधेलाल कभी किसी को वोट देने नहीं जाते, उनका जीवन निःस्वार्थ, निस्पृह एवं तटस्थ है। सचमुच उनकी वृत्ति तो है ऊधो का लेना न माधो का देना।
32 . एक अनार सौ बीमार – वस्तु कम चाहने वाले अधिक।
जब एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नियुक्ति हेतु हजारों आवेदन पत्र आ गये तो अधिकारी ने कहा यह तो यही बात हुई एक अनार सौ बीमार।
33 . एक और एक ग्यारह होते हैं – संगठन में बड़ी शक्ति होती है।
दोनों पड़ोसियों द्वारा आतंकवादियों का मुकाबला करने पर आतंकवादी भाग छूटे। सच ही है एक और एक ग्यारह होते हैं।
34 . एक चुप सौ को हरावे – मौन रहने से झगड़ा शान्त हो जाता है।
सास बहू में रोज ही तू-तू मैं-मैं होते देख पड़ोसिन ने बहू से कहा कि एक चुप सौ को हराती है।
35 . एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा – एक दोष के साथ दूसरे दोष का जुड़ना।
सुरेश शराब तो पीता ही था पिताजी की मृत्यु के बाद तो उसके जुआ खेलना भी आरम्भ कर दिया। सच है एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।
36 . एक पंथ दो काज – एक प्रयत्न से दो कार्य सम्पन्न होना।
मोहन एक शादी में सम्मिलित होने के लिए दिल्ली गया, जनवरी को गणतन्त्र परेड देखने का अवसर भी मिल गया। हुआ न एक पंथ दो काज।
37 . एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है – एक बदनाम व्यक्ति सारे परिवार व गाँव को बदनाम कर देता है।
विद्युत विभाग का एक अधीक्षण अभियन्ता रिश्वत लेते पकड़ा गया किन्तु इससे सारे विद्युत विभाग की बदनामी हुई ठीक है एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है।
38 . एक म्यान में दो तलवार नहीं समा सकती – एक स्थान पर दो समान वर्चस्व के प्रतिद्वन्द्वी नहीं रह सकते।
नगर निगम चुनाव में दो समान वर्चस्व के नेता चुने गये अब किसे महापौर बनाया जाय विकट समस्या खड़ी हो गई, क्योंकि एक म्यान में दो तलवार नहीं समा सकती।
39 . ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डर – जब कठिन काम हाथ में लिया तो बाधाओं से क्यों विचलित हो।
जब एम. एल. ए. का चुनाव लड़ने का निश्चय कर लिया तो फिर खर्च से क्या पीछे हटना। सच है जब ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डर।
40 . ओछे की प्रीत बालू की भीत – नीच व्यक्ति की मित्रता क्षणिक होती है।
स्वार्थी नरेन्द्र के साथ तुम्हारा साझा लम्बे समय तक बने रहना असंभव है क्योंकि ओछे की प्रीत तो बालू की भीत होती है।
41 . ओस चाटे प्यास नहीं बुझती – थोड़ी वस्तु से आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती।
व्यापार में करोड़ों का घाटा रिश्तेदारों से हजारों माँग कर पूरा नहीं किया जा सकता क्योंकि ओस चाटे प्यास नहीं बुझती है।
42 . कंगाली में आटा गीला – मुसीबत पर मुसीबत आना।
पिछले सप्ताह दिनेश के पिता का निधन हो गया तथा इस सप्ताह घर में आग लगने से सब बहुत नष्ट हो गया। सच है कंगाली में आटा गीला होता ही है।
43 . कहाँ राजा भोज कहां गंगू तेली – आर्थिक स्थिति में बड़ा अन्तर होना।
44 . कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा – बेमेल वस्तुओं का संग्रह।
डॉ. शर्मा ने कई विद्वानों की पुस्तकों की सामग्री को अपनी पुस्तक में बेतरतीब दंग से ढूंस दिया वह तो कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा कहावत को चरितार्थ करती है।
45 . काठ की हाँडी दुबारा नहीं चढ़ती – छल कपट का व्यवहार हमेशा नहीं चलता।
पुराने पैसे लौटाए नहीं बल्कि और माँगने आ गये, अब मैं आपकी बातों में आने वाला नहीं। श्रीमान काठ की हाँडी दुबारा नहीं चढ़ती।
46 . काबुल में क्या गधे नहीं होते ? – बुराइयाँ (अपवाद) सब जगह मिलती हैं। (पायी जाती हैं)
शहर के प्रतिष्ठित विद्यालय का परीक्षा परिणाम अच्छा न रहने पर मित्र द्वारा आश्चर्य व्यक्त करने पर मैंने कहा काबूल में क्या गधे नहीं होते क्या?
47 . का वर्षा जब कृषि सुखाने – हानि हो जाने के बाद उपचार करने से क्या लाभ।
गाँव में आग से संब कुछ जल गया तब शहर से दमकल की गाड़ी पहुँची। यह तो वही बात हुई का वर्षा जब कृषि सुखाने।
48 . कै हंसा मोती चुगै कै भूखों मर जाय – प्रतिष्ठित पुरुष को जान से ज्यादा प्रतिष्ठा प्यारी होती है।
नकल से इन्कार करने पर हरि ने मोहन से कहा कि नकल की अपेक्षा मैं अनुत्तीर्ण होने को बेहतर मानता हूँ। सच है कैहंसा मोती चुगै कै भूखों मर जाय।
49 . कोयले की दलाली में हाथ काले – बुरी संगत का असर अवश्य पड़ता है।
राधेलाल चोरी का सोना ओने पोने में खरीदा करता, इस बार चोर की शिकायत पर जेल की हवा खानी पड़ी सच है कोयले की दलाली में हाथ काले।
50 . खग जाने खग ही की भाषा – सभी अपने अपने संपर्क के लोगों की प्रवृत्ति से परिचित होते हैं।
मालिक के बार बार कहने पर भी हड़तालियों ने हड़ताल वापस नहीं ली किन्तु कर्मचारी नेताओं के कहते ही हड़ताल वापस ले ली गई। सच है खग जाने खग ही की भाषा ।
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Lokoktiyan in Hindi
51 . खरी मजदूरी चोखा काम – सही पारिश्रमिक देने पर काम अच्छा होता है।
इमारत की मजबूती की प्रशंसा इंजीनियर द्वारा ठेकेदार की करने ठेकेदार ने कहा कि खरी मजदूरी चोखा काम।
52 . खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है – एक को देख कर दूसरे में भी परिवर्तन आता है।
एक लिपिक द्वारा अधिकारी को खरीखोटी सुनाते देख धीरे-धीरे कई कर्मचारी अधिकारी की उपेक्षा करने लगे। सच है खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है।
53 . खाल ओढिये सिंह की स्यार सिंह नहिं होय – बाहरी रूप बदलने से किसी के असली गुण (प्रवृत्ति) नहीं बदलते।
54 . खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे – असफलता से लज्जित होने पर क्रोध करना।
पहली गेंद पर आऊट होने पर खिलाड़ी ने जोर से जमीन पर बल्ला मारा तो वह टूट गया। दर्शक कहने लगे खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे।
55 . खुदा गंजे को नाखून न दे – अनधिकारी को अधिकार मिलना बुरा है।
कई सरपंचों पर भ्रष्टाचार के मुकदमें चल रहे हैं फिर भी सरकार द्वारा सरपंचों के आर्थिक अधिकार में वृद्धि करने पर यही कहा जायेगा खुदा गंजे को नाखून न दे।
56 . खोदा पहाड़ निकली चुहिया – परिश्रम अधिक किन्तु लाभ कम।
बोफोर्स तोपों के सौधे में हुए भ्रष्टाचार के लिए कई आयोग बने, खूब हो हल्ला हुआ, केवल एक को अपराधी घोषित किया गया। सच है खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
57 . गंगा गये गंगादास यमुना गये यमुनादास – अवसरवादी होना।
हमारे सरपंच महोदय हर राजनीतिक दल के नेताजी को अपने घर ले जाकर खूब आदर सत्कार करते हैं उनकी स्थिति तो गंगा गये गंगादास यमुना गये यमुनादास सी है।
58 . गधा खेत खाये जुलाहा पीटा जाए – किसी के अपराध की सजा किसी ओर को मिलना।
चोर ने चोरी का माल पड़ोसी के घर पर छिपादिया, पड़ोसी को जेल जाना पड़ा। सच ही है गधा खेत खायें जुलाहा पीटा जाए।
59 . गंजेडीयार किसके, दम लगाई खिसके – स्वार्थी व्यक्ति किसी के मित्र नहीं होते।
जब तक मित्र के पास पैसे थे, मित्रमंडली सदैव घेरे रहती, जब से उसके पास घर से पैसे आने बंद हो गए कोई भी मित्र उसके साथ नजर नहीं आता है ठीक गंजेड़ी यार किसके दम लगाई खिसके।
60 . गरीबी तेरे तीन नाम झूठा, पाजी, बेईमान – निर्धनता सदैव अपमानित होती है।
सेठजी की दुकान में पता नहीं किसने चोरी कि किन्तु सेठजी ने गरीब नौकर पर आरोप लगा पुलिस के हवाले कर दिया। सच है गरीबी तेरे तीन नाम झूठा, पाजी, बेईमान।
61 . गिरगिट की तरह रंग बदलना – किसी सिद्धान्त पर स्थिर न रहना।
आजकल के विधायक गिरगिट की तरह रंग बदलकर उसी का समर्थन करने को तैयार हो जाते हैं, जो उन्हें मंत्री पद दे।
62 . गुड़ खाय गुलगुलों से परहेज – दिखावटी विरोध या बनावटी परहेज।
पाखण्डी साधु भोग विलास का जीवन यापन करते हैं किन्तु अपने प्रवचन में स्त्रियों से दूर रहने की बात कहते हैं। यह तो यही हुआ गुड़ खाये और गुलगुलों से परहेज।
63 . गुड़ न दे गुड़ की बात तो कहे – मदद न दे किन्तु अच्छा व्यवहार तो करे।
गाँव के एक व्यक्ति के अधिकारी बनने पर गाँव के लोग उसके पास जाते हैं तो उसे सीधे मुँह बात भी नहीं करते देख लोग कहने लगते हैं गुड़ न दे गुड़ की बात तो कहे।
64 . गुड़ देने से मरे तो जहर क्यों दे – यदि समझाने से काम हो तो फिर दंड क्यों देना।
दण्डात्मक कार्यवाही की अपेक्षा बात चीत से हड़ताल को टाला जा सकता है यही करना चाहिए। ठीक ही है गुड़ देने से मरे तो जहर क्यों दिया जाय।
65 . गुरु गुड़ रह गये चेला चीनी हो गये – चेले का गुरु से अधिक विद्वान होना
66 . घर की खांड किरकिरी लागे बाहर का गुड़मीठा – अपनी वस्तु की अपेक्षा दूसरों की वस्तु का अच्छा लगना।
67 . घर का भेदी लंका ढावे – घर का शत्रु प्रबल होता है।
जयचन्द द्वारा मोहम्मद गौरी की सहायता करने के कारण पृथ्वीराज राठौड़ को हारना पड़ा तथा भारत गुलाम बन गया। सच है घर का भेदी लंका ढावे।
68 . घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध – अपने परिचित विद्वान व्यक्ति का सम्मान नहीं होता जबकि अपरिचित मूर्ख आदर पाता है।
गाँव के विद्वान पण्डित जी से यज्ञ न करवा कर बाहर से अज्ञानी पंडित को बुलाने पर बात चरितार्थ होती है कि घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध।
69 . घर की मुर्गी दाल बराबर – अत्यधिक एवं सहज में प्राप्त वस्तु की कोई कद्र नहीं होती।
विद्यालय के प्राध्यापकों से ट्यूशन न लेकर दूसरों से लेते हैं यह तो यही बात हुई घर की मुर्गी दाल बराबर।
70 . घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने – व्यर्थ का झूठा दिखावा करना।
भारत में आज भी कई परिवार भूखे सो रहे हैं सरकार को उनकी चिन्ता नहीं बल्कि एशियाड खेलों में अरबों रुपये खर्च कर रही है, ठीक ही कहा है घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने ।
71 . घर खीर तो बाहर खीर – घर में धन है तो बाहर भी आदर होगा।
नरेन्द्र मोदी के लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने पर विदेशों में भी सम्मान होने लगा है, ठीक है – घर खीर तो बाहर भी खीर।
72 . घर आया नाग न पूजै बाम्बी पूजन जाय – स्वतः आए सुअवसर का लाभ न उठाकर बाद में उसको प्राप्त करने के प्रयास करना।
सरकार गाँवों में कुटीर उद्योग लगाने के लिए आर्थिक सहयोग दे रही थी तो किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया अब समय बीत गया तो सहयोग हेतु शहर के चक्कर लगा रहे हैं ठीक है घर आया नाग न पूजै बाम्बी पूजन जाय।
73 . घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या – मजदूरी लेने में संकोच कैसा?
अध्यापक जी द्वारा मोहन दर्जी को कपडों की सिलाई के पैसे देने पर व लेने में आना कानी करने लगा तो अध्यापक जी ने कहा बेटे घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या।
74 . चंदन की चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ – वस्तु का महत्व उसके गुणों से होता है मात्रा से नहीं।
शिव के चार लड़के हैं फिर भी वृद्धाश्रम में रह रहे हैं जबकि राम के एक लड़का है जो माता-पिता की सेवा में लगा है। सच है चंदन की चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ।
75 . चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए – बहुत कंजूस होना।
सर्दी से ठिठुर कर सेठजी के बच्चे मर गये किन्तु उन्होंने उनके लिए गरम कपड़े तक नहीं खरीदे ठीक ही है सेठजी का तो सूत्र है चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए।
76 . चार दिन की चाँदनी फिर अंधियारी रात – सुख का समय थोड़ा होता है।
खेत विक्रय से प्राप्त पैसों से किसान के घर रोज उत्सव होने लगे, पकवान पकने लगे कुछ ही दिनों बाद फाके पड़ने लगे सच है चार दिन की चाँदनी फिर अँधियारी रात।
77 . चूहे का बच्चा बिल ही खोदता है – वंशानुगत स्वभाव कभी नहीं बदलता।
व्यापारियों के पुत्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर नौकरी की अपेक्षा व्यापार को ही महत्व देते हैं, सच ही है चूहे का बच्चा बिल ही खोदता है।
78 . चोर-चोर मौसेरे भाई – अपराधी व्यक्तियों में आपस में घनिष्ठता होती है।
सरकार द्वारा विपक्ष के विधायकों के भ्रष्टाचार पर कोई कार्यवाही नहीं करने पर लोगों ने कहा ठीक ही है चोर-चोर मौसेरे भाई।
79 . चोरन कुतिया मिल गई, पहरा, किसका देय – जब बी.एस.एफ का जवान ही तस्करी में पकड़ा गया तो लोग कहने लगे चोरन कुतिया मिल गई, पहरा किसका देय ।
80 . छछूदर के सिर में चमेली का तेल – अयोग्य व्यक्ति द्वारा स्तरीय वस्तु का उपयोग
निरक्षर एवं गरीब रमेश को दहेज में आधुनिक सुख सुविधाओं का सामान मिला तो पड़ोसी ईर्ष्यावंश कहने लगा यह छछूदर के सिर में चमेली का तेल कैसे?
81 . जंगल में मोर नाचा किसने देखा – किसी के गुणों की पहचान देखने से ही होती है।
शहर के लौटे मित्र द्वारा शहर में विद्यालय एवं चिकित्सालय निर्माण कराने की बातें करने पर मित्र ने कहा जंगल में मोर नाचा किसने देखा, गाँव में भी एक विद्यालय निर्माण करावो तो जाने।
82 . जल में रहकर मगर से बैर – आश्रयदाता से दुश्मनी अच्छी नहीं।
एक लिपिक द्वारा अधिकारी की शिकायत उच्च अधिकारियों से करने पर साथी लिपिक ने कहा, जल में रहकर मगर से बैर करना ठीक नहीं।
83 . जाकै पैर न फटी बिवाई वह क्या जाने पीर पराई – स्वयं दुख भोगे बिना दूसरे के दुख का आभास नहीं कर सकता हैं।
राजघराने से बने मंत्री द्वारा गरीबों की उपेक्षा पर लोग कहने लगे जाकै पैर न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई।
84 . जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ – प्रयत्न करने वालों को सफलता अवश्य मिलती है।
गाँव के दस बारह युवक आई.ए.एस. परीक्षा की तैयारी में लगे थे किन्तु दो ही युवक सफल हो सके जिन्होंने गहन अध्ययन किया। सही है जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ।
85 . जिसकी लाठी उसकी भैंस – शक्तिशाली की सदैव विजय होती है।
भूमाफिये गरीबों की जमीन हथिया कर बेदखल कर रहे हैं, सच है जिसकी लाठी उसकी भैंस।
86 . जैसे साँपनाथ, वैसे नागनाथ – दुष्टता में दोनों का समान होना।
एक निर्दलीय सांसद से पूछा कि आप कांग्रेस तथा भाजपा में से किसका समर्थन करोगे तो उन्होंने कहा मेरे लिए तो दोनों एक से है जैसे साँपनाथ, वैसे नागनाथ ।
87 . झूठ के पाँव कहाँ – झूठ अधिक दिन नहीं चल सकती।
एक महिला ने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या कर दी, पुलिस ने महिला के साथ कुछ कठोरता का व्यवहार करते ही सच उगल दिया, सच है झूठ के पाँव कहाँ ?
88 . टके की हाँडी गई कुत्ते की जात पहचान ली – थोड़े से नुकसान पर वास्तविकता का बोध होना।
कोटकी जेब से सौ रुपये का नोट गायब होने पर मालिक ने नौकर को नौकरी से हटा दिया। सच है टके की हाँडी गई कुत्ते की जात पहचान ली।
89 . ठोकर लगी पहाड़ की, तोड़े घर की सिल – बाहर बड़ों से अपमानित होने पर छोटों पर क्रोध प्रकट करना।
ऑफिस से अधिकारी से डॉट खाकर घर आये एक लिपिक द्वारा अपनी पत्नी को आते ही भला बुरा कहने पर माँ बोली बेटा ठोकर लगी पहाड़ की तोड़े घर की सिल।
90 . डूबते को तिनके का सहारा – महत्त्वपूर्ण संकट में थोड़ी सहायता भी महत्त्वपूर्ण होती है।
महेश की दुकान में आग लगने से सारा सामान जल गया, पड़ोसी दुकानदारों ने इकट्ठे कर एक लाख रुपये उसकी सहायतार्थ दिये जिससे वह पुन संभल गया ठीक है डूबते को तिनके का सहारा।
91 . ढाक के तीन पात – सदैव एक सी स्थिति रहना
सेठ जी ने व्यापार बढ़ाते हुए तीन दुकानें खोल दी किन्तु वर्ष के अन्त में देखा कि लाभ में कुछ भी वृद्धि नहीं है स्थिति वही ढाक के तीन पात सी ही है।
92 . तबेले की बला बन्दर के सिर – किसी दोषी की सजा किसी निर्दोष को।
चोरी तो किसी एक नौकर ने की किन्तु सेठजी ने सभी नौकरों को पदच्युत कर दिया। यह तो यही हुआ तबेले की बला बन्दर के सिर।
93 . तीन लोग से मथुरा न्यारी – सबसे भिन्न विचार होना।
रमेश मोहल्ले के किसी समारोह में सम्मिलित नहीं होता उसकी तो तीन लोक से मथुरा न्यारी है।
94 . तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता – अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना।
महेश का परिवार आर्थिक कठिनाइयों से झूझ रहा किन्तु महेश को कहीं जाना होता है तो किराये की कार लेकर जाता है। सच है तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता।
95 . तू डाल डाल मैं पात – पात एक-दूसरे से अधिक चालाक होना।
भारत द्वारा पाकिस्तान के सीमा का उल्लंघन करने पर मुँह तोड़ जवाब देने पर ऐसा प्रतीत होता है तू डाल डाल मैं पात पात।
96 . तेते पाँव पसारिए जेती लाम्बी सौर – अपने सामर्थ्य के अनुसार व्यय करना।
पुत्री के विवाह में धन का अपव्यय करते देख पिता ने पुत्र से कहा बेटा तेते पाँव पसारिए जेती लाम्बी सौर।
97 . थोथा चना बाजै घणा अल्पज्ञ या गुणहीन बढ़ – चढ़कर बातें करता है।
गाँव में विद्यालय, चिकित्सालय खुलवाने की बातें करने वाले नेताजी पाँच वर्ष में कुछ नहीं कर सके तो लोग कहने लगे थोथा में चना बाजै घणा।
98 . थोड़ी पूँजी धणी को खाय – अपर्याप्त पूँजी से व्यापार में घाटा में ही होता है।
रमेश ने बैंक से ऋण ले पोल फैक्ट्री चालू कि किन्तु सालभर तक सरकार से चैक प्राप्त नहीं हुआ तो ब्याज की राशि लाभ से भी ज्यादा हो गई। सच है थोड़ी पूँजी धणी को खाय।
99 . दबी बिल्ली चूहों से भी कान कटवाती है- किसी से दबा हुआ आदमी अपने से कमजोर लोगों के भी वश में हो जाता है।
मंत्री महोदय द्वारा एक महिला की हर फरमाइश को पूरा करते देख लोग कहने लगे दबी बिल्ली चूहों से भी कान कटवाती है।
100 . दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते – मुफ्त की वस्तु के गुण अवगुण नहीं देखे जाते।
पंडित जी द्वारा उपहार में मिली चादर की लम्बाई की आलोचना करते देख उसके मित्र ने कहा कि दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते।
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हिंदी लोकोक्तियाँ
101 . दलाल का दिवाला क्या, मस्जिद का ताला क्या – जिसकी क्षति का भय नहीं उसकी सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता नहीं।
शहर में बहुत चोरियों हो रही है अतः तुम्हें सावधानी बरतनी चाहिए मित्र के इस कथन पर रामू ने कहा दलाल का दिवाला क्या मस्जिद का ताला क्या ।
102 . दुधारू गाय की लात भी सही जाती है – लाभकारी व्यक्ति से थोड़ा बहुत नुकसान भी सहन करना पडता है।
राजु के वेतन से घर का खर्च चलता है वह घर के बड़े बुजुर्गों को भला बुरा भी कहता है तो घर वाले चुप्पी साध लेते हैं क्योंकि दुधारू गाय की लात भी सही जाती है।
103 . दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है – एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है।
महेश साझे के व्यापार में धोखा खा चुका है अतः अब कोई पुनः व्यापार की बात कहता है तो वह साफ मना कर देता है क्योंकि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है।
104 . दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम – दुविधा ग्रस्त व्यक्ति के दोनों कार्यों में सफलता नहीं मिलती।
रमेश कभी पी.ओ.की परीक्षा की तैयारी करता तो कभी एस.आई. की, किन्तु वह न पी.ओ. की परीक्षा उत्तीर्ण कर सका न एस.आई. की। ठीक ही है दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम।
105 . धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का – दो भिन्न पक्षों से जुड़ा रहने वाला कही का नहीं रहता।
हड़ताल के नाम पर मजदूर नेता मजदूरों का साथ छोड़ मिल मालिक के साथ मिल गया किन्तु हड़ताल समाप्त होने पर मालिक ने उससे किनारा कर लिया अब उसकी स्थिति धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का जैसी हो गई।
106 . नक्कार खाने में तूती की आवाज – बड़ों के बीच छोटों की कोई नहीं सुनता।
पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ में हर बार कश्मीर का राग अलापता है किन्तु उसको कोई तवज्जो नहीं देता। सच है कि नक्कार खाने में तूती की आवाज कौन सुनता है।
107 . न नौमन तेल होगा, न राधा नाचेगी – किसी कार्य को करने हेतु अव्यावहारिक शर्त लगाना।
महेश के पिता ने महेश से कहा कि तू बारहवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो आये तो मोटर साइकिल दिला देंगे तब महेश ने कहा न नौमन तेल होगा, न राधा नाचेगी।
108 . नवाज छोड़ने गये रोजे गले पड़े – छोटी समस्या से मुक्ति के प्रयास करने में बड़ी समस्या से घिरआना।
सेठजी ने नेताजी को गाँव में प्याऊ का उद्घाटन करने बुलाया तो उद्घाटन समारोह में नेताजी ने कहा सेठ जी को तो गाँव में विद्यालय का भवन बनाना चाहिए। ठीक है, नवाज छोड़ने गये, रोजे गले पड़े।
109 . न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी– किसी समस्या के मूल कारणों को ही नष्ट करना।
अपने पुत्रों को दिन प्रतिदिन झगड़ते देख सेठ पिता ने बड़े पुत्र से कहा तुम अपनी दुकान अलग लगा लो ताकि न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।
110 . नाच न जाने आँगन टेड़ा – अपनी अयोग्यता छिपाने के लिए साधनों को दोष देना।
महेश से गाना सुनाने का. कहने पर वह कहने लगा साज अच्छे नहीं है, ठीक है नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
111 . नानी के आगे ननिहाल की बातें – किसी जानकार के समक्ष बड़ी बड़ी बातें करना।
किसी गाइड के सम्मुख ऐतिहासिक स्थल के विषय में बढ़-चढ़ कर बातें करने पर मित्र ने कहा- नानी के आगे ननिहाल की बातें ठीक नहीं।
112 . नीम हकीम खतरे जान – अनुभव हीन व्यक्ति हानिकारक होता है।
मकान बनाने का ठेका नये ठेकेदार को देने पर पड़ोसी ने कहा श्रीमान जी नीम हकीम खतरे जान होता है।
113 . नेकी और पूछ पूछ – शुभ कार्य करने में क्या पूछना।
मै गाँव में विद्यालय भवन बनवाना चाहता हूँ। पूछने पर सरपंच ने सेठ जी से कहा कि नेकी और पूछ पूछ ।
114 . नेकी कर दरिया में डाल – भलाई कर उसे भूल जाओ, प्रतिदान की अपेक्षा न करें।
गाँव में चिकित्सालय का निर्माण कराने पर पुत्र को शेखी बगारते देख पिता ने कहा बेटा नेकी कर दरिया में डाल, बात को गाँठ बांध लो।
115 . नौ नकद न तेरह उधार – बाद में मिलने वाले अधिक लाभ से अभी कम भी मिल रहा लाभ अच्छा है।
भविष्य में मिलने वाले उच्च पद की अपेक्षा रमेश द्वारा निम्न पद पर ही कार्य करने का निर्णय लेने पर पिता ने कहा कि तुमने ठीक ही किया नौ नकद न तेरह उधार।
116 . नौ दिन चले अढ़ाई कोस – बहुत धीमी गति से कार्य करना।
तीन साल में पुल का एक तिहाई कार्य भी सम्पन्न न होते देख में इंजीनियर ने ठेकेदार से कहा नौ दिन चले अढ़ाई कोस की गति से कार्य करने पर यह 10 वर्ष में भी पूरा न होने का।
117 . निर्बल की जोरू सब की भाभी – कमजोर को सभी दबाते हैं।
अन्धे भिखारी को हर कोई परेशान करता है कोई धोती खींचता है तो कोई लाठी । सच है निर्बल की जोरू सब की भाभी।
118 . नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली – जीवन भर पाप कर अन्त में भक्ति की बातें करना।
मक्कार सेठ करोड़ीमल को कौन नहीं जानता आजकल गाँव में अस्पताल बनवा रहा है, ठीक है नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली।
119 . पराधीन सपनेहुँ सुख ना हीं – जन्म से बन्धक मजदूर की शादी होने पर मित्र ने कहा अब कैसी गुजर रही तो बन्धक ने उत्तर दिया पराधीन सपने हुँ सुख नाहीं।
120 . प्रभुता पाहि काहि मद नाहिं – उच्च पद पाकर किसे घमण्ड नहीं होता।
भाजपा को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिलने पर वे अब राजनीतिक दलों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने लगे हैं सच है प्रभुता पाहि काहि मद नाहिं।
121 . बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी – जो अनिष्ट होना है उससे बचा नहीं जा सकता।
आय कर देने से तुम कब तक बचते रहोगे यदि कभी आयकर विभाग का छापा पड़ गया तो सब वसूल लेगी सच है बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी।
122 . बद अच्छा बदनाम बुरा – बदनामी से आर्थिक हानि ठीक है।
भ्रष्ट लिपिक के घर का स्तर देख ईमानदार अधिकारी की पत्नी ने रिश्वत लेने की बात की तो अधिकारी पति ने स्पष्ट कह दिया बद अच्छा बदनाम बुरा।
123 . बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद – मूर्ख किसी के महत्व को आँक नहीं सकता।
नेताजी द्वारा कम्प्यूटर शिक्षा की आलोचना करने पर अधिकारी व लोग मन ही मन, सोचने लगे बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।
124 . बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज – शेखी बगारने वाले पर व्यंग्य करना।
शहर से कुछ कमाकर गाँव आये राजु ने गाँव में मकान बनाने, खेत खरीदने की बात कहने पर ग्रामीण कहने लगे बाप न मारी मेंढ़की बेटा तीरंदाज।
125 . बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना – बिना प्रयास के ही वस्तु का मिल जाना।
राधे ने कुछ लोगों के कहने पर सरपंच पद हेतु आवेदन कर दिया, विरोधी प्रत्याक्षी का खारिज होने पर वह निर्विरोध सरपंच बन गया। सच है यह तो बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया।
126 . भेड़ की ऊन कोई नहीं छोड़ता – कमजोर का हर कोई शोषण करता है।
किसी भी दल का नेता हो, गरीबों की योजनाओं का पैसा हड़पने में कसर नहीं छोड़ता। सच है भेड़ की ऊन कोई नहीं छोड़ता।
127 . मन चंगा तो कठौती में गंगा – मन की पवित्रता ही महत्त्वपूर्ण है।
उसने चारधाम यात्रा जाने की अपेक्षा उस राशि को दीन दुखियों की सेवा में खर्च कर दी। सच है मन चंगा तो कठौती में गंगा।
128 . मलयागिरि की भीलनी, चंदन देय जराय – जहाँ वस्तु बहुतायत में मिलती है, वहाँ उसकी कद्र नहीं होती।
129 . मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक – सीमित सामर्थ्य होना।
गाँव वालों ने विधायक महोदय से कहा आप ही मंत्री जी से मिलकर विद्यालय को क्रमोन्नत कराइये, हम तो आपसे ही कह सकते हैं क्योंकि मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक।
130 . मुख में राम बगल में छुरी – बाहर अच्छा प्रदर्शन किन्तु मन में शत्रुता का भाव।
हिन्दी चीनी भाई भाई के नारे लगाने वाले चीन ने जब भारत पर आक्रमण कर दिया तो यह स्पष्ट हो गया कि चीन मुख में राम बगल में छुरी का व्यवहार कर रहा है।
131 . म्याऊ का ठौर कौन पकड़े – भय के स्थान पर कौन जावे।
हड़ताली छात्रों को वार्ता हेतु प्रधानाचार्य ने आमन्त्रित किया कोई भी छात्र नहीं गया सच है म्याऊ का ठौर कौन पकड़े।
132 . यह मुँह और मसूर की दाल – योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना।
अध्यापक पुत्र के लिए पिता द्वारा दहेज में कार मांगने पर पड़ोसी के मुँह से यह निकल गया – यह मुँह और मसूर की दाल।
133 . रस्सी जल गई पर बल न गया – पुरानी प्रतिष्ठा नष्ट होने पर भी दंभ बने रहना।
राजा महाराजाओं के राज्य चले गये किन्तु आज भी वे जन सामान्य से सीधे मुँह बात तक नहीं करते। ठीक है रस्सी जल गई पर बल न गया।
134 . रोज कुआँ खोदना रोज पानी पीना – रोज कमाना रोज खाना।
हड़ताल के कारण शहर बन्द, के दिन दिहाड़ी मजदूर के परिवार को भूखों मरना पड़ता है क्योंकि वे तो रोज कुआँ खोदकर रोज पानी पीते हैं।
135 . लकड़ी के बल बन्दरिया नाचे – भय द्वारा ही कार्य संभव है।
नई सरकार ने घोषणा कर दी यदि कोई रिश्वत मांगे उसकी शिकायत कीजिए, सभी कर्मचारी ईमानदारी से काम करने लगे ठीक ही है लकड़ी के बल बन्दरिया नाचे।
136 . लातों के भूत बातों से नहीं मानते – नीच व्यक्ति कहने से नहीं दण्ड के भय से कार्य करते है।
शातीर चोर अपना अपराध आसानी से स्वीकार नहीं करते, जबकि कठोरता का व्यवहार करने पर सब कुछ बता देते हैं। सच है लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
137 . वहम की दवा लुकमान के पास नहीं है – सन्देह निवारण की कोई औषधि नहीं होती।
138 . विधिकर लिखा को मेटन हारा– भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
पंडितजी ने अपनी पुत्री का विवाह शुभ मुहूर्त में जन्म पत्रिका मिला कर किया फिर भी दो माह बाद दुल्हे की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। सच है. विधिकर लिखा को मेटन हारा।
139 . वकीलों के हाथ परायी जेब में – दूसरे से धन लेने का सर्वदा प्रयत्न करना।
तुम्हारी प्रकृति बन गई है जहाँ कहीं जाते हो उधार में सामान ले आते हो पुनः चुकाने का नाम नहीं लेते तुम्हारा तो सिद्धान्त ही बन गया वकीलों के हाथ परायी जेब में।
140 . विष दे विश्वास न दे – विश्वास दिलाकर धोखा देना भयंकर होता है।
मित्र बन कर साझे में व्यापार प्रारम्भ किया तथा करोड़ों रुपये लेकर कहीं गायब हो गया, सच है विष दे विश्वास न दे।
141 . विनाश काले विपरीत बुद्धि – प्रतिकूल समय में व्यक्ति का विवेक भी नष्ट हो जाता है।
सीता हरण के कारण लंकेश रावण के कुल का ही नाश हो गया, सही है विनाश काले विपरीत बुद्धि।
142 . शौकीन बुढ़िया, चटाई का लहँगा – बुरी तरह का भयंकर शौक।
विधायक बनते ही नेताजी ने कार खरीद ली, जो धक्का देने पर ही चलती है, यह यही तो बात हुई कि शौकीन बुढ़िया, चटाई का लहँगा।
143 . सब धान बाइस पंसेरी – भले बुरे का अन्तर न कर सकना।
बोर्ड परीक्षा में विद्यालय के सभी छात्रों के विज्ञान में समान अंकों को देख प्रधानाचार्य ने कहा कि परीक्षक ने सब धान बाइस पंसेरी कर उत्तर पुस्तकें जांची।
144 . समरथ को नहीं दोष गुसाँई – सामर्थ्यवान को कभी कोई दोष नहीं देता।
व्यापार में पिताजी के निर्णय से लाखों का घाटा हो गया किन्तु घर का कोई व्यक्ति कुछ न बोला। सही है समरथ को नहीं दोष गुसाँई।
145 . सावन सूखा न भादो हरा – सदैव एक सी स्थिति बने रहना।
स्वतन्त्रता के साठ वर्ष बाद भी भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है सच है उनकी स्थिति सावन सूखा न भादो हरा की सी है।
146 . सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे – बिना हानि के काम का बन जाना।
संबंधी से रुपये वसूलने हेतु पिता ने पुत्र से कहा कि कोई ऐसा उपाय करो जिससे रुपये भी वसूल हो जाए और संबंध भी बना रह जाय । अर्थात साँप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
147 . सूत न कपास जुलाह कोरी से लट्ठम लट्ठा-निराधार बात पर झगड़ा करना।
अभी चुनाव तो हुए नहीं किन्तु किसकी सरकार बनेगी इसी पर बहस हो रही है ठीक है सूतं न कपास जुलाह कोरी से लट्ठम लट्ठा।
148 . हाथ कंगन को आरसी क्या– प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या?
सही शब्दार्थ के लिए व्यर्थ ही बहस क्यों कर रहे हैं। यह रहा शब्द कोश सही अर्थ देख लीजिए। सही है. हाथ कंगन को आरसी क्या।
149 . हिन्दी न फारसी मियाँजी बनारसी – गुणहीन होकर भी गुणी होने का दम्भ करना।
अनिल दसवीं भी उत्तीर्ण नहीं किन्तु बातें ऐसी करता है मानों एम. ए. पास है। सच है हिन्दी न फारसी मियॉजी बनारसी।
150 . होनहार बिखान के होत चीकने पात – महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन में ही नजर आ जाते हैं।
नरेन्द्र के तर्कों को सुनकर एक संन्यासी ने कहा था कि यह बालक भविष्य में महान साधु बनेगा। सच है होनहार बिखान के होत चीकने पात।
151 . हंसा थे सो उड़ गये कागा भये दीवान – सज्जनों के अभाव में मूखों का उच्च पद पाना।
देश की वर्तमान अव्यवस्था से परेशान बुजुर्ग लोग पुराने शासन व्यवस्था की दुआ देते हुए कहते हैं कि हंसा थे सो उड़ गये कागा भये दीवान।
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अन्य प्रचलित लोकोक्तियाँ एवं अर्थ
1 . अंधा क्या चाहे दो आँखें – अभीष्ट वस्तु का मिलना।
2 . अक्ल बड़ी या भैंस – बुद्धि बल शारीरिक बल से श्रेष्ठ होता है।
3 . अरहर की टट्टी गुजराती ताला – अनमेल साधन जुटाना।
4 . अपना हाथ जगन्नाथ का भात – अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है।
5 . अतिशय रगड़ करै जो कोई अनल प्रगट चंदन तै होई – अति हर कार्य में बुरी होती है।
6 . अकेले सूपन खाँ आगे लडै कि पीछे – अकेला व्यक्ति एक साथ अनेक काम नहीं कर सकता।
7 . अटका बनिया देय उधार – मजबूर व्यक्ति को अनचाहा कार्य करना पड़ता है।
8 . अन्धे के आगे रोवे अपने भी नैन खोवे अपात्र से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
9 . अन्धे को अंधेरे में बहुत दूर की सूझी – किसी मूर्ख द्वारा बुद्धिमानी की बात करना।
10 . अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम ईश्वर सब की आवश्यकता की पूर्ति करता है।
11 . अशर्फियों की लूट और कोयलों पर मोहर – कीमती की अपेक्षा तुच्छ वस्तुओं की चिन्ता करना।
12 . अपना दाम खोटा तो परखने वाले का क्या दोष – अपनी ही वस्तु बुरी तो दूसरे का क्या दोष।
13 . आपकाज महाकाज – अपने हाथ से करने पर ही काम अच्छा होता है।
14 . आप न जावै सासरे, औरन को सिख देते – आप स्वयं वह कार्य न करे किन्तु औरों को उसे करने की सीख देना।
15 . आई तो रोजी नहीं तो रोजा – कमाया तो खाया नहीं तो भूखों मरे।
16 . आ बैल मुझे मार – जानबूझ कर मुसीबत मोल लेना।
17 . आँख बची और माल दोस्तों का – थोड़ी सी असावधानी पर हानि उठानी पड़ती है।
18 . आसमान से गिरा खजूर में अटका बड़ी विपत्ति से बचकर छोटी विपत्ति में फँसना।
19 . इस हाथ ले उस हाथ दे – हिसाब-किताब साफ रखना।
20 . ऊँच निवास नीच करतूती – बड़ा पद पाकर भी नीचता का आचरण करना।
21 . एक तवे की रोटी क्या छोटी क्या मोटी – सभी का लगभग समान स्तर होना।
22 . ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय अक्षम, आलसी, अकर्मण्य की कोई सहायता नहीं करता।
23 . कभी घी घणा कभी मुट्ठी चना – समय सदैव एकसा नहीं रहता।
24 . काला अक्षर भैंस बराबर – बिल्कुल निरक्षर अनपढ़ होना।
25 . कानी के ब्याह को सौ-सौ जोखिम – एक दोष होने पर अनेक कठिनाइयों की संभावना।
26 . खाई खोदे और कू ताको कूप तैयार – दूसरों का अहित सोचने वाले का भी अहित होता है।
27 . गरजते सो बरसते नहीं – कथनी व करनी में अन्तर होना।
28 . घर का भेदी लंका ढाहे – घर का शत्रु प्रबल होता है।
29 . चंदन विष व्यापै नहीं लिपटे रहत भुजंग – भले लोगों पर बुरों की संगति का असर नहीं होता।
30 . जाको राखे साइयाँ मार सके न कोई – ईश्वर रक्षक है तो कोई भी कुछ नहीं कर सकता।
31 . जिस पत्तल में खाना, उसी में छेद करना अपनी भलाई करने वालों का ही बुरा करना।
32 . जैसी बहे बयार पीठ ताहि विधि कीजे – परिस्थिति के अनुसार चलना।
33 . टके की बुलबुल नौ टका टुसकाइ – अधिक लागत परन्तु लाभ कम होना/कम कीमती वस्तु का रखरखाव पर अधिक खर्च।
34 . चोर सो कहे चोरी कर शाह से कहे जागता रह – दोनों विरोधी पक्षों से सम्पर्क रखने की चालाकी करना।
35 . तीन में न तेरह में मृदंग बजाये डेरे में – छोटे लोगों द्वारा अपने को महान बताना।
36 . तिनके की ओट पहाड़ – छोटी बात के पीछे बड़ा रहस्य ।
37 . तेली का तेल जले, मशालची का दिल – हानि किसी की दर्द किसी को।
38 . धीरे-धीरे से मना धीरे सब कुछ होय – किसी कार्य की सिद्धि समय आने पर स्वतः होती है।
39 . दाख पके जब काग के होय कंठ में रोग भाग्य के बिना उत्तम वस्तु प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो जाती है।
40 . पूत के पाँव पालने में नजर आते हैं – महान के लक्षण बचपन में नजर आ जाते हैं।
41 . भागते भूत की लंगोठी ही सही – सर्वनाश में थोड़ा बचे वह भी ठीक है।
42 . भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुराय – मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।
43 . मान न मान में तेरा मेहमान – जबरदस्ती गले पड़ना।
44 . राम मिलाई जोड़ी एक अंधा एक कोड़ी – समान प्रकृति वालों में मित्रता होना।
45 . साँझे की हाँडी चौराहे पर फूटती है – साझेदारी में साझेदारी में झगड़ा होता ही है।
46 . हथेली पर सरसों नहीं उगती – कोई कार्य जल्दी में नहीं होता, समय लगता है।
47 . हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और – कथनी व करनी में अन्तर होना।
48 . हीरा मुख से कब कहै लाख टंका मेरो मोल – गुणीजन आत्म प्रशंसा से दूर रहते हैं।
हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar