ताकत के बल पर किसी को आतंकित कर उसकी इच्छा के विरुद्ध काम करवाना या अपनी मनमानी चलाना आतंक कहलाता है। इस प्रकार की प्रवृत्ति समाज में प्राचीन काल से आ रही है और आज भी है।
बलवान सदा से निर्बलों को आतंकित करते रहे हैं और निर्बल अपनी विवशता पर रोने के लिए विवश होते रहे हैं। यही करने की मानसिकता जब किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठित समूह का दर्शन बन जाती है तो उसे आतंकवाद कहते हैं।
वस्तुतः आतंकवाद सामूहिक हित के विरूद्ध चंद सिर फिरे लोगों की उग्रता और असामाजिकता का पर्याय होता है। जब हम चोरों का आतंक, डाकूओं का आतंक, अपराधियों का आतंक आदि की बात करते हैं तो स्पस्टतः यहां कोई दर्शन नहीं स्वार्थ साधना की बात होती है।

इसलिए चोरों या डाकुओं के आतंक को आतंकवादी की संज्ञा नहीं दे सकते। आतंकवाद जब किसी राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति का उद्देश बना लेता है तब उसे आतंकवाद को राजनीति कहते हैं।
जिसका सीधा अर्थ है आतंक के बल पर सत्ता प्राप्त करना। इस तरह का कार्य वे लोग करते हैं जो शक्ति और क्षमता में कम होते हैं लेकिन उच्चतर महत्वकांक्षा से बुरी तरह ग्रस्त होते हैं।
पंजाब को देश से अलग करके स्वतंत्र देश बनाने और उस देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि बनकर अपनी महत्वाकांक्षा तुष्ट करने का सपना देखने वालों ने अलग खालिस्तान का नारा देकर हत्याओं का दौर कायम कर लोग आतंकित करने का प्रयास किया।
वर्तमान में उसी शैली को कश्मीर को अलग करने के लिए आतंकवाद की राजनीति चल रही है। वहाँ के गुमराह नौजवान पाकिस्तानी शह पर कट मर रहे हैं।
धर्म के नाम पर कश्मीर को अलग कर पाकिस्तान में अंततः मिला लेने की पाकिस्तानी साजिश अब अन्तराष्ट्रीय मंच पर उजागर हो चुकी है और भारत उसे मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। केवल भारत ही नहीं दुनिया के अनेक देश आतंकवाद की राजनीति से प्रभावित है।
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