अयोगवाह वर्ण – Ayogwah Varn in Hindi Grammar

हिंदी व्याकरण में वर्ण के मुख्यतः दो प्रकार स्वर वर्ण और व्यंजन वर्ण होते हैं। लेकिन कुछ विद्वान अयोगवाह वर्ण को भी वर्ण का तीसरा प्रकार मानते हैं।

इस आर्टिकल में आप अयोगवाह वर्ण के बारे में पूरी जानकारी पढ़ सकते हैं।

अयोगवाह वर्ण (Ayogwah Varn Kise Kahate Hain)

हिन्दी वर्णमाला में अनुस्वार ( ं ) को अं तथा विसर्ग (:) को अः के रूप में लिखा जाता है। इन्हें स्वर तथा व्यंजन की श्रेणी में न रखकर अयोगवाह कहा जाता है क्योंकि इनका उच्चारण किसी स्वर के बाद ही होता है अर्थात् इनके उच्चारण के पहले स्वर आता है, इसलिए इन्हें ‘अ’ आदि स्वरों के साथ संयुक्त करके ही लिखा जाता है।

इनकी स्थिति स्वर तथा व्यंजन के मध्य की है। फलतः हिन्दी वर्णमाला में इन्हें स्वरों के पश्चात् अं, अः के रूप में लिखा जाता है। विसर्ग का प्रयोग हिन्दी में संस्कृत शब्दों (तत्सम) में ही होता है।

(अ) अनुस्वार ( ं ) – केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के तत्त्वावधान में ‘मानक हिन्दी वर्णमाला’ की प्रस्तुति में की गयी संस्तुतियों के अनुसार, “संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ हलन्त पंचमाक्षर (नासिक्य व्यंजन) के बाद उसी वर्ग के शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए।

जैसे – गंगा, चंचल, ठंडा, संध्या, संपादक आदि (गङ्गा, चञ्चल, ठण्डा, सन्ध्या, सम्पादक नहीं) यदि पंचमाक्षर दोबारा आए तो वह (हलन्त पंचमाक्षर) पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा, जैसे-वाङ्मय, चिन्मय, उन्नति, सम्मेलन, अन्न, अन्य, सम्मति, उन्मुख आदि। अतः वांमय, चिंमय, उंनति, संमेलन, अंय, अंन रूप ग्राह्य नहीं हैं।”

अतः स्पर्श व्यंजन के पूर्व तथा अन्तस्थ एवं ऊष्म व्यंजनों के पूर्व अनुस्वार का प्रयोग करना चाहिए किन्तु द्वित्व पंचमाक्षर हो वहाँ अनुस्वार का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

अनुनासिक स्वर (चन्द्र बिन्दु) भी अयोगवाह होते हैं।

(ख) विसर्ग (:) – वैसे विसर्ग मूलतः संस्कृत की ध्वनि है। हिन्दी में विसर्ग ध्वनि को कोई स्थान नहीं है। हिन्दी के तत्सम शब्दों में विसर्ग प्रयुक्त होता है। जैसे-प्रातः, दुःख, मन:कामना, पयःपान, अन्तःकरण, रजःकण, अन्तःपुर आदि।

अतः विसर्ग युक्त शब्द तत्सम में प्रयुक्त होते हों तो विसर्ग का प्रयोग अवश्य करना चाहिए किन्तु उनका प्रयोग जब तद्भव रूप में करना हो तो हिन्दी में विसर्ग का लोप हो चुका है, विसर्ग के बिना ही काम चलता है।

जैसे – सुख-दुख का साथी। हिन्दी में विसर्ग का उच्चारण ‘ह’ जैसा होता है जबकि संस्कृत में इसका उच्चारण ‘ह’ से भिन्न रहा है तथा विसर्ग का उच्चारण स्थान कंठ होने के कारण विसर्ग का उच्चारण ‘ह’ जैसा हो गया है।

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