संक्षिप्तीकरण अथवा संक्षेपण अंग्रेजी के ‘प्रेसी’ का हिन्दी रूपान्तरण है। ‘प्रेसी’ शब्द का अर्थ है किसी विस्तृत अवतरण का ऐसा संक्षिप्त रूप जो अपने आप में यथातथ्य सुनिश्चित और सुस्पष्ट हो।
संक्षिप्तीकरण या संक्षेपण में किसी लेख, भाषण, पत्र लिखित सामग्री को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है। फलतः ऐसा करते समय दिए गए अवतरण में आये अप्रासंगित, तथ्यों, बातों उदाहरणों आदि को छोड़ दिया जाता है।
केवल मूल के उपयोगी अंश को ही ध्यान में रखा जाता है। अतः संक्षेपण मूल अवतरण का सुसम्बद्ध, तारतम्ययुक्त स्पष्ट स्वतः पूर्ण सहज भाषा में व्यक्त प्रभावशाली संक्षिप्त रूप होता है।
अपठित गद्यांश बनाने की विधि –
1 . अध्ययन – सर्वप्रथम मूल अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। अवतरण के ध्यानपूर्वक पढ़ने का आशय है मूल संदर्भ एवं मूल कथ्य को पूर्णतः समझना।
अवतरण को कितनी बार पढ़ा जाय, यह पाठक की स्मरण शक्ति, योग्यता और अभ्यास पर निर्भर करता है। वैसे मनोवैज्ञानिकों का मत है कि सामान्य तीन बार पढ़ने पर मूल अवतरण का मन्तव्य समझ में आ जाता है।
2 . शीर्षक का चयन – अवतरण का कथ्य और प्रतिपाद्य समूह में आ जाने के बाद उसके शीर्षक का चयन करना चाहिए। शीर्षक चयन में यह विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि वह किसी भी स्थिति में वाक्यांश न हो।
(क.) सामान्यतः दो तीन शब्दों से अधिक का शीर्षक नहीं होना चाहिए।
(ख.) शीर्षक मूल अंश के केन्द्रीय भाव से संबंधित होना चाहिए।
(ग.) किसी भी स्थिति में शीर्षक पंक्ति रूप में न हो, क्रियावान्दी न हो।
(घ.) हर स्थिति में शीर्षक एक ही होना चाहिए।
(च.) कई बार शीर्षक अवतरण में ही छिपा हुआ दिखाई दे जायेगा। कई बार अवतरण के आरम्भ में तो कई बार अवतरण के अंतिम अंश में। बहुत कम स्थितियों में शीर्षक अवतरण के मध्य में भी अन्तर्निहित हो सकता है। नहीं तो अवतरण के केन्द्रीय भाव, उसके कथ्य, प्रतिपाद्य का मूल मंतव्य को शीर्षक का आधार बनाना चाहिए।
(छ.) शीर्षक की वर्तनी शुद्ध होनी चाहिए।
3 . सारांश – संक्षेपण में अवतरण के प्रमुख विचारों का मुख्य तथ्यों का सावधानीपूर्वक चयन करना होता है। प्रमुख कथ्य का चयन करते समय अप्रमुख तथ्यों, विचारों को छोड़ते शीर्षक को ध्यान में रखते हुए शीर्षक से जुड़े तथ्य एवं विचारों का चयन करना चाहिए।
अभ्यर्थी को केवल मुख्य तथ्यों का सावधानीपूर्वक चयन करना है, कोई आलोचना या टीका टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। चयनित विचारों एवं तथ्यों को फिर क्रमबद्ध रूप देना चाहिए मूल अवतरण के क्रम को आवश्यकतानुसार बदला भी जा सकता है, किन्तु प्रमुख कथ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। वाक्यों की क्रमबद्धता का पूरा ध्यान रखना चाहिए। सारांश एक तिहाई से अधिक न हो।
****************
अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh in Hindi) – 1
राष्ट्रभाषा की आवश्यकता राष्ट्रीय सम्मान की दृष्टि से भी है। अपने को एक ही राष्ट्र के निवासी मानने वाले दो व्यक्ति किसी विदेशी भाषा में बातें करें – यह हास्यास्पद असंगति है। इस बात का घोतक भी है कि उस देश में कोई समुन्नत भाषा नहीं है। दूसरे के सामने हाथ पसारना समृद्धि का नहीं दरिद्रता का चिह्न है। दूसरे की भाषा से काम चलाना भी बहुत कुछ वैसा ही है जिसकी अपनी भाषा है वह दूसरे की भाषा क्यों उधार ले ? इससे राष्ट्रीय सम्मान में बट्टा लगता है। विदेशों में जाने पर भारतीयों को अंग्रेजी में बात करते देखकर वहाँ के निवासी आश्चर्य से पूछ. बैठते हैं कि क्या आपकी अपनी के ई भाषा नहीं है ? इस प्रश्न का क्या उत्तर दिया जाए ? भाषाएँ तो हमारे यहाँ अनेक हैं – एक से एक सुन्दर एवं समृद्ध। हीन भावना के कारण उनको नहीं अपना पाते अपनी साहित्यिक और भाषिक समृद्धि पर सन्देह बना रहता है।
1 . शीर्षक – राष्ट्रभाषा
2 . संक्षेपण – भारत राष्ट्र की अपनी राष्ट्रभाषा है, किन्तु जब दो भारतीय विदेशों में किसी विदेशी भाषा में बातें करते हैं तो उन्हें ऐसा करते देख वे भारतीयों से व्यंग्य मिश्रित भाषा में पूछ बैठते हैं कि क्या आपकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। भारतीयों द्वारा उनके प्रश्न का कोई उत्तर देते नहीं बनता क्योंकि भारतीय अपनी भाषा में बात करने में हीनता का अनुभव करते हैं, फलतः हँसी के पात्र बन कर रह जाते हैं।
अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh in Hindi)- 2
लोकगीतों की मूल बोली अथवा भाषा का पता लगाना कठिन ही नहीं असंभव सा है, क्योंकि लोकगीत उत्पन्न होकर भाषा के प्रवाह में तैरते चलते हैं। मनुष्य के कण्ठ ही उनके घाट हैं। उपयुक्त कण्ठ पाकर कोई कहीं बसेरा ले लेता है। लोकगीतों पर उनके आसपास का ऐसा प्रभाव पड़ जाता है कि उनका मूल रूप कायम नहीं रहता। इससे जहाँ वे गाये जाने लगते हैं, वहाँ के बहुत से शब्द जो पर्यायवाची होते हैं, उनमें बैठ जाते हैं और उनके मूल शब्दों को स्थान च्युत कर देते हैं। इसमें कौन सा गीत पहले पहल कहाँ बना इसका पता नहीं लगाया जा सकता। केवल इस बात का पता लग सकता है कि कौनसा गीत कहाँ गाया जाता है।
1 . शीर्षक – लोकगीतों की मूल भाषा
2 . संक्षेपण – कोई लोकगीत वर्तमान में कहाँ गाया जाता है, इसका बोध उसकी भाषा से हो जाता है, किन्तु वह
लोकगीत मूलतः किस भाषा में लिखा गया इसका निर्णय करना आसान नहीं होता क्योंकि कोई भी लोकगीत जहाँ गाया जाता है। वहाँ के लोग उच्चारण सुविधा के कारण मूल भाषा के शब्द के स्थान पर उसका स्थानीय पर्याय शब्द प्रयुक्त कर लेते हैं जिससे उसकी मूल भाषा का पता नहीं लगाया जा सकता है।
अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh in Hindi) – 3
आधुनिक मानव समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरन्तर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव मूल्यों का ह्रास होने से समस्या उत्तरोत्तर गूढ़ होती जा रही है। अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य, विवेक और ईमानदारी का त्यागकर भौतिक स्तर ऊँचा उठाने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिन्ता नहीं करता। उसे तो बस साध्य पाने की प्रबल इच्छा रहती है। ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नए-नए रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध वृद्धि पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। सदाचार, कर्तव्य परायणता, त्याग आदि नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना करना स्वप्न मात्र है।
1 . शीर्षक – बढ़ती समृद्धिः घटते मानव मूल्य
2 . संक्षेपण – वैज्ञानिक संसाधनों द्वारा भौतिक समृद्धि से सुख की प्राप्ति हेतु आज मानव मानवीय नैतिक मूल्यों की उपेक्षा करते हुए अनुचित साधनों से येन केन प्रकारेण आपराधिक मनोवृत्ति द्वारा प्राप्ति में लगा है फिर भी वास्तविक सुख उसके लिए दूर की कौड़ी बन कर रह गया है।
अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh in Hindi) – 4
मातृभाषा का अनादर माँ के अनादर के बराबर है जो मातृभाषा का अपमान करता है, वह स्वदेश भक्त कहलाने लायक नहीं। बहुत से लोग ऐसा कहते सुने जाते हैं कि हमारी भाषा में ऐसे शब्द नहीं जिनमें हमारे ऊँचे विचार प्रकट किये जा सकें। किन्तु यह कोई भाषा का दोष नहीं। भाषा का बनाना और बढ़ाना हमारा ही कर्तव्य है। एक समय ऐसा था जब अंग्रेजी भाषा की भी यही हालत थी। अंग्रेजी का विकास इसलिए हुआ कि अंग्रेज आगे बढ़े और उन्होंने स्वयं भाषा की उन्नति की। यदि हम मातृभाषा की उन्नति नहीं कर सके और हमारा यह सिद्धान्त रहे कि अंग्रेजी के जरिये ही हम अपने ऊँचे विचार प्रकार कर सकते हैं, तो इसमें जरा भी शक नहीं कि हम सदा के लिए गुलाम बने रहेंगे।
1 . शीर्षक – मातृ-भाषा
2 . संक्षेपण – सच्चे देशभक्त अपनी मातृभाषा सें माँ के समान प्यार करते हैं। कोई भी भाषा अपने आप में असमर्थ नहीं होती यह तो उस भाषा के बोलने वालों पर निर्भर है कि वे उसके विकास हेतु क्या प्रयत्न करते हैं। अतः कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा को अभिव्यक्ति के अयोग्य मानकर अंग्रेजी को ही उच्च विचारों की प्रस्तुतीकरण का साधन मानता है तो यह उसकी मानसिक गुलामी का प्रतीक है।
अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh in Hindi) – 5
हमें स्वराज्य तो मिल गया, परन्तु सुराज्य हमारे लिए सुखद स्वप्न ही है। इसका प्रधान कारण यह है कि देश को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से कठोर परिश्रम करना हमने अब तक नहीं सीखा। श्रम का महत्त्व और मूल्य हम जानते ही नहीं। हम अब भी आराम तलब हैं। हम हाथों से यथेष्ट काम करने को हीन लक्षण समझते हैं। हम कम से कम काम द्वारा जीविका उपार्जित करना चाहते हैं। यह दूषित मनोवृत्ति राष्ट्र की आत्मा में जा बैठी है। यदि हम इससे मुक्त नहीं होते हैं तो देश आगे नहीं बढ़ सकता और स्वराज्य सुराज्य में परिणत नहीं हो सकता।
1 . शीर्षक – ‘स्वराज्य बनाम सुराज्य’
2 . संक्षेपण – सदियों बाद भारत में स्वराज्य की स्थापना हुई किन्तु इतने वर्षों बाद भी आज तक सुराज्य नहीं मिला क्योंकि भारतीय कम मेहनत कर अधिक लाभ चाहते हैं जब तक यहाँ के लोग श्रम का महत्त्व नहीं समझेंगे, कठोर परिश्रम नहीं करेंगे, हाथ के काम को बुरा न मान काम कर अति लाभ की मनोवृत्ति से मुक्त नहीं होंगे तब तक सुराज्य दिवास्वप्न ही बना रहेगा।
अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh in Hindi) – 6
देश की उन्नति का बहुत बड़ा दायित्व सच्चे देशभक्तों पर निर्भर करता है। देश का गौरव सच्चे देशभक्त ही होते हैं। उसी देश का अभ्युत्थान हो सकता है, जहाँ के निवासियों में देश-प्रेम कूट-कूट कर भरा हो, जिनकी शिरा-शिरा धमनी धमनी में देश-प्रेम से सिक्त रक्त प्रवाहित हो रहा है। जिस देश में ऐसे स्त्री पुरुष का आधिक्य होता है उसकी अवनति स्वप्न में भी नहीं हो सकती। जिस देश में जितने ही देशभक्त सच्चे नागरिक होंगे, वह देश उतना ही समृद्धि के शिखर पर चढ़ सकता है। भारत की स्वतंत्रता के पीछे कौनसी शक्ति काम कर रही थी? क्या अंग्रेजों ने प्रसन्न होकर स्वतंत्रता दान कर दी थी? कदापि नहीं। वास्तव में इस स्वतंत्रता के पीछे भी बलिदान हो जाने वाले सहस्रों देश भक्तों की शक्ति छिपी थी। उनके रक्त की लहरें परतंत्रता की चट्टान से बारबार टकरा रही थी, जिससे वह एक दिन चूर-चूर हो गई।
1 . शीर्षक – सच्चे देशभक्त
2 . संक्षेपण – जिस देश के नागरिकों में अपने देश के प्रति अगाध प्रेम एवं श्रद्धा होती है, जिनकी रग रग में देश के प्रति बलिदान का सागर हिलोरे लेता है, वही देश उन्नति के सोपानों पर चढ़ता है। भारत की आजादी के पीछे अंग्रेजों की उदारता नहीं बल्कि सच्चे देश भक्तों की अटूट बलिदान की भावना थी।
अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh in Hindi) – 7
युवा पीढ़ी की कुण्ठा तब तक दूर नहीं की जा सकती जब तक युवकों की आशाओं तथा उनको पूर्ण करने के लिए किये गये त्यागों में पूर्ण सामंजस्य नहीं होगा, जब तक समाज युवकों को उचित पथ प्रदर्शन देकर उनकी बढ़ती शक्ति को सन्तुष्ट करने में सफल न होगा, युवकों की मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर सकेगा अर्थात मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक भूख को शान्त नहीं कर सकेगा तथा जब तक समाज अपने आज के कृष्ण कलेवर को श्वेत न कर लेगा अर्थात् जब तक समाज अपने दोषों को दूर न कर लेगा जिनके कारण सामाजिक वातावरण दूषित हुआ है और दूषित युवकों को उत्पन्न कर रहा है। अतः जब तक समाज के प्रतिनिधि लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाहेंगे और युवकों को भुलावे में रखकर स्वार्थ सिद्धि हेतु पथ प्रदर्शन करते रहेंगे। तब तक योग्य युवक तैयार नहीं किये जा सकते, न उन्हें वास्तविक सफलता ही मिल सकती है और न ही उनकी कुण्ठा दूर की जा सकती है।
1 . शीर्षक – युवा कुण्ठा।
2 . संक्षेपण – वर्तमान दूषित वातावरण ही युवाओं की कुण्ठा का मूल कारण है। जब तक वर्तमान समाज या उसके प्रतिनिधि अपने स्वार्थों की उपेक्षा कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए युवाओं की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सही मार्गदर्शन नहीं करेंगे तब तक सच्चे युवक तैयार नहीं होंगे और न ही उनकी कुण्ठा दूर होगी।
अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh in Hindi) – 8
यदि पशुबल का ही नाम बल है तो निश्चय ही नारी में पुरुष की अपेक्षा कम पशुत्व है। लेकिन अगर बल का अर्थ नैतिक बल है तो उस बल में वह पुरुष की अपेक्षा इतनी अधिक महान है कि जिसका कोई नाप नहीं हो सकता। यदि, अहिंसा मानव जाति का धर्म है तो अब मानव जाति के भविष्य की निर्मात्री नारी बनने वाली है मानव के हृदय पर नारी से बढ़कर प्रभाव और किसका है ? यह तो पुरुष ने नारी की आत्मा को कुचल रखा है। यदि उसने भी पुरुष को भोग लालसा के सामने अपने आपको समर्पित न कर दिया होता, तो सोयी हुई शक्ति के इस अथाह भण्डार के दर्शन का अवसर संसार को मिल जाता। अब भी उसके चमत्कारपूर्ण वैभव का दर्शन हो सकेगा, जब नारी को संसार में पुरुष के ही समान अवसर मिलने लगेगा और पुरुष तथा नारी दोनों मिलकर परस्पर सहयोग करते हुए आगे बढ़ेंगे।
1 . शीर्षक – नर बनाम नारी
2 . संक्षेपण – शारीरिक बल की अपेक्षा नैतिक बल की दृष्टि से नारी पुरुष से श्रेष्ठ है। पुरुष ने अपने शारीरिक बल के द्वारा नारी को भोग विलास की वस्तु मानकर उसकी मानवीय भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। यदि नर आज नारी को पुरुष के समान अवसर प्रदान करे तो वह अपने अलौकिक एवं आध्यात्मिक गुणों से मानवता की स्थापना कर संसार को लाभान्वित कर सकती है।
हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar