पुस्तकें प्रेरणा की भंडार होती हैं। उन्हें पढ़कर जीवन में कुछ महान कार्य करने की भावना जगती है। पुस्तकें जहाँ एक ओर ईष्या-द्वेष की भावना समाप्त करती हैं वही सद्भाव जगाने के साथ-साथ निरंतर काम करने की प्रेरणा प्रदान करती है।
भारत का स्वतंत्रता संग्राम लड़ने में पुस्तकों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। मैथिलीशरण गुप्त की भारती-भारती पढ़कर कितने ही नौजवानों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। एक कवि के अनुसार –
बिन पत्रों के वृक्ष अधूरा,
बिना विद्या के है मानव अधूरा।
सत्य है, जिस प्रकार वृक्ष बिना पत्तों के अधूरा होता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी ज्ञान के बगैर अधूरा है। जीवन के घोर अंधकार में प्रकाश लाने का श्रेय पुस्तकों को जाता है।
पुस्तकें सचमुच हमारी मित्र हैं। वे अपना समस्त-कोष सदा हम पर न्योछावर करने को तैयार रहती हैं। वे अपनी अनुभव की बातों से हमारा मनोरंजन भी करती हैं। बदले में वे हमसे कुछ नहीं लेती। न ही परेशान करती हैं।
लोकमान्य तिलक का कहना था — “मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकों का स्वागत करूंगा क्योंकि उनमें वह शक्ति है, जहाँ होगी, स्वर्ग अपने आप बन जाएगा।”
पुस्तकें किसी भी विचार या भावना के प्रचार का सबसे शक्तिशाली साधन है। तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ ने तथा व्यास रचित ‘महाभारत’ ने अपने युग को तथा आने वाली शताब्दियों को पूरी तरह प्रभावित किया।
पुस्तकों द्वारा एक पीढ़ी का ज्ञान दूसरी पीढ़ी तक पहुंचते-पहुंचते सारे युग में फैल जाता है। यदि हजारों वर्ष पूर्व का ज्ञान पुस्तकों में न होता तो आगे आने वाले युगों तक ज्ञान न पहुंचता।
इस कारण शायद इस वैज्ञानिक सभ्यता का जन्म ही नहीं होता। पुस्तकों के माध्यम से ही अपने पूर्वजों के ज्ञान और संस्कृति को समझ सकते हैं। पुस्तकें ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ मनोरंजन में भी सहायक सिद्ध होती हैं।
ये मित्र की भांति सच्चा सुख प्रदान करती हैं। पुस्तकों द्वारा मनोरंजन में हम अकेले होते हैं, इसीलिए मनोरंजन का आनंद और दूरदर्शन से भी अधिक है।
इसी कारण पुस्तकों को घरेलू साथी भी कहा जाता है। इसीलिए किसी ने कहा है — पुस्तकें जागृत देवता है। इनकी सेवा करके तत्काल वरदान प्राप्त किया जा सकता है।
संसार के बड़े महापुरुषों को हम पुस्तकों द्वारा जितना जान सकते हैं उतना उनके नजदीक रहकर भी नहीं। अच्छी पुस्तकों के साथ समय बिताना महापुरुषों के जीवन का एक अभिन्न अंग है। विद्वान पुरुषों के लिए पुस्तकें ही उनकी संपत्ति है।
बुद्धिमान पुरुषों का समय काव्यशास्त्र के अध्ययन में व्यतीत होता है किन्तु मूर्ख अपना समय सोने में ही नष्ट कर देते हैं। अतः हमें भी अपना समय पुस्तक अध्ययन में व्यतीत करना चाहिए। पुस्तकों का सही ढंग से उपयोग हमारा नैतिक दायित्व है। पुस्तकों की रक्षा करना ज्ञान-साधना का मान करना है।
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